दूसरी विश्व युद्ध के दौरान 1937 में बीजिंग के पास स्थित मार्को पोलो ब्रिज पर एक छोटी सी झड़प ने पूरी दुनिया को खौफनाक युद्ध की ओर धकेल दिया था. जापान और चीन के बीच इस संघर्ष ने इतना विकराल रूप लिया कि उसने एशिया की राजनीतिक और सैन्य दिशा को हमेशा के लिए बदल दिया. अब लगभग नौ दशकों के बाद, 2025 में वही तनाव फिर से उभर कर सामने आ रहा है, लेकिन इस बार यह युद्ध की बजाय, आसमान और समुद्र की सीमाओं तक सीमित होता दिख रहा है. गोलियों का बजाय, रडार और टोही विमानों के बीच छिड़ी यह हवा की जंग, एक पुराने युद्ध की याद ताजा कर देती है.
जापान की कड़ी आपत्ति
हाल ही में, जापान ने चीन के लड़ाकू विमानों की गतिविधियों को लेकर कड़ी आपत्ति जताई है. जापान के रक्षा मंत्रालय ने बताया कि चीन के JH-7 बमवर्षक विमान ने जापान के ‘YS-11EB’ इलेक्ट्रॉनिक इंटेलिजेंस विमान के पास से दो दिन तक उड़ान भरी. एक बार तो यह विमान महज 30 मीटर की दूरी पर आकर उड़ान भर गया. यह घटना जापान के हवाई क्षेत्र में नहीं हुई, लेकिन इसके कूटनीतिक मायने गहरे हैं. जापान ने चीन को चेतावनी दी है कि इस तरह की हरकतें भविष्य में किसी भी समय टकराव का कारण बन सकती हैं.
चीन की प्रतिक्रिया
चीन ने इस घटना पर फिलहाल कोई आधिकारिक बयान जारी नहीं किया है, लेकिन कुछ हफ्तों पहले ही उसने जापान पर अपने विमानों की निगरानी करने का आरोप लगाया था. यह घटना जापान और चीन के बीच बढ़ते तनाव को लेकर एक और संकेत है. दोनों देशों के बीच यह तनाव केवल सैन्य गतिविधियों तक सीमित नहीं है, बल्कि इसके पीछे ऐतिहासिक घाव, सुरक्षा चिंताएं और क्षेत्रीय शक्ति का संतुलन भी छुपा हुआ है.
इतिहास की गहरी छाया
1937 में जब दूसरा सिनो-जापान युद्ध शुरू हुआ था, तब जापान ने चीन पर कब्जा करने की कोशिश की थी और इसे एक व्यापक संघर्ष के रूप में देखा गया. यह युद्ध केवल एक सैन्य कार्रवाई नहीं थी, बल्कि एक ऐसी स्थिति थी जिसने एशिया की पूरी भू-राजनीति को बदल डाला. जापान ने चीन की राजनीतिक कमजोरी का फायदा उठाने की कोशिश की और उसे लगता था कि यह उसका पूर्वी एशिया में वर्चस्व स्थापित करने का सबसे आसान रास्ता है. हालांकि युद्ध के अंत में जापान को पीछे हटना पड़ा, लेकिन दोनों देशों के बीच अविश्वास का जो बीज बोया गया था, वह आज भी मौजूद है.
आज भी जब जापानी एयर सेल्फ-डिफेंस फोर्स के विमान और चीनी फाइटर जेट एक-दूसरे के बेहद करीब से उड़ते हैं, तो यह सिर्फ सैन्य शक्ति का प्रदर्शन नहीं, बल्कि उस पुराने संघर्ष की पुनरावृत्ति की तरह महसूस होता है.
चीन की रणनीति
पिछले महीने भी चीन के लड़ाकू विमान जापानी निगरानी विमान ‘पी-3सी’ के पास से बेहद करीब गुजरते देखे गए थे. यह घटना उसी समुद्री क्षेत्र में हुई थी, जहां अब चीन के एयरक्राफ्ट कैरियर भी एक साथ ऑपरेशन कर रहे थे. जापान का मानना है कि चीन का यह कदम क्षेत्रीय वर्चस्व स्थापित करने और दबाव बनाने की रणनीति का हिस्सा है. चीन इसे अपनी आत्मरक्षा का अधिकार मानता है, लेकिन जापान इसे एक अप्रत्यक्ष सैन्य चुनौती के रूप में देखता है.
भविष्य की अनिश्चितता
इस तनावपूर्ण स्थिति को देखते हुए एक सवाल लगातार उठता है: क्या जापान और चीन के बीच तीसरे युद्ध का खतरा है? क्या एशिया के दोनों बड़े ताकतवर देश, जो आर्थिक रूप से भी एक-दूसरे के महत्वपूर्ण साझीदार हैं, युद्ध की आग में झोंक दिए जाएंगे? यह केवल सैन्य स्थिति की बात नहीं है, बल्कि दोनों देशों के आपसी रिश्तों और पूरी दुनिया की स्थिरता के लिए यह एक गंभीर चिंता का विषय है.
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