ईरान पर मिसाइलें बरस रही थीं, पुतिन-जिनपिंग एक-दूसरे का मुंह ताक रहे थे... क्या ट्रंप के सनकपन से डर गए रूस-चीन?

    इजरायल और ईरान के बीच हाल के संघर्ष ने न सिर्फ मध्य पूर्व की राजनीति को गर्माया है, बल्कि वैश्विक ताकतों की प्रतिक्रियाओं को भी नए सिरे से उजागर किया है.

    Iran Putin Jinping Russia China scared of Trump
    पुतिन-जिनपिंग-ट्रंप | Photo: ANI

    इजरायल और ईरान के बीच हाल के संघर्ष ने न सिर्फ मध्य पूर्व की राजनीति को गर्माया है, बल्कि वैश्विक ताकतों की प्रतिक्रियाओं को भी नए सिरे से उजागर किया है. ऐसे में चीन की भूमिका पर खासा ध्यान गया, जो पारंपरिक तौर पर ईरान का मजबूत सहयोगी माना जाता रहा है. हालांकि चीन ने इस बार स्थिति को संभालने में खुद को काफी संयमित रखा और सीधे तौर पर कोई ठोस कदम उठाने से बचा.

    कूटनीतिक बयानबाजी तक सीमित रहा चीन

    13 जून को इजरायल ने ईरान पर हमला किया, तब चीन ने इस हमले की कड़ी निंदा की थी. चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन से बात कर संघर्ष खत्म करने के लिए संघर्ष विराम की अपील की. चीनी विदेश मंत्री वांग यी ने ईरान के समकक्ष से संवाद बनाए रखा और तनाव कम करने की बात कही. परंतु चीन की कार्रवाई केवल कूटनीतिक बयानबाजी तक सीमित रही. न तो उसने ईरान को कोई सैन्य सहायता दी, न ही संघर्ष में सीधे शामिल होने की कोई इच्छा दिखाई.

    चीन के कूटनीतिक और रणनीतिक विश्लेषक जूड ब्लैंचेट के अनुसार, बीजिंग के पास न तो कूटनीतिक जरूरत के अनुरूप प्रभाव डालने की क्षमता है, न ही जोखिम उठाने की तैयारियां, जिससे वह इस तेजी से बदलते और अस्थिर मध्य पूर्व के हालात में सक्रिय भूमिका निभा सके. नानजिंग विश्वविद्यालय के डीन झू फेंग भी मानते हैं कि मध्य पूर्व की अस्थिरता चीन के व्यापक व्यापारिक और आर्थिक हितों के लिए नुकसानदेह है, इसलिए चीन इसे बढ़ावा देने या इसमें उलझने के पक्ष में नहीं है.

    ईरानी तेल आपूर्ति चीन के लिए बहुत जरूरी

    अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने युद्धविराम के बाद सोशल मीडिया पर संकेत दिए कि चीन ईरान से तेल की खरीद जारी रखेगा, जो यह दर्शाता है कि ईरानी तेल आपूर्ति चीन के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है. अमेरिकी रिपोर्ट के मुताबिक, ईरान से निर्यात होने वाले लगभग 80 से 90 प्रतिशत तेल का उपभोग चीन करता है. इससे यह साफ होता है कि चीन की आर्थिक स्थिरता के लिए ईरान का तेल बेहद आवश्यक है.

    चीन की रणनीति स्पष्ट है — वह जोखिम से बचते हुए अपने वाणिज्यिक हितों को सुरक्षित रखना चाहता है. इसके तहत चीन ने न केवल इजरायल-ईरान विवाद में सीधे तौर पर भाग नहीं लिया, बल्कि क्षेत्रीय मध्यस्थता की भूमिका निभाने का दिखावा करते हुए शांतिपूर्ण समाधान की वकालत की. वर्ष 2023 में चीन ने ईरान और सऊदी अरब के बीच कूटनीतिक संवाद को बढ़ावा दिया था, जो उसकी इस नीति की मिसाल है.

    संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के स्थायी सदस्य के रूप में चीन ने रूस और पाकिस्तान के साथ मिलकर ईरान में परमाणु स्थलों पर हमलों की कड़ी निंदा की और तत्काल युद्धविराम की मांग की. हालांकि अमेरिका के वीटो के चलते प्रस्ताव पारित नहीं हो पाया. इसके बावजूद चीन ने अपनी कूटनीतिक सक्रियता जारी रखी, इजरायली हमले के तुरंत बाद विदेश मंत्री वांग यी ने ईरान के समकक्ष से बात कर चीन की स्थिति स्पष्ट की.

    चीन की वैश्विक महत्वाकांक्षा बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव में ईरान एक महत्वपूर्ण भागीदार है. ईरान शंघाई सहयोग संगठन में शामिल हो चुका है, जो अमेरिका के नेतृत्व वाले नाटो का प्रतिद्वंद्वी माना जाता है. दोनों देशों के बीच संयुक्त सैन्य अभ्यास भी होते रहे हैं, जिनमें रूस भी शामिल रहा है. बावजूद इसके, चीन ने इस बार युद्ध में सीधे दखल देने से साफ इनकार किया और अपने आर्थिक और रणनीतिक हितों को प्राथमिकता दी.

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