नई दिल्ली: वैश्विक कूटनीति के पटल पर हाल के घटनाक्रमों ने दक्षिण एशिया में शक्ति संतुलन की बहस को फिर से जीवंत कर दिया है. अमेरिका और पाकिस्तान के बीच हालिया संवाद और सहयोग के संकेत, और चीन द्वारा पाकिस्तान को सैन्य रूप से मजबूत किए जाने की खबरें, भारत के लिए एक नई चुनौती के रूप में देखी जा रही हैं.
ट्रंप-मुनीर मुलाकात: रणनीतिक संकेत
18 जून को अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और पाकिस्तान के सेना प्रमुख जनरल असीम मुनीर के बीच वाशिंगटन में एक महत्वपूर्ण बैठक हुई. इस अनौपचारिक लंच मीटिंग को दोनों देशों के बीच रणनीतिक तालमेल के संकेत के रूप में देखा जा रहा है. इस मुलाकात के दौरान, पाकिस्तान की निर्वाचित सरकार की बजाय उसकी सैन्य नेतृत्व को प्राथमिकता दिए जाने की अटकलें भी चर्चा में हैं.
इससे पहले, 2022 में अमेरिकी अधिकारी डोनाल्ड लू द्वारा इमरान खान को हटाने के कथित सुझाव और फिर मुनीर की सेना प्रमुख के रूप में नियुक्ति, यह संकेत देते हैं कि अमेरिका पाकिस्तान की राजनीतिक स्थिति पर गहरी नजर बनाए हुए है.
अमेरिका की नीति में बदलाव?
यह घटनाक्रम ऐसे समय पर सामने आ रहा है जब अमेरिका ने ईरान के खिलाफ सख्त सैन्य नीति अपनाई है और वैश्विक मंच पर स्थिरता की आवश्यकता को दोहराया है. पाकिस्तान के साथ अमेरिका का यह नया संवाद इस संदर्भ में और भी महत्वपूर्ण हो जाता है, क्योंकि इससे यह संकेत मिलता है कि वाशिंगटन अब रावलपिंडी के साथ ‘कार्यसाधक संबंधों’ को प्राथमिकता दे रहा है.
इस नए समीकरण के केंद्र में पाकिस्तान की आंतरिक स्थिरता, सैन्य नियंत्रण और अमेरिका के क्षेत्रीय हित हैं – विशेषकर तब जब पश्चिम एशिया में तनाव चरम पर है और चीन की प्रभावशीलता बढ़ रही है.
चीन की भूमिका: सैन्य सहयोग की नई परतें
चीन और पाकिस्तान के बीच लंबे समय से रणनीतिक और रक्षा साझेदारी रही है. यह सहयोग अब और सघन हो रहा है. खबरों के मुताबिक, चीन पाकिस्तान को पांचवीं पीढ़ी के फाइटर जेट्स (जैसे J-31) और अन्य उन्नत सैन्य उपकरणों की आपूर्ति की तैयारी में है. पाकिस्तान के 80% रक्षा उपकरण पहले से ही चीन पर निर्भर हैं, जिससे उसकी रणनीतिक स्वायत्तता सीमित हो जाती है.
इसके अतिरिक्त, पाकिस्तान में चीनी निवेश — विशेषकर चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे (CPEC) — को देखते हुए यह साझेदारी सिर्फ रक्षा के स्तर पर सीमित नहीं है, बल्कि इसमें ऊर्जा, डिजिटल तकनीक और बुनियादी ढांचे का भी समावेश है.
भारत के लिए बढ़ती चिंताएं
इन घटनाक्रमों का प्रत्यक्ष प्रभाव भारत पर पड़ सकता है:
रणनीतिक दबाव: पाकिस्तान को अमेरिका और चीन दोनों से समर्थन मिलने की स्थिति में, भारत के लिए दो मोर्चों पर तनाव की संभावना बढ़ जाती है — पश्चिम में पाकिस्तान और उत्तर में चीन.
आतंकी नेटवर्कों का पुनर्गठन: खुफिया सूत्रों के अनुसार, पाकिस्तान में आतंकी शिविरों का पुनर्निर्माण हो रहा है, और हाल की घटनाओं — जैसे कि पहलगाम हमला — भारत के लिए गंभीर सुरक्षा संकेत हैं.
कूटनीतिक प्राथमिकता में गिरावट: अमेरिका द्वारा भारत की कुछ हालिया चिंताओं की अनदेखी, जैसे कि पुरानी ट्रैवल एडवाइजरी और व्यापारिक बातचीत में देरी, इस बात का संकेत हो सकते हैं कि अमेरिका फिलहाल अपनी प्राथमिकताओं में पाकिस्तान को अधिक महत्व दे रहा है.
भारत के लिए विकल्प और कूटनीतिक रास्ते
भारत को बदलते समीकरणों में संयम और दीर्घकालिक रणनीति की आवश्यकता है. संभावित नीति विकल्प निम्न हो सकते हैं:
पाकिस्तान में लोकतंत्र का समर्थन: भारत को स्पष्ट रूप से लोकतांत्रिक संस्थानों के पक्ष में खड़ा होना चाहिए, जिससे पाकिस्तान के भीतर जनता और सिविल सोसायटी को सशक्त किया जा सके.
कूटनीतिक पुनर्संतुलन: अमेरिका के साथ संवाद को और प्रगाढ़ किया जाना चाहिए, विशेषकर ट्रंप या किसी अन्य प्रशासन की वापसी की संभावना को ध्यान में रखते हुए.
चीन-पाक गठबंधन की काट: भारत को क्वाड (QUAD), यूरोपीय संघ और पश्चिम एशियाई देशों के साथ गहरे और व्यापक रणनीतिक सहयोग विकसित करने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए.
आंतरिक सैन्य और साइबर तैयारी: पाकिस्तान और चीन के बढ़ते तकनीकी सहयोग के बीच भारत को अपनी सैन्य तैयारियों के साथ-साथ साइबर सुरक्षा तंत्र को भी अधिक सुदृढ़ करना होगा.
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