पाकिस्तान के साथ मिलकर चीन रच रहा साजिश, खुल गई ड्रैगन की पोल! जानिए क्या है पूरा मामला

    शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) की बैठक में यह जटिलता साफ तौर पर देखने को मिली. चीन और पाकिस्तान ने मिलकर उस बयान की भाषा को नरम करने की कोशिश की, जिसमें पहलगाम में हुए आतंकवादी हमले का उल्लेख नहीं था.

    China plotting conspiracy with Pakistan
    एस जयशंकर | Photo: ANI

    पिछले कुछ वर्षों में भारत-चीन संबंधों की तस्वीर कई बार बदली है. कभी अचानक सीमा पर खूनी टकराव, तो कभी दोस्ताना बातें और सहयोग के संकेत. लेकिन इन सबके बीच भरोसे की कमी आज भी सबसे बड़ी बाधा बनी हुई है. चार साल पहले गलवान घाटी में हुई हिंसक झड़प ने दोनों देशों के बीच तनाव की नई लकीरें खींच दीं. उस संघर्ष की याद अभी ताजा है, और भारत की सरकार चीन को लेकर सतर्क ही नहीं, बल्कि सचेत भी है.

    'रिश्तों में और जटिलताएं मत जोड़िए'

    शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) की बैठक में यह जटिलता साफ तौर पर देखने को मिली. चीन और पाकिस्तान ने मिलकर उस बयान की भाषा को नरम करने की कोशिश की, जिसमें पहलगाम में हुए आतंकवादी हमले का उल्लेख नहीं था. भारत ने इसे स्वीकार नहीं किया. रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने इस पर अपनी स्थिति स्पष्ट की और कहा, “रिश्तों में और जटिलताएं मत जोड़िए.” यह बात भारत की चिंता को बयां करती है कि चीन के साथ भरोसे का आधार कमजोर है.

    भारत एससीओ जैसे मंचों को पूरी तरह भरोसेमंद नहीं मानता. उसके लिए यह संगठन अक्सर चीन और पाकिस्तान का गठजोड़ प्रतीत होता है. फिर भी, भारत अभी भी एससीओ का हिस्सा है, लेकिन उसने अपनी स्पष्ट सीमाएं और शर्तें रख दी हैं. चीन दौरे को लेकर भी भारत काफी सतर्क है और किसी भी कदम को सोच-समझकर ही आगे बढ़ा रहा है.

    चीन और पाकिस्तान के बढ़ते नजदीकियों ने भारत की चिंता को और बढ़ा दिया है. पाकिस्तान के विदेश मंत्री इसहाक डार का हालिया चीन दौरा, ऑपरेशन सिंधूर के तुरंत बाद हुआ, जहां CPEC (चीन-पाकिस्तान आर्थिक कॉरिडोर) को अफगानिस्तान तक बढ़ाने पर चर्चा हुई. यह भारत के लिए एक बड़ी चुनौती है, क्योंकि यह क्षेत्रीय सुरक्षा के लिहाज से बेहद संवेदनशील है.

    अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भी चीन की मंशा पर सवाल

    ब्रिक्स जैसे अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भी चीन की मंशा पर सवाल उठ रहे हैं. खबर है कि चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग ब्राजील में होने वाले ब्रिक्स सम्मेलन में शामिल नहीं होंगे, जबकि प्रधानमंत्री मोदी को वहां विशेष तौर पर आमंत्रित किया गया है. यह राजनीतिक संकेत बहुत कुछ कहते हैं, खासकर भारत-चीन के रिश्तों की वर्तमान स्थिति को ध्यान में रखकर.

    आतंकवाद के मुद्दे पर भी चीन का रवैया भारत को स्वीकार नहीं है. चीन ने पहले भी संयुक्त राष्ट्र में आतंकवादी मसूद अज़हर को वैश्विक आतंकवादी घोषित करने से रोक लगाई है. साथ ही, भारत-पाकिस्तान सीमा पर हुए संघर्षों में पाकिस्तान ने चीन निर्मित हथियारों का इस्तेमाल किया है. अब चीन ने पाकिस्तान को और भी आधुनिक लड़ाकू विमान और वायु रक्षा प्रणाली देने का वादा किया है, जो भारत के लिए चिंता का विषय है.

    भारत-चीन के बीच पिछले साल अक्टूबर में प्रधानमंत्री मोदी और शी जिनपिंग की मुलाकात हुई थी, लेकिन गलवान संघर्ष के बाद दोनों देशों के रिश्ते पूरी तरह सामान्य नहीं हो सके हैं. भरोसे की कमी अब भी है, और यह भरोसा किसी भी समय टूट सकता है.

    मानसरोवर यात्रा को लेकर कई समझौतों को अंतिम रूप

    चीन की स्थिति और भी जटिल है. बलूचिस्तान को लेकर उसका रवैया, उइगर मुसलमानों पर हो रहे अत्याचार और CPEC प्रोजेक्ट पर बलूच विद्रोहियों का खतरा यह सब उसकी आंतरिक और बाहरी चुनौतियों को दर्शाता है. भारत भी अपनी ओर से प्रयास कर रहा है कि वह रेयर अर्थ मेटल्स और अन्य महत्वपूर्ण क्षेत्रों में आत्मनिर्भर बने, जिससे चीन की वैश्विक पकड़ कमजोर पड़े.

    हालांकि, इस बीच कुछ सकारात्मक पहल भी हुई हैं. इस महीने चीन के उप विदेश मंत्री भारत आए और व्यापार, उड़ानों और कैलाश मानसरोवर यात्रा को लेकर कई समझौतों को अंतिम रूप दिया गया. छह साल बाद यह यात्रा फिर से शुरू हो गई है और पहला जत्था तिब्बत पहुंच चुका है.

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