कब और किसे दी जाती है इच्छामृत्यु की इजाजत? गाजियाबाद में जवान बेटे के लिए माता-पिता ने की मांग

    कभी बेटे के उज्ज्वल भविष्य के सपने देखने वाले एक पिता के लिए अब हर दिन असहनीय दर्द लेकर आता है. गाजियाबाद के रहने वाले इस शख्स ने अपने 32 वर्षीय बेटे हरीश के लिए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है.

    How and where to apply for euthanasia in india
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    कभी बेटे के उज्ज्वल भविष्य के सपने देखने वाले एक पिता के लिए अब हर दिन असहनीय दर्द लेकर आता है. गाजियाबाद के रहने वाले इस शख्स ने अपने 32 वर्षीय बेटे हरीश के लिए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है. हरीश पिछले 13 वर्षों से क्वाड्रिप्लेजिया जैसी गंभीर बीमारी से जूझ रहा है और पूरी तरह बिस्तर पर निर्भर है. लंबे इलाज और निरंतर पीड़ा के बाद पिता ने बेटे को पैसिव यूथनेशिया यानी इच्छामृत्यु देने की अनुमति मांगी है.


    हरीश का इलाज दिल्ली के एम्स (AIIMS) में चल रहा है. डॉक्टरों के मुताबिक उसकी हालत में सुधार की संभावना लगभग शून्य है. शरीर का अधिकांश हिस्सा काम नहीं करता और वह हर पल दूसरों की मदद पर निर्भर है. चिकित्सकीय राय के अनुसार, उसकी स्थिति स्थायी है और मेडिकल साइंस के पास फिलहाल कोई ऐसा इलाज नहीं है, जिससे वह सामान्य जीवन की ओर लौट सके.

    सुप्रीम कोर्ट में 13 जनवरी को होगी सुनवाई

    इस संवेदनशील मामले में सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई के लिए 13 जनवरी की तारीख तय की है. जस्टिस जे. बी. पारडीवाला की अध्यक्षता वाली पीठ इस याचिका पर विचार करेगी. कोर्ट यह तय करेगा कि मौजूदा परिस्थितियों में पैसिव यूथनेशिया की अनुमति दी जा सकती है या नहीं.

    भारत में इच्छामृत्यु के सख्त नियम

    भारत में इच्छामृत्यु को लेकर कानून बेहद सख्त है. केवल पैसिव यूथनेशिया की ही अनुमति दी जाती है, वह भी विशेष परिस्थितियों में. यह तभी संभव है जब मरीज किसी लाइलाज या अंतिम चरण की बीमारी से पीड़ित हो और डॉक्टर यह स्पष्ट कर दें कि उसके ठीक होने की कोई उम्मीद नहीं है.

    मरीज की सहमति और मानसिक स्थिति जरूरी

    इच्छामृत्यु की मांग के लिए यह भी जरूरी होता है कि संबंधित व्यक्ति अपनी बीमारी और हालत को समझने की स्थिति में हो. उसका मानसिक रूप से होश में होना बेहद अहम है. इसके साथ ही परिवार की सहमति भी अनिवार्य मानी जाती है. परिवार को इस फैसले की जानकारी होनी चाहिए और वे इसका विरोध न करें.

    पैसिव यूथनेशिया में क्या होता है?

    पैसिव यूथनेशिया के तहत मरीज से लाइफ सपोर्ट सिस्टम हटा लिया जाता है, जिससे उसकी मृत्यु प्राकृतिक रूप से हो जाती है. इसमें किसी तरह का सक्रिय हस्तक्षेप नहीं किया जाता, बल्कि केवल जीवन को कृत्रिम रूप से बनाए रखने वाले साधनों को बंद किया जाता है.

    लिविंग विल और मेडिकल बोर्ड की भूमिका

    यदि कोई व्यक्ति इच्छामृत्यु चाहता है, तो उसके पास लिविंग विल होना जरूरी होता है. इसके बाद मेडिकल बोर्ड मरीज की हालत, मेडिकल रिपोर्ट और लिविंग विल की जांच करता है. बोर्ड की सिफारिश मिलने पर मामला हाई कोर्ट या सुप्रीम कोर्ट तक जाता है, जहां अंतिम फैसला सुनाया जाता है.

    किन बीमारियों में मिल सकती है अनुमति?

    भारत में पैसिव यूथनेशिया आमतौर पर एडवांस स्टेज कैंसर, स्थायी कोमा, गंभीर न्यूरोलॉजिकल डिसऑर्डर या ब्रेन डेड जैसी स्थितियों में दी जाती है, जब डॉक्टरों की राय में मरीज के बचने की कोई संभावना नहीं होती और कोर्ट से मंजूरी मिल जाती है.यह मामला सिर्फ कानून का नहीं, बल्कि एक पिता की टूटती उम्मीदों और बेटे की अंतहीन पीड़ा का भी प्रतीक बन गया है, जिस पर अब पूरे देश की नजरें टिकी हैं.

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