ना पुतिन के सगे हुए, जेलेंस्की को भी किया बेइज्जत... जब किसी पर ना चली तो भारत के पीछे पड़े ट्रंप, मिलेगा जवाब!

    ट्रंप, जो हमेशा से अपने बेलगाम बयानों और अप्रत्याशित फैसलों के लिए जाने जाते हैं, अब एक ऐसे बिल का समर्थन कर रहे हैं जो भारत के आर्थिक हितों पर सीधा वार कर सकता है.

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    डोनाल्ड ट्रंप | Photo: ANI

    भारत के लिए वैश्विक राजनीति का मोर्चा फिर से तनावपूर्ण होता दिख रहा है, और इस बार वजह हैं अमेरिका के राष्ट्रपति और संभावित अगले राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप. ट्रंप, जो हमेशा से अपने बेलगाम बयानों और अप्रत्याशित फैसलों के लिए जाने जाते हैं, अब एक ऐसे बिल का समर्थन कर रहे हैं जो भारत के आर्थिक हितों पर सीधा वार कर सकता है.

    रूस-यूक्रेन युद्ध पर ट्रंप का बदला रुख

    डोनाल्ड ट्रंप जब चुनावी सभाओं में कहते थे कि वह रूस-यूक्रेन युद्ध को एक दिन में खत्म कर देंगे, तो लोग इसे शेखी समझते थे. लेकिन अब जब वह दोबारा सत्ता में आने की रेस में हैं, तो यह शेखी भारत के लिए एक बड़ा झटका बन सकती है. ट्रंप अब रूस से व्यापार करने वाले देशों पर सख्त कार्रवाई के मूड में हैं. उनकी नजर में भारत और चीन ऐसे देश हैं जो रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन की “युद्ध मशीन” को ईंधन दे रहे हैं.

    प्रस्तावित बिल और भारत पर संभावित असर

    अमेरिका में एक नया बिल विचाराधीन है जिसमें रूस से व्यापार करने वाले देशों पर 500 फीसदी तक का टैरिफ लगाने का प्रस्ताव है. यानी अगर भारत रूस से कच्चा तेल खरीदता है, तो इस पर अमेरिका 5 गुना टैरिफ लगा सकता है. यह न सिर्फ भारत की ऊर्जा रणनीति को झटका देगा, बल्कि उसकी अर्थव्यवस्था पर भी असर डालेगा.

    इस बिल को रिपब्लिकन सीनेटर लिंडसे ग्राहम ने पेश किया है, और उनके अनुसार इसमें 84 अन्य सीनेटरों का समर्थन पहले ही मिल चुका है. ग्राहम के अनुसार ट्रंप ने खुद गोल्फ खेलते समय उनसे कहा कि "अब वक्त आ गया है इस बिल को आगे बढ़ाने का."

    अमेरिका की दोहरी नीति?

    भारत लंबे समय से रूस से सस्ता कच्चा तेल खरीद रहा है, जो उसकी अर्थव्यवस्था के लिए रणनीतिक रूप से बेहद अहम है. लेकिन अमेरिका इसे एक राजनीतिक मुद्दा बना रहा है. अमेरिका का तर्क है कि जो देश रूस से तेल ले रहे हैं और यूक्रेन को समर्थन नहीं दे रहे, वे युद्ध को बढ़ावा दे रहे हैं.

    पर सवाल यह भी उठता है कि क्या यह अमेरिका की दोहरी नीति नहीं है? खुद ट्रंप प्रशासन ने यूक्रेन को हथियारों की आपूर्ति पर रोक लगा दी थी, और फिर रूसी हमलों के बाद उस फैसले को पलटना पड़ा. ऐसे में भारत पर दबाव डालना क्या जायज है?

    जेलेंस्की से नाराजगी, पुतिन से दूरी

    ट्रंप की यूक्रेन नीति शुरू से ही अस्थिर रही है. कभी वह यूक्रेनी राष्ट्रपति जेलेंस्की को समर्थन देने से मना करते हैं, तो कभी हथियारों की सप्लाई रोक देते हैं. वाइट हाउस में दोनों नेताओं की तल्ख बहसें जगजाहिर हैं. वहीं अब ट्रंप पुतिन से भी नाराज हो गए हैं. उन्होंने एक मीटिंग में कहा, “वह बहुत लोगों को मार रहा है, ये अब और नहीं चलेगा.”

    दूसरी ओर, रूस ने ट्रंप की आलोचना को ज्यादा तवज्जो नहीं दी. क्रेमलिन के प्रवक्ता दिमित्री पेसकोव ने कहा कि ट्रंप की बयानबाज़ी आम तौर पर तीखी होती है और इसे गंभीरता से लेने की जरूरत नहीं.

    भारत के लिए कूटनीतिक दोधारी तलवार

    भारत अब एक मुश्किल भरे कूटनीतिक मोड़ पर खड़ा है. एक तरफ वह रूस से पारंपरिक सहयोग बनाए रखना चाहता है, जो उसकी रक्षा और ऊर्जा जरूरतों का अहम साझेदार है. दूसरी ओर अमेरिका से रिश्ते भी रणनीतिक रूप से बेहद जरूरी हैं.

    ट्रंप की यह आक्रामक नीति भारत को मजबूर कर सकती है कि वह अपनी रूस नीति पर पुनर्विचार करे. लेकिन यह फैसला आसान नहीं होगा. भारत को तय करना होगा कि वह अपनी ऊर्जा सुरक्षा को प्राथमिकता देगा या अमेरिका के राजनीतिक दबाव को झेलेगा.

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