54 दिन में 35 मौत... टक्कर होते ही कैसे आग की चपेट में आ जाती है बस? जानें 'इंटीरियर' कैसे बन जाता है आग का ईंधन

    Bus Accidents: उत्तर प्रदेश के मथुरा जिले में दिल्ली-आगरा एक्सप्रेसवे पर मंगलवार सुबह घने कोहरे ने एक और भयावह सड़क हादसे को जन्म दे दिया. कम दृश्यता के कारण सात बसें और तीन कारें आपस में टकरा गईं.

    bus accident catch fire as soon as it collides Know how interior becomes fuel for fire
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    Bus Accidents: उत्तर प्रदेश के मथुरा जिले में दिल्ली-आगरा एक्सप्रेसवे पर मंगलवार सुबह घने कोहरे ने एक और भयावह सड़क हादसे को जन्म दे दिया. कम दृश्यता के कारण सात बसें और तीन कारें आपस में टकरा गईं. टक्कर के तुरंत बाद एक बस में आग भड़क उठी, जिसने कुछ ही पलों में पूरे केबिन को अपनी चपेट में ले लिया. इस हादसे में कम से कम 13 लोगों की दर्दनाक मौत हो गई, जबकि कई यात्रियों ने खिड़कियां तोड़कर या चलती बस से कूदकर किसी तरह अपनी जान बचाई.

    प्रारंभिक जांच में सामने आया है कि बस तेज रफ्तार में थी और टक्कर लगते ही आग ने विकराल रूप ले लिया. आग इतनी तेजी से फैली कि यात्रियों को संभलने और बाहर निकलने का मौका तक नहीं मिला.

    बस हादसे अब सिर्फ दुर्घटना नहीं, सिस्टम फेल होने का संकेत

    देश में लगातार सामने आ रहे बस हादसे अब महज संयोग या दुर्घटनाएं नहीं रह गए हैं. बीते दो महीनों में अलग-अलग राज्यों से बसों में आग लगने, यात्रियों के जिंदा जलने या दम घुटने से मौत की कई घटनाएं सामने आई हैं. यह सिलसिला परिवहन व्यवस्था, निगरानी तंत्र और यात्री सुरक्षा पर गंभीर सवाल खड़े करता है.

    सबसे चिंताजनक पहलू यह है कि हर हादसे के बाद जांच के आदेश तो दिए जाते हैं, लेकिन कुछ दिनों के शोर के बाद मामला ठंडे बस्ते में चला जाता है. नतीजा यह होता है कि वही खामियां, वही लापरवाही और वही जानलेवा चूक दोबारा लोगों की जान ले लेती हैं.

    आग लगते ही क्यों बन जाती है बस गैस चैंबर?

    लगभग हर बड़े बस हादसे में एक बात समान होती है, आग लगते ही बस का मुख्य गेट जाम हो जाता है. जैसे ही दरवाजा लॉक होता है, पूरी बस कुछ ही सेकंड में एक बंद गैस चैंबर में बदल जाती है. अंदर बैठे यात्रियों के पास बाहर निकलने का कोई रास्ता नहीं बचता.

    विशेषज्ञों के मुताबिक, इसका मुख्य कारण घटिया क्वालिटी का इंटीरियर, अव्यवस्थित इलेक्ट्रिक वायरिंग और गैर-मानक डिजाइन है. आग लगते ही इलेक्ट्रिक सिस्टम फेल हो जाता है और ऑटोमैटिक या पावर-कंट्रोल्ड गेट लॉक हो जाते हैं.

    बस का इंटीरियर ही बन जाता है आग का ईंधन

    अधिकांश निजी बसों में सीटें, छत और साइड पैनल ऐसे फोम और रेक्सीन से बनाए जाते हैं, जो अत्यधिक ज्वलनशील होते हैं. आग लगते ही ये सामग्री पेट्रोल की तरह जलने लगती है. इनके बीच से गुजरने वाले बिजली के तार शॉर्ट सर्किट का खतरा और बढ़ा देते हैं.

    फायर एक्सपर्ट्स का कहना है कि बस में आग लगने के 30 सेकंड के भीतर हालात पूरी तरह बेकाबू हो सकते हैं. पांच मिनट के अंदर तापमान इतना बढ़ जाता है कि अंदर मौजूद हर वस्तु एक साथ जलने लगती है.

    ज्यादा सीटें, संकरे रास्ते और भगदड़

    अधिक मुनाफे की चाह में कई बस ऑपरेटर क्षमता से अधिक सीटें लगा देते हैं. इससे बस के अंदर का रास्ता बेहद संकरा हो जाता है. आपात स्थिति में यात्री तेजी से बाहर नहीं निकल पाते. आग लगने पर अफरा-तफरी मचती है, लोग एक-दूसरे पर गिरते-पड़ते हैं और इसी दौरान गेट लॉक हो जाता है. कुछ ही पलों में बस मौत के जाल में बदल जाती है.

    जहरीली हवा और जानलेवा तापमान

    जब बस में आग लगती है, तो कुछ ही सेकंड में अंदर का तापमान 100 डिग्री सेल्सियस से ऊपर चला जाता है. आंखों के स्तर पर यह तापमान 600 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच सकता है. इस दौरान धुआं और जहरीली गैसें फेफड़ों में भर जाती हैं, जिससे लोग बेहोश होकर दम तोड़ देते हैं. कई मामलों में मौत जलने से पहले दम घुटने के कारण होती है, लेकिन बंद गेट और घने धुएं के चलते बचाव का कोई रास्ता नहीं बचता.

    नियमों की अनदेखी, दिव्यांगों की जगह वॉशरूम

    सुरक्षा मानकों के मुताबिक, सर्विस गेट के पास दिव्यांग यात्रियों के लिए सीट होना अनिवार्य है. लेकिन कई बसों में इसी जगह वॉशरूम बना दिए जाते हैं. यह एआईएस-052 और एआईएस-119 जैसे सुरक्षा मानकों का सीधा उल्लंघन है. इसके बावजूद ऐसी बसें बिना रोक-टोक सड़कों पर दौड़ती रहती हैं, जो परिवहन विभाग की कार्यप्रणाली पर गंभीर सवाल खड़े करता है.

    अवैध कारखानों में तैयार हो रहीं ‘मौत की बसें’

    राजस्थान के उदयपुर, जोधपुर, भीलवाड़ा और नाथद्वारा जैसे इलाकों में दर्जनों अवैध बॉडी-बिल्डिंग यूनिट्स सक्रिय हैं. यहां 2×1 और 2×2 स्लीपर बसें बिना किसी तय मानक के तैयार की जाती हैं. बस ऑपरेटरों का आरोप है कि भ्रष्टाचार के चलते फिटनेस जांच में भी ऐसी बसें पास हो जाती हैं. न तो सामग्री की गुणवत्ता जांची जाती है और न ही फायर सेफ्टी मानकों का पालन होता है.

    कुरनूल हादसे की डरावनी याद

    24 अक्टूबर को आंध्र प्रदेश के कुरनूल में हुई घटना ने पूरे देश को झकझोर दिया था. एक वोल्वो बस बाइक से टकराने के बाद आग की चपेट में आ गई. कुछ ही सेकंड में पूरी बस जल उठी और 20 से ज्यादा लोगों की मौत हो गई. बस में करीब 40 यात्री सवार थे. प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार बस तेज रफ्तार में थी और टक्कर के बाद आग फैलने में पल भर भी नहीं लगा.

    हालिया बस हादसों की कड़ी

    बीते कुछ महीनों में सामने आए हादसे इस खतरे की गंभीरता को और उजागर करते हैं. अक्टूबर में कुरनूल, जयपुर और नवंबर में ग्वालियर जैसे शहरों में हुई घटनाओं ने यह साफ कर दिया है कि बस सुरक्षा मानकों की अनदेखी अब जानलेवा साबित हो रही है.

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