ढाका: बांग्लादेश में राजनीतिक बदलाव के साथ ही क्षेत्रीय शक्ति संतुलन भी बदल रहा है. हाल ही में अंतरिम सरकार के रूप में मोहम्मद यूनुस के नेतृत्व में सत्ता परिवर्तन हुआ है, जिसके बाद बांग्लादेश की विदेश नीति में महत्वपूर्ण परिवर्तन देखने को मिल रहे हैं. यूनुस सरकार द्वारा लिए गए कुछ हालिया निर्णयों ने भारत के लिए नई रणनीतिक चुनौतियां खड़ी कर दी हैं.
चीन और पाकिस्तान के साथ बढ़ती नजदीकियां
बांग्लादेश सरकार ने हाल ही में चीन को मोंगला बंदरगाह के आधुनिकीकरण का कार्य सौंपा है. यह बंदरगाह कोलकाता से महज 180 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है, जिससे चीन की मौजूदगी भारत के पूर्वी तट के बेहद करीब बढ़ गई है. हिंद महासागर में भारत लंबे समय से चीन के बढ़ते प्रभाव को रोकने के प्रयास कर रहा था, लेकिन इस नई डील के चलते चीनी निवेश और सैन्य गतिविधियों की संभावनाएं बढ़ गई हैं.
सिर्फ चीन ही नहीं, पाकिस्तान के साथ भी बांग्लादेश के संबंध नए स्तर पर पहुंच गए हैं. बांग्लादेशी वायु सेना के अधिकारी पाकिस्तान में JF-17 लड़ाकू विमानों का प्रशिक्षण लेने जा रहे हैं. यह विमान पाकिस्तान और चीन के संयुक्त सहयोग से विकसित किए गए हैं और इन्हें बांग्लादेश के लालमोनिरहाट हवाई अड्डे पर तैनात किया जाएगा. यह हवाई अड्डा भारत के हासिमारा एयरबेस से मात्र 120 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है, जो ‘चिकन नेक’ के बेहद करीब है. यह कॉरिडोर भारत को उसके उत्तर-पूर्वी राज्यों से जोड़ता है और रणनीतिक रूप से अत्यंत महत्वपूर्ण है.
भारत के लिए नई सुरक्षा चुनौतियां
भारत के लिए सबसे बड़ी चिंता यह है कि अब वह न केवल अपनी पश्चिमी सीमा पर पाकिस्तान के साथ, बल्कि पूर्व में भी एक नई चुनौती का सामना कर सकता है. चीन की मौजूदगी अब न केवल भारतीय सीमा के उत्तर में बल्कि दक्षिण में भी बढ़ रही है. विशेषज्ञों का मानना है कि चीन और पाकिस्तान के संयुक्त प्रयासों के चलते भारत की सुरक्षा चुनौतियां पहले से अधिक जटिल हो सकती हैं.
भारत के लिए रणनीतिक रूप से आवश्यक होगा कि वह अपनी पूर्वी सीमा पर निगरानी और कूटनीतिक सक्रियता को बढ़ाए. इसके साथ ही, बांग्लादेश में बढ़ते चीन-पाकिस्तान प्रभाव को संतुलित करने के लिए नई नीतियां अपनानी होंगी.
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