India-Russia Partnership: भारत ने अमेरिकी दबाव और व्यापारिक पाबंदियों के बावजूद रूस से तेल के आयात को जारी रखा है. अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा रूस से तेल खरीदने पर 50 प्रतिशत टैरिफ लगाने के बाद भी भारत ने नवंबर 2025 में प्रतिदिन लगभग 17 लाख बैरल रूसी क्रूड तेल खरीदा. भारत और रूस के बीच सहयोग को लेकर हाल में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के बीच हुई प्रेस कॉन्फ्रेंस में दोनों नेताओं ने ऊर्जा क्षेत्र में साझेदारी जारी रखने का भरोसा दिया.
साथ ही दोनों देशों ने स्थानीय मुद्राओं में लेन-देन को बढ़ावा देने पर भी जोर दिया, जो अमेरिकी डॉलर पर अमेरिका का प्रभुत्व चुनौती देने वाला कदम माना जा रहा है.
चीन के बाद रूस का दूसरा सबसे बड़ा ग्राहक भारत
‘सेंटर फॉर रिसर्च ऑन एनर्जी एंड क्लीन एयर’ (CREA) के आंकड़े बताते हैं कि अक्टूबर 2025 के मुकाबले नवंबर में भारत ने चार प्रतिशत अधिक रूसी तेल खरीदा. पिछले पांच महीनों की तुलना में यह सबसे अधिक मात्रा है. वैश्विक स्तर पर भारत तीसरा सबसे बड़ा क्रूड इंपोर्टर है और रूस के तेल के मामले में चीन के बाद दूसरा सबसे बड़ा आयातक बन गया है.
हालांकि अमेरिकी टैरिफ और प्रतिबंधों के कारण प्राइवेट कंपनियों ने आयात में कमी की, लेकिन सरकारी कंपनियों ने इसे बढ़ा दिया. नवंबर में सरकारी कंपनियों ने रूसी तेल की खरीद 22 प्रतिशत तक बढ़ाई. दिसंबर में यह मात्रा 12 लाख बैरल प्रतिदिन से बढ़कर महीने के अंत तक 15 लाख बैरल तक पहुंच सकती है. इंडियन ऑयल और भारत पेट्रोलियम जैसी सरकारी कंपनियां भी रूस से तेल की खरीदारी लगातार कर रही हैं.
प्रतिबंधों के बीच भारत और रूस ने खोजा रास्ता
रॉयटर्स की रिपोर्ट के अनुसार, रूस की तेल कंपनियां घरेलू बाजार में अदला-बदली करके एक्सपोर्ट जारी रख रही हैं. जो खेपें लोकल रिफाइनरियों के लिए थी, उन्हें पाबंदी से मुक्त कंपनियों के माध्यम से अंतरराष्ट्रीय बाजार में भेजा जा रहा है. इस प्रक्रिया से अमेरिका द्वारा लगाए गए आर्थिक प्रतिबंधों का उल्लंघन किए बिना भारत को रूसी तेल मिल रहा है.
CREA के डेटा के अनुसार जनवरी 2026 में रूसी तेल प्रति बैरल लगभग 6 डॉलर की छूट के साथ भारत को मिल रहा है, जो अगस्त 2025 की तुलना में दो-तीन गुना अधिक है.
अमेरिकी डॉलर का दबदबा चुनौती में
अमेरिका और यूरोप पर निर्भर मुद्रा प्रणाली पर भारत रूस और चीन के साथ मिलकर प्रभाव डालने की तैयारी कर रहा है. तेल व्यापार पर परंपरागत रूप से अमेरिकी डॉलर का प्रभुत्व लगभग 89 प्रतिशत है, जबकि 2023 में पांचवां हिस्सा गैर-अमेरिकी मुद्रा में हुआ. विश्लेषक डॉ. ब्रह्मचेलानी के अनुसार, पुतिन की दिसंबर 2025 में नई दिल्ली यात्रा केवल कूटनीतिक मुलाकात नहीं थी, बल्कि यह एक भू-राजनीतिक संकेत भी था. इसमें स्विफ्ट प्रणाली को दरकिनार करने और अमेरिकी डॉलर पर निर्भरता कम करने के लिए नए भुगतान चैनल बनाने की दिशा में कदम उठाए जा सकते हैं.
पश्चिमी पाबंदियों के बावजूद सहयोग जारी
अमेरिका ने भारत पर अतिरिक्त टैरिफ और व्यापारिक दबाव डाला, लेकिन भारत ने स्पष्ट कर दिया कि वह रूस के साथ अपने रणनीतिक और ऊर्जा सहयोग को जारी रखेगा. पुतिन की भारत यात्रा ने यह संदेश भी दिया कि भारत ‘हमारे साथ या हमारे खिलाफ’ वाले द्विभाजन को स्वीकार नहीं करता और अपनी स्वायत्त नीति पर कायम रहेगा.
भारत ना केवल रूसी तेल खरीद रहा है, बल्कि उसे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी निर्यात कर रहा है. CREA के अनुसार, भारत और तुर्की की छह रिफाइनरियों ने आंशिक रूप से रूसी तेल को रिफाइन करके यूरोपीय संघ, अमेरिका, ब्रिटेन, ऑस्ट्रेलिया और कनाडा को भेजा. अनुमानित मूल्य करीब 81 करोड़ यूरो है, जिसमें सबसे अधिक मात्रा यूरोपीय संघ को गई और अमेरिका दूसरे नंबर पर रहा.
ब्रिक्स और वैश्विक वित्तीय रणनीति
भारत में अगले साल होने वाली ब्रिक्स बैठक के मद्देनजर डॉलर के प्रभुत्व को चुनौती देने के लिए रूस-चीन-भारत का गठजोड़ संभव है. वैश्विक वित्तीय चुनौतियों और आक्रामक अमेरिकी विदेश नीतियों के बीच भारत अपने आर्थिक हितों को संरक्षित करने और अमेरिकी डॉलर व यूरो पर वैश्विक निर्भरता कम करने की दिशा में काम कर रहा है.
भारत की यह रणनीति न केवल ऊर्जा सुरक्षा सुनिश्चित करेगी, बल्कि वैश्विक वित्तीय और भू-राजनीतिक संतुलन में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है.
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