रूस ने तालिबान को दी आधिकारिक मान्यता, वैश्विक कूटनीति में बड़ा बदलाव

    अफगानिस्तान को लेकर वैश्विक राजनीति में एक बड़ा मोड़ उस समय आया जब रूस ने तालिबान सरकार को औपचारिक रूप से मान्यता देने की घोषणा कर दी.

    Russia gives official recognition to Taliban
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    अफगानिस्तान को लेकर वैश्विक राजनीति में एक बड़ा मोड़ उस समय आया जब रूस ने तालिबान सरकार को औपचारिक रूप से मान्यता देने की घोषणा कर दी. राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के आदेश पर मॉस्को ने तालिबान को प्रतिबंधित संगठनों की सूची से हटा दिया, जिससे इस फैसले को एक ऐतिहासिक बदलाव के रूप में देखा जा रहा है. यह कदम ऐसे वक्त पर उठाया गया है जब दुनिया के अधिकांश देश तालिबान को अभी तक एक वैध सरकार के रूप में स्वीकार नहीं कर पाए हैं.

    अतीत से वर्तमान तक: अफगानिस्तान की उलझी कहानी

    सोवियत संघ के दौर में अफगानिस्तान लंबे समय तक रूस-अमेरिका शीत युद्ध का केंद्र बना रहा. उस समय सोवियत सेना ने अफगान भूमि पर दस्तक दी, तो अमेरिका ने पाकिस्तान के जरिये मुजाहिदीन को खड़ा कर जवाबी मोर्चा संभाला. जब सोवियत सेना पीछे हटी, तो अफगानिस्तान में गृहयुद्ध और जातीय टकराव ने तबाही मचाई. इन्हीं हालातों का फायदा उठाकर पाकिस्तान समर्थित तालिबान ने सत्ता पर कब्जा जमा लिया.

    2001 के वर्ल्ड ट्रेड सेंटर हमले के बाद अमेरिका ने एक बार फिर अफगानिस्तान में हस्तक्षेप किया, लेकिन लगभग दो दशक बाद जब 2020 में अमेरिकी फौजें वापस लौट गईं, उसी क्षण तालिबान ने दोबारा काबुल पर नियंत्रण कर लिया.

    रूस का मास्टरस्ट्रोक और भारत के लिए संभावनाएं

    अब जबकि रूस तालिबान को मान्यता देने वाला पहला देश बन गया है, इसे एक कूटनीतिक मास्टरस्ट्रोक के रूप में देखा जा रहा है. भारत और रूस के बीच गहरी मित्रता है और इस घटनाक्रम के बाद भारत के भी तालिबान को मान्यता देने की संभावनाएं बढ़ गई हैं. भारत के पूर्व राजदूत बिक्रम मिस्री पहले ही तालिबान के विदेश मंत्री से मुलाकात कर चुके हैं और ऑपरेशन सिंदूर के समय तालिबान ने भी भारत के पक्ष में बयान दिया था.

    रूस और तालिबान के बीच नया संबंध

    रूसी विदेश मंत्रालय के अनुसार, अफगानिस्तान के नए राजदूत गुल हसन हसन ने मॉस्को में अपनी आधिकारिक मान्यता प्राप्त कर ली है. मंत्रालय ने कहा कि इस कदम से दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय सहयोग को बल मिलेगा. वहीं, तालिबान की ओर से इसे “ऐतिहासिक निर्णय” कहा गया है. तालिबान के विदेश मंत्री अमीर खान मुत्ताकी ने रूस के इस फैसले का स्वागत करते हुए कहा कि यह “अन्य देशों के लिए मिसाल” बनेगा.

    अब तक क्यों नहीं मिली थी मान्यता?

    हालांकि तालिबान ने चीन, यूएई और कुछ अन्य देशों के साथ राजनयिक बातचीत और संपर्क स्थापित किए हैं, लेकिन महिलाओं के अधिकारों पर प्रतिबंध और उनके शिक्षा व कार्यक्षेत्रों से बहिष्कार के चलते उन्हें अंतरराष्ट्रीय मान्यता नहीं मिल सकी थी. 2021 में सत्ता में लौटने के बाद तालिबान ने पहले शासनकाल की तुलना में उदार रुख अपनाने का वादा किया था, लेकिन महिलाओं को नौकरी, पार्क, जिम और सार्वजनिक स्थलों से बाहर कर देना, और छठी कक्षा के बाद लड़कियों की पढ़ाई पर रोक ने दुनिया भर में उसकी छवि को नुकसान पहुंचाया.

    रूस ने क्यों उठाया यह कदम?

    रूसी राष्ट्रपति पुतिन ने यह निर्णय विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव की सलाह पर लिया. मॉस्को का मानना है कि अफगानिस्तान को स्थिर करने के लिए तालिबान से संवाद और सहयोग जरूरी है. अप्रैल में ही रूस ने तालिबान पर लगे कई प्रतिबंधों को हटा दिया था, और अब उसे आधिकारिक रूप से सरकार के रूप में स्वीकार कर लिया गया है. रूस में अफगान राजदूत दिमित्री झिरनोव ने भी इस निर्णय की पुष्टि की और कहा कि यह कदम अफगानिस्तान में शांति और स्थायित्व लाने के उद्देश्य से उठाया गया है.

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