वॉशिंगटन, डीसी: अमेरिकी सीनेट में शुक्रवार को एक अहम प्रस्ताव को खारिज कर दिया गया, जिसका उद्देश्य राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप को ईरान के खिलाफ किसी भी भविष्य की सैन्य कार्रवाई से पहले कांग्रेस की अनुमति लेने के लिए बाध्य करना था. यह प्रस्ताव डेमोक्रेटिक सीनेटर टिम केन द्वारा पेश किया गया था और इसका समर्थन विपक्षी दल कर रहा था, जबकि ट्रंप की रिपब्लिकन पार्टी ने इसका कड़ा विरोध किया.
क्या था प्रस्ताव का उद्देश्य?
प्रस्ताव का उद्देश्य राष्ट्रपति की सैन्य शक्तियों पर नियंत्रण रखना था, खासकर ईरान जैसे संवेदनशील मुद्दों पर. प्रस्ताव में यह मांग की गई थी कि अमेरिका, संविधान के तहत, केवल तब ही सैन्य कार्रवाई करे जब उस पर हमला हुआ हो या जब कांग्रेस इसकी अनुमति दे. सीनेटर टिम केन का तर्क था कि हालिया वर्षों में कार्यकारी शाखा द्वारा सैन्य निर्णय लेने में "एकतरफा रवैया" अपनाया गया है, जिसे लोकतांत्रिक ढांचे में संतुलित करने की ज़रूरत है.
सीनेट में हार: रिपब्लिकन बहुमत बना दीवार
सीनेट में रिपब्लिकन पार्टी के पास 100 में से 53 सीटें हैं और अधिकांश रिपब्लिकन सीनेटरों ने इस प्रस्ताव के खिलाफ मतदान किया. उन्होंने ट्रंप के पहले से किए गए सैन्य निर्णयों — जैसे कि ईरान के तीन परमाणु प्रतिष्ठानों पर हालिया हमले — का समर्थन किया और राष्ट्रपति को 'आसन्न खतरे' से निपटने के लिए व्यापक स्वतंत्रता देने की आवश्यकता बताई.
ट्रंप का स्पष्ट संकेत: जरूरत पड़ी तो फिर हमला करेंगे
एक प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान जब डोनाल्ड ट्रंप से पूछा गया कि यदि परिस्थितियाँ उत्पन्न होती हैं तो क्या वह ईरान के खिलाफ फिर से हमला करने को तैयार होंगे, तो उन्होंने बेझिझक कहा, "बिलकुल, बिना किसी हिचकिचाहट के." ट्रंप की यह टिप्पणी इस बात का संकेत है कि वे कार्यकारी अधिकारों के तहत त्वरित और आक्रामक सैन्य फैसले लेने के लिए स्वतंत्र महसूस करते हैं — भले ही वह निर्णय कांग्रेस की सहमति के बिना क्यों न लिया जाए.
ईरान की प्रतिक्रिया: वार्ता की संभावना अब और जटिल
ईरान के विदेश उपमंत्री अब्बास अराघची ने पुष्टि की है कि अमेरिकी हमलों से उनके तीन महत्वपूर्ण परमाणु ठिकानों को “गंभीर क्षति” हुई है. उन्होंने यह भी स्वीकार किया कि इस घटना ने अमेरिका के साथ किसी संभावित बातचीत को और अधिक जटिल बना दिया है.
उन्होंने कहा, "हम कूटनीति के लिए दरवाज़े बंद नहीं कर रहे, लेकिन जो हुआ है, वह हमारे विश्वास को कमजोर करता है."
परमाणु समझौते का विघटन और ट्रंप का दृष्टिकोण
ईरान और अमेरिका के बीच तनाव का यह नया दौर 2018 में उस समय शुरू हुआ था जब ट्रंप प्रशासन ने 2015 के Joint Comprehensive Plan of Action (JCPOA) से अमेरिका को एकतरफा रूप से अलग कर लिया था. इस समझौते के तहत ईरान ने अपने यूरेनियम संवर्धन कार्यक्रम को सीमित करने पर सहमति दी थी, जिसके बदले में उसे प्रतिबंधों से राहत दी गई थी.
हालांकि, अब जबकि समझौता प्रभावहीन हो गया है, ट्रंप प्रशासन ने कई बार संकेत दिया है कि वह ईरान के साथ एक "बेहतर" समझौते के लिए वार्ता को तैयार है — लेकिन ईरान इस पर स्पष्ट नहीं है कि ऐसी वार्ता किस हद तक विश्वसनीय और संतुलित होगी.
आगे का रास्ता: सैन्य कार्रवाई या कूटनीतिक पहल?
वर्तमान परिदृश्य में अमेरिका की नीति दो रास्तों पर चलती दिख रही है — एक ओर ट्रंप प्रशासन सैन्य दबाव बनाए रखने की रणनीति अपनाए हुए है, तो दूसरी ओर वह बातचीत के विकल्प खुले रखने की बात भी करता है.
सीनेट का हालिया फैसला यह स्पष्ट करता है कि अमेरिकी राजनीतिक तंत्र में ईरान नीति को लेकर गंभीर मतभेद मौजूद हैं. जहां एक ओर रिपब्लिकन पार्टी सैन्य विकल्पों का समर्थन कर रही है, वहीं डेमोक्रेट्स कूटनीति और संसदीय निगरानी को प्राथमिकता दे रहे हैं.
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