Vijay Diwas: 16 दिसंबर भारतीय उपमहाद्वीप के इतिहास में एक ऐसा दिन है, जिसे कभी भुलाया नहीं जा सकता. इसी दिन वर्ष 1971 में भारतीय सशस्त्र बलों ने पाकिस्तान पर निर्णायक विजय हासिल की थी. यह जीत सिर्फ एक युद्ध में सफलता नहीं थी, बल्कि इसके परिणामस्वरूप पाकिस्तान दो हिस्सों में बंट गया और दुनिया के नक्शे पर एक नए राष्ट्र बांग्लादेश का जन्म हुआ.
भारतीय सेना के शौर्य, रणनीति और अद्वितीय साहस के आगे पाकिस्तानी सेना टिक नहीं सकी. महज 13 दिनों में युद्ध का फैसला हो गया और 16 दिसंबर 1971 को ढाका में पाकिस्तानी सेना ने बिना शर्त आत्मसमर्पण कर दिया. करीब 93,000 पाकिस्तानी सैनिकों और नागरिकों का सरेंडर आज भी विश्व इतिहास के सबसे बड़े सैन्य आत्मसमर्पणों में गिना जाता है.
1947 का बंटवारा और भविष्य का संघर्ष
1971 के युद्ध की जड़ें भारत-पाक विभाजन के समय ही पड़ गई थीं. 1947 में पाकिस्तान का गठन धर्म के आधार पर हुआ, लेकिन वह देश भौगोलिक और सांस्कृतिक रूप से दो अलग-अलग हिस्सों में बंटा था- पश्चिमी पाकिस्तान और पूर्वी पाकिस्तान.
पूर्वी पाकिस्तान में देश की लगभग 56 प्रतिशत आबादी रहती थी और वहां की प्रमुख भाषा बांग्ला थी. इसके विपरीत पश्चिमी पाकिस्तान में पंजाबी, सिंधी और पश्तो जैसी भाषाएं बोली जाती थीं. सत्ता और सेना पर पूरी तरह पश्चिमी पाकिस्तान का वर्चस्व था, जबकि पूर्वी पाकिस्तान को राजनीतिक, आर्थिक और सामाजिक रूप से लगातार उपेक्षित किया जाता रहा.
भाषा विवाद से भड़की असंतोष की आग
पाकिस्तान के शासकों ने बांग्ला भाषा को सरकारी दर्जा देने से इनकार कर दिया. उन्हें यह गलतफहमी थी कि बांग्ला भाषा और संस्कृति पर हिंदू प्रभाव है. इसी सोच के चलते उर्दू को एकमात्र राष्ट्रीय भाषा घोषित किया गया.
इस फैसले ने पूर्वी पाकिस्तान में व्यापक विरोध को जन्म दिया. 1952 में भाषा आंदोलन शुरू हुआ, जिसमें कई लोगों ने अपनी जान गंवाई. यहीं से पूर्वी पाकिस्तान में असंतोष की ज्वाला धीरे-धीरे स्वतंत्रता आंदोलन में बदलने लगी.
शेख मुजीबुर रहमान का उदय और लोकतंत्र की हत्या
पूर्वी पाकिस्तान की जनता की आवाज बनकर शेख मुजीबुर रहमान सामने आए. उनकी पार्टी अवामी लीग ने स्वायत्तता और समान अधिकारों की मांग को आंदोलन का रूप दिया.
1970 के आम चुनावों में अवामी लीग ने ऐतिहासिक जीत हासिल की. राष्ट्रीय असेंबली की 162 सीटों में से 160 सीटें जीतकर शेख मुजीबुर रहमान बहुमत में आ गए. लोकतांत्रिक रूप से उन्हें पाकिस्तान का प्रधानमंत्री बनना चाहिए था, लेकिन पश्चिमी पाकिस्तान की सत्ता में बैठे सैन्य और राजनीतिक नेतृत्व ने सत्ता हस्तांतरण से इनकार कर दिया.
यह फैसला पूर्वी पाकिस्तान के लिए लोकतंत्र की खुली हत्या जैसा था.
ऑपरेशन सर्चलाइट और भयावह नरसंहार
जब शेख मुजीबुर रहमान ने अपने अधिकारों की मांग जारी रखी, तो उन पर देश तोड़ने का आरोप लगा दिया गया. 25 मार्च 1971 की रात पाकिस्तानी सेना ने ‘ऑपरेशन सर्चलाइट’ शुरू किया.
इस अभियान के तहत पूर्वी पाकिस्तान में व्यापक हिंसा, नरसंहार और दमन किया गया. छात्र, बुद्धिजीवी, महिलाएं और आम नागरिक निशाना बनाए गए. गांव के गांव उजाड़ दिए गए. इस क्रूरता से बचने के लिए लाखों लोग भारत की सीमा की ओर भागने लगे.
भारत में शरणार्थियों की भारी आमद ने मानवीय संकट खड़ा कर दिया. इसी दौरान बांग्लादेश में मुक्ति संग्राम ने जोर पकड़ लिया और ‘मुक्ति वाहिनी’ ने पाकिस्तानी सेना के खिलाफ सशस्त्र संघर्ष शुरू कर दिया.
भारत का हस्तक्षेप और युद्ध की शुरुआत
लगातार हो रहे अत्याचार और लाखों शरणार्थियों के दबाव के चलते भारत के लिए चुप रहना संभव नहीं था. आखिरकार 4 दिसंबर 1971 को भारत ने आधिकारिक रूप से पाकिस्तान के खिलाफ युद्ध की घोषणा कर दी.
भारतीय सेना ने पूर्वी मोर्चे पर मुक्ति वाहिनी के साथ मिलकर तेज और सुनियोजित सैन्य अभियान चलाया. थलसेना, नौसेना और वायुसेना के समन्वित हमलों ने पाकिस्तानी सेना की कमर तोड़ दी.
सिर्फ 13 दिन में ऐतिहासिक जीत
यह युद्ध लंबे समय तक चलने वाला माना जा रहा था, लेकिन भारतीय सेना की रणनीति, नेतृत्व और साहस के सामने पाकिस्तानी सेना पूरी तरह बिखर गई. मात्र 13 दिनों के भीतर हालात ऐसे बन गए कि पाकिस्तान के पास आत्मसमर्पण के अलावा कोई विकल्प नहीं बचा.
16 दिसंबर 1971 को ढाका में पाकिस्तानी सेना के पूर्वी कमांडर ने भारतीय सेना के सामने आत्मसमर्पण पत्र पर हस्ताक्षर किए.
93 हजार का आत्मसमर्पण, इतिहास में मिसाल
इस आत्मसमर्पण के साथ भारत ने करीब 82,000 पाकिस्तानी सैनिकों को युद्धबंदी बनाया. इसके अलावा लगभग 11,000 पाकिस्तानी नागरिक भी भारतीय हिरासत में आए.
कुल मिलाकर करीब 93,000 लोगों का आत्मसमर्पण हुआ, जो द्वितीय विश्व युद्ध के बाद किसी एक स्थान पर हुआ सबसे बड़ा सैन्य सरेंडर माना जाता है.
बांग्लादेश का जन्म और अंतरराष्ट्रीय मान्यता
पाकिस्तान की करारी हार के बाद हालात पूरी तरह बदल चुके थे. दिसंबर 1971 में ही पाकिस्तान को मजबूरी में बांग्लादेश को एक स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में मान्यता देनी पड़ी.
इसके बाद भारत ने शिमला समझौते और अन्य कूटनीतिक प्रक्रियाओं के तहत युद्धबंदियों को रिहा किया. शेख मुजीबुर रहमान बांग्लादेश के पहले राष्ट्रपति बने और एक नए देश ने स्वतंत्रता की सांस ली.
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