भारत और पाकिस्तान के बीच दशकों पुराना कश्मीर विवाद अब एक नए मोड़ पर पहुंचता दिख रहा है. खासकर जब भारत की ओर से हाल के दिनों में पाक अधिकृत कश्मीर (पीओके) को लेकर तेवर सख्त हुए हैं. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से लेकर देश के रक्षा और विदेश मंत्री तक ने पाकिस्तान से खुलकर पीओके खाली करने की मांग की है.
लेकिन, अब इस विवाद में एक नया नाम सामने आया है — चीन. पाकिस्तान ने पहली बार सार्वजनिक रूप से यह कहा है कि कश्मीर मुद्दे में सिर्फ भारत और पाकिस्तान ही नहीं, बल्कि चीन भी एक पक्ष है.
यह बयान पाकिस्तान के सैन्य प्रवक्ता, इंटर-सर्विसेज पब्लिक रिलेशंस (ISPR) के महानिदेशक अहमद शरीफ चौधरी ने स्काई न्यूज को दिए एक इंटरव्यू में दिया है. उन्होंने स्पष्ट कहा कि कश्मीर विवाद में चीन की भी हिस्सेदारी है. सवाल उठता है — आखिर अब क्यों? पाकिस्तान को अचानक चीन को इस मामले में शामिल करने की जरूरत क्यों पड़ी?
इस रणनीति के पीछे दो बड़ी वजहें मानी जा रही हैं:
1. चीन से सैन्य और रणनीतिक गठजोड़ को मज़बूत करना
पाकिस्तान, चीन को अपना सबसे बड़ा रणनीतिक साझेदार मानता है. बीते वर्षों में पाकिस्तान ने चीन से बड़े पैमाने पर हथियार खरीदे हैं — आंकड़ों के मुताबिक, पिछले पांच सालों में पाकिस्तान द्वारा खरीदे गए कुल हथियारों में से 81% चीन से आए हैं.
इसके अलावा, चीनी एयर डिफेंस सिस्टम भी फिलहाल पाकिस्तान में तैनात है. ऐसे में भारत से बढ़ते तनाव के बीच पाकिस्तान यह चाहता है कि चीन उसकी पीठ पर खड़ा रहे और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर दबाव बनाने में मदद करे. चीन को 'तीसरे पक्ष' के रूप में पेश करना इसी रणनीति का हिस्सा है.
2. पीओके में चीन का भारी निवेश
पाक अधिकृत कश्मीर में चीन ने करीब 300 मिलियन डॉलर का निवेश किया है. यह निवेश मुख्यतः चीन-पाकिस्तान इकोनॉमिक कॉरिडोर (CPEC) के तहत हुआ है, जो पाकिस्तान के लिए एक महत्वपूर्ण आर्थिक lifeline है.
अगर भारत इस क्षेत्र में किसी भी तरह की सैन्य कार्रवाई करता है, तो इसका सीधा असर चीन की परियोजनाओं और निवेश पर पड़ेगा. पाकिस्तान चीन को एक 'हितधारक' के रूप में पेश कर यह संदेश देना चाहता है कि पीओके में भारत की कोई भी कार्रवाई सिर्फ पाकिस्तान को नहीं, चीन को भी प्रभावित करेगी.
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