वॉशिंगटन डीसी: अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने हाल ही में घोषणा की है कि उनकी सरकार जल्द ही दवाओं पर टैरिफ लगाने की योजना बना रही है. इस कदम का उद्देश्य विदेशी फार्मा कंपनियों को अमेरिका में वापस लाना और घरेलू दवा उद्योग को मजबूत करना है.
ट्रंप का कहना है कि कई देशों में सरकारें दवाओं की कीमतों को नियंत्रित करती हैं, जिससे ये कंपनियां वहां सस्ती दरों पर दवाएं बेचती हैं. हालांकि, अमेरिका में दवा की कीमतें काफी अधिक होती हैं. ट्रंप प्रशासन का मानना है कि टैरिफ लगाने से ये कंपनियां अमेरिका में उत्पादन बढ़ाने के लिए मजबूर हो जाएंगी.
भारत पर संभावित प्रभाव
अगर अमेरिका यह नीति लागू करता है, तो भारतीय दवा कंपनियों पर इसका प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है. भारत, अमेरिका को 40% जेनेरिक दवाओं का निर्यात करता है, और अमेरिकी बाजार से होने वाली आमदनी में गिरावट संभावित है. विशेषज्ञों का मानना है कि अगर टैरिफ का आधा भार उपभोक्ताओं पर डाला जाता है, तो भारतीय फार्मा कंपनियों की कमाई पर 1% से 7% तक का असर हो सकता है.
अंतरराष्ट्रीय मूल्य असमानता पर ट्रंप
ट्रंप ने एक उदाहरण देते हुए कहा कि लंदन में जो दवा 88 डॉलर में उपलब्ध है, वही अमेरिका में 1300 डॉलर में बेची जाती है. उन्होंने वादा किया कि इस प्रकार की मूल्य असमानता को समाप्त किया जाएगा.
टैरिफ नीति और फार्मा कंपनियों की रणनीति
राष्ट्रपति ट्रंप का मानना है कि अमेरिका दुनिया का सबसे बड़ा दवा बाजार है और इस कारण फार्मा कंपनियां अमेरिकी बाजार को छोड़ नहीं पाएंगी. यदि वे अमेरिका में उत्पादन नहीं बढ़ाती हैं, तो उन्हें भारी टैक्स का सामना करना पड़ेगा. हालांकि, उन्होंने अभी तक टैरिफ लगाने की तारीख या उसकी दर का खुलासा नहीं किया है.
अमेरिका की मौजूदा टैरिफ नीतियां
हाल ही में, अमेरिका ने "लिबरेशन डे" टैरिफ के तहत 5 अप्रैल से विभिन्न देशों पर 10% बेसलाइन टैरिफ लागू किया. 9 अप्रैल से "रेसिप्रोकल टैरिफ" भी प्रभावी हुआ, लेकिन दवा उद्योग को इससे छूट दी गई थी.
भारत से आयात होने वाले अन्य उत्पादों पर 26% टैरिफ पहले ही लागू किया जा चुका है. हालांकि, अभी तक अमेरिकी प्रशासन ने भारतीय या अन्य देशों से आने वाली दवाओं पर टैरिफ नहीं लगाया है.
जेनेरिक दवाओं का महत्व और प्रभाव
जेनेरिक दवाएं, मूल ब्रांडेड दवाओं की रासायनिक प्रतिकृति होती हैं. इनकी कीमत कम होती है क्योंकि इनके निर्माण में रिसर्च और डेवलपमेंट की लागत नहीं जुड़ती. उदाहरण के लिए, क्रॉसिन एक ब्रांडेड दवा है जबकि पेरासिटामॉल उसका जेनेरिक संस्करण है.
अमेरिका में, डॉक्टर 90% तक जेनेरिक दवाएं लिखते हैं, जिससे हेल्थकेयर लागत में भारी कमी आती है. भारत जेनेरिक दवाओं का सबसे बड़ा उत्पादक है और इसका वैश्विक हेल्थकेयर पर महत्वपूर्ण प्रभाव है. यदि ट्रंप प्रशासन द्वारा टैरिफ लगाया जाता है, तो यह अमेरिका में दवा की लागत बढ़ा सकता है और भारतीय फार्मा उद्योग की प्रतिस्पर्धात्मक स्थिति को प्रभावित कर सकता है.
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