नई दिल्ली: वैश्विक राजनीति आज एक निर्णायक मोड़ पर खड़ी है. अमेरिका की अस्थिर नीतियां, चीन की बढ़ती आक्रामकता और रूस की रणनीतिक वापसी ने पूरी दुनिया के संतुलन को फिर से परिभाषित करना शुरू कर दिया है. ऐसे समय में भारत एक नई रणनीति के साथ उभर रहा है- एकाधिक साझेदारियों पर आधारित ऊर्जा कूटनीति, जो न केवल उसकी ऊर्जा सुरक्षा को मजबूत करती है, बल्कि उसकी विदेश नीति को भी नया आयाम देती है.
हाल ही में भारत और जापान के बीच संपन्न ‘इंडिया-जापान एनर्जी डायलॉग’ इसी रणनीतिक सोच का एक ठोस उदाहरण बनकर उभरा है. इस संवाद में पारंपरिक ऊर्जा से हटकर हरित और स्वच्छ ऊर्जा स्रोतों पर फोकस किया गया जैसे कार्बन कैप्चर टेक्नोलॉजी, बायोफ्यूल्स, क्लीन हाइड्रोजन, ग्रीन केमिकल्स और उन्नत ऊर्जा तकनीकें.
हालांकि यह करार तकनीकी नजरिए से साधारण लगता हो, लेकिन इसके राजनीतिक संकेत बहुत व्यापक हैं खासकर ऐसे समय में जब भारत और अमेरिका के बीच कई मुद्दों पर मतभेद उभरकर सामने आ रहे हैं.
अमेरिका से दूरी क्यों?
बीते दशक में भारत और अमेरिका के बीच रक्षा, सामरिक और तकनीकी साझेदारी में मजबूती आई थी. QUAD, 2 2 वार्ता, और इंडो-पैसिफिक रणनीति जैसे मंचों के जरिए दोनों देशों ने साझा हितों पर कदम मिलाए थे. लेकिन हालिया घटनाक्रम जैसे डोनाल्ड ट्रंप द्वारा व्यापार टैरिफ लागू करना, भारत पर रूस से तेल खरीद को लेकर अमेरिका का दबाव, और कुछ घरेलू मसलों पर अमेरिकी नेताओं की टिप्पणियां इन सबने भारत को ये सोचने पर मजबूर कर दिया कि वह अपनी रणनीतिक स्वायत्तता को बनाए रखने के लिए मल्टी-एलाइंड अप्रोच अपनाए.
भारत अब एकतरफा साझेदारी की जगह विकल्पों की टोकरी तैयार कर रहा है, जिसमें जापान, यूरोप, रूस और अन्य भरोसेमंद सहयोगी देश प्रमुख स्थान पर हैं.
भारत-जापान ऊर्जा सहयोग: एक नया अध्याय
भारत और जापान के बीच हाल में हुई मंत्रीस्तरीय बातचीत में दोनों देशों ने ऊर्जा के भविष्य को लेकर साझा दृष्टिकोण सामने रखा है. इस बैठक में निम्नलिखित क्षेत्रों में सहयोग की सहमति बनी:
इस साझेदारी का उद्देश्य न केवल ऊर्जा के स्रोतों को टिकाऊ बनाना है, बल्कि इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में एक मजबूत, सुरक्षित और विविध ऊर्जा नेटवर्क खड़ा करना भी है.
जापान: भारत का भरोसेमंद ऊर्जा भागीदार क्यों?
भारत-जापान सहयोग कोई नया नहीं है. पिछले कुछ वर्षों में जापान ने भारत के आधारभूत ढांचे में भारी निवेश किया है. दिल्ली मेट्रो और मुंबई-अहमदाबाद बुलेट ट्रेन जैसे प्रोजेक्ट्स इसकी मिसाल हैं. अब यह साझेदारी ऊर्जा क्षेत्र तक विस्तारित हो रही है. इसके पीछे कई ठोस कारण हैं:
तकनीकी श्रेष्ठता
जापान हाइड्रोजन, बायोफ्यूल्स और ऊर्जा कुशल प्रणालियों में अग्रणी देश है. भारत को इन क्षेत्रों में विशेषज्ञता की जरूरत है, जो जापान आसानी से दे सकता है.
राजनीतिक स्थिरता
जापान आमतौर पर व्यापार या रणनीतिक सहयोग में शर्तें थोपने से बचता है. इसके उलट अमेरिका कई बार प्रतिबंधों या दबाव की राजनीति करता रहा है.
सामरिक संतुलन
इंडो-पैसिफिक में चीन की आक्रामकता के जवाब में जापान और भारत एक मजबूत क्षेत्रीय धुरी बना सकते हैं. दोनों देश मिलकर क्षेत्र में सामरिक संतुलन कायम रखने में सक्षम हैं.
5.95 लाख करोड़ रुपये का संभावित निवेश
पीएम नरेंद्र मोदी आगामी 30 अगस्त को जापान यात्रा पर जाएंगे, जहां उनकी मुलाकात जापान के प्रधानमंत्री शिगेरू इशिबा से होगी. रिपोर्ट्स के अनुसार, जापान भारत में लगभग 5.95 लाख करोड़ रुपये के निवेश की घोषणा कर सकता है. यह निवेश अगले 10 वर्षों में बुनियादी ढांचा, टेक्नोलॉजी और ऊर्जा के क्षेत्रों में होगा. यह निवेश केवल आर्थिक महत्व नहीं रखता, बल्कि भविष्य के वैश्विक सहयोग की दिशा भी तय करता है.
इंडो-पैसिफिक में रणनीतिक संदेश
भारत और जापान की यह नई ऊर्जा साझेदारी सिर्फ तकनीकी सहयोग नहीं है, यह रणनीतिक संदेश भी है. इसका मकसद यह सुनिश्चित करना है कि इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में ऊर्जा आपूर्ति का नियंत्रण किसी एक देश विशेषकर चीन के हाथों में न हो.
यह बैठक ऐसे समय में हुई है, जब:
इस पृष्ठभूमि में यह सहयोग भारत की ओर से एक चालाक, रणनीतिक कदम के रूप में देखा जा रहा है.
भारत को क्या लाभ होंगे?
1. ऊर्जा आत्मनिर्भरता में मजबूती
भारत को हरित और टिकाऊ ऊर्जा तकनीक की विश्वसनीय आपूर्ति मिलेगी, जिससे भविष्य में आयात पर निर्भरता कम होगी.
2. तकनीकी नवाचारों तक सीधा एक्सेस
हाइड्रोजन फ्यूल सेल, बायोफ्यूल्स और स्मार्ट ग्रिड्स जैसी उन्नत तकनीकों का लाभ भारत को जापान के माध्यम से मिलेगा.
3. रणनीतिक स्वतंत्रता का प्रदर्शन
अमेरिका और चीन दोनों को यह संदेश जाएगा कि भारत अपने राष्ट्रीय हितों को सर्वोपरि रखते हुए स्वतंत्र विदेश नीति अपनाता है.
4. क्षेत्रीय नेतृत्व का विस्तार
भारत-जापान मिलकर इंडो-पैसिफिक में चीन की एकाधिकारवादी नीति का सामूहिक जवाब देने की स्थिति में हैं.
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