'अमीरों की लाइफस्टाइल से बढ़ रहा प्रदूषण, गरीब ज्यादा पीड़ित...' सुप्रीम कोर्ट ने ऐसा क्यों कहा?

    दिल्ली-एनसीआर में हर साल सर्दियों के दौरान गंभीर वायु प्रदूषण एक बड़ी चुनौती बन जाता है.

    Supreme Court said pollution is increasing due to the lifestyle of the rich
    प्रतिकात्मक तस्वीर/ ANI

    दिल्ली-एनसीआर में हर साल सर्दियों के दौरान गंभीर वायु प्रदूषण एक बड़ी चुनौती बन जाता है. इस मुद्दे पर लगातार सुनवाई कर रहे सुप्रीम कोर्ट ने अब एक बार फिर कड़ी टिप्पणी की है. शीर्ष अदालत का कहना है कि प्रदूषण से निपटने के लिए बनाए गए नियम और आदेश इसलिए असरदार साबित नहीं हो पा रहे, क्योंकि समाज का संपन्न वर्ग अपनी जीवनशैली में बदलाव करने को तैयार नहीं है.

    सुप्रीम कोर्ट ने साफ शब्दों में कहा कि जब तक लोग, खासकर आर्थिक रूप से सक्षम वर्ग, अपनी आदतें नहीं बदलेंगे, तब तक केवल कानूनी आदेशों के जरिए प्रदूषण पर नियंत्रण संभव नहीं है.

    सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने उठाए सवाल

    यह टिप्पणी मुख्य न्यायाधीश सूर्यकांत की अध्यक्षता वाली पीठ ने की, जिसमें जस्टिस जॉयमाल्या बागची और जस्टिस विपुल एम. पंचोली भी शामिल थे. अदालत दिल्ली-एनसीआर में वायु प्रदूषण की स्थिति को लेकर दायर याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी.

    सुनवाई के दौरान अदालत की ओर से नियुक्त सहायक वकील (एमिकस क्यूरी) अपराजिता सिंह ने बताया कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा समय-समय पर कई सख्त निर्देश दिए जाने के बावजूद प्रदूषण का स्तर लगातार गंभीर बना हुआ है. उन्होंने कहा कि इसका सीधा असर लोगों के स्वास्थ्य पर पड़ रहा है और खासतौर पर बच्चों, बुजुर्गों और बीमार लोगों को भारी नुकसान उठाना पड़ रहा है.

    आदेशों के क्रियान्वयन में ढिलाई पर नाराजगी

    एमिकस क्यूरी अपराजिता सिंह ने अदालत को बताया कि प्रदूषण नियंत्रण से जुड़े आदेशों को लागू करने की प्रक्रिया अक्सर धीमी रहती है. नियम तो बनाए जाते हैं, लेकिन जमीनी स्तर पर उनकी सख्ती से निगरानी नहीं हो पाती.

    इस पर मुख्य न्यायाधीश की बेंच ने सवाल उठाया कि जब सुप्रीम कोर्ट के कई आदेश पहले से मौजूद हैं, फिर भी हालात जस के तस क्यों बने हुए हैं. अदालत ने कहा कि अब ऐसे व्यावहारिक और लागू किए जा सकने वाले निर्देश देने की जरूरत है, जिनका उल्लंघन करना आसान न हो.

    अमीर वर्ग नियमों का पालन नहीं करता

    मुख्य न्यायाधीश ने सुनवाई के दौरान तीखी टिप्पणी करते हुए कहा कि प्रदूषण के लिए केवल प्रशासन या नीतियों को दोषी नहीं ठहराया जा सकता. उन्होंने कहा कि समाज के संपन्न वर्ग को भी अपनी जिम्मेदारी समझनी होगी.

    पीठ ने कहा कि अमीर लोग बड़े और ज्यादा ईंधन खपत करने वाले डीजल वाहनों का इस्तेमाल करते हैं, निजी जनरेटर चलाते हैं और ऐसे उपकरणों का उपयोग करते हैं जो भारी प्रदूषण फैलाते हैं. गाड़ियों से निकलने वाला धुआं दिल्ली और उसके आसपास के इलाकों की हवा को जहरीला बना रहा है.

    अदालत ने यह भी कहा कि प्रदूषण का सबसे ज्यादा असर गरीब और मेहनतकश वर्ग पर पड़ता है, जो रोजमर्रा की जिंदगी में खुली हवा में काम करने को मजबूर होता है और जिसके पास खुद को बचाने के पर्याप्त साधन नहीं होते.

    ट्रांसपोर्ट सेक्टर सबसे बड़ा प्रदूषण स्रोत

    सुनवाई के दौरान अदालत के सामने वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग (CAQM) द्वारा दायर एक हालिया हलफनामा भी रखा गया. इसमें बताया गया कि दिल्ली-एनसीआर में वायु प्रदूषण का सबसे बड़ा कारण ट्रांसपोर्ट सेक्टर है, जिसका योगदान करीब 41 प्रतिशत है.

    इसके अलावा निर्माण और धूल से लगभग 21 प्रतिशत, उद्योगों से 19 प्रतिशत, बिजली संयंत्रों से 5 प्रतिशत, घरेलू स्रोतों से 3 प्रतिशत और अन्य कारणों से करीब 11 प्रतिशत प्रदूषण होता है.

    CAQM ने यह भी स्पष्ट किया कि ये सभी प्रदूषण के स्थायी स्रोत हैं, जबकि पराली जलाने की समस्या साल में केवल कुछ हफ्तों तक ही रहती है. इसके बावजूद अक्सर पूरे प्रदूषण का ठीकरा केवल पराली पर फोड़ दिया जाता है.

    बच्चों के स्वास्थ्य को लेकर कोर्ट की चिंता

    सुप्रीम कोर्ट ने बच्चों पर प्रदूषण के गंभीर असर को लेकर भी गहरी चिंता जताई. अदालत ने बताया कि पहले ही स्कूलों और अन्य संस्थानों को निर्देश दिए गए हैं कि गंभीर प्रदूषण के दौरान बच्चों के लिए खेलकूद और बाहरी गतिविधियों का आयोजन न किया जाए.

    हालांकि, सहायक वकील ने शिकायत की कि कई आयोजक इन निर्देशों को नजरअंदाज कर रहे हैं और बच्चों को प्रदूषित वातावरण में गतिविधियों में शामिल होने के लिए मजबूर कर रहे हैं, जिससे उनके स्वास्थ्य को गंभीर खतरा पैदा हो रहा है.

    स्कूल जाने वाले बच्चों का मुद्दा भी उठा

    सुनवाई के दौरान एक अन्य वकील ने अलग याचिका के जरिए स्कूल जाने वाले बच्चों के स्वास्थ्य का मुद्दा उठाया, खासकर तब जब AQI बेहद गंभीर स्तर पर पहुंच जाता है. इस पर बेंच ने कहा कि एक ही विषय पर अलग-अलग याचिकाओं और दलीलों से न्यायिक समय का दुरुपयोग नहीं होना चाहिए.

    अदालत ने सभी वकीलों को निर्देश दिया कि वे अपने सुझाव और चिंताएं एमिकस क्यूरी को सौंपें, ताकि अदालत के सामने सभी मुद्दे एक ही माध्यम से रखे जा सकें.

    ये भी पढ़ें- क्लास 5वीं तक के स्कूल बंद, ऑफिसों में वर्क फ्रॉम होम, GRAP-4लागू... दिल्ली-NCR में प्रदुषण का कहर