बांग्लादेश अब भारत के लिए सिर्फ़ एक पड़ोसी देश नहीं, बल्कि एक रणनीतिक चुनौती बनता जा रहा है. हाल ही की घटनाओं ने साफ कर दिया है कि बांग्लादेश की नई अंतरिम सरकार, खासतौर पर उसके कुछ शीर्ष सलाहकार, भारत के खिलाफ आक्रामक रुख अपनाने से पीछे नहीं हट रहे. इस पूरे घटनाक्रम में चीन की छाया भी साफ देखी जा सकती है, जो बांग्लादेश के ज़रिए भारत के पूर्वोत्तर में अपनी पैठ जमाने की कोशिश कर रहा है. वहीं दूसरी ओर, भारत ने भी यह तय कर लिया है कि अब वह केवल प्रतिक्रियात्मक नहीं, बल्कि आक्रामक और रणनीतिक मोड में काम करेगा.
शुरुआत कहां से हुई?
शुरुआत उस फेसबुक पोस्ट से हुई जिसने कूटनीतिक हलकों में हलचल मचा दी. बांग्लादेश की अंतरिम सरकार के सलाहकार और रिटायर्ड मेजर जनरल ए.एल.एम. फजलुर रहमान ने भारत पर हमला बोलते हुए लिखा कि अगर भारत पाकिस्तान में आतंकवादियों के खिलाफ कार्रवाई करता है, तो बांग्लादेश को भारत के सात पूर्वोत्तर राज्यों पर कब्जा कर लेना चाहिए. इतना ही नहीं, उन्होंने चीन के साथ मिलकर एक संयुक्त सैन्य गठजोड़ की भी वकालत की. हालांकि ढाका ने आधिकारिक रूप से इस बयान से पल्ला झाड़ लिया, लेकिन रहमान की यह टिप्पणी एक गहरी मानसिकता की झलक देती है – वह मानसिकता जो भारत को एक अवसर नहीं, बल्कि चुनौती मानती है.
इसके कुछ हफ्ते बाद एक और बड़ी बात सामने आई. बांग्लादेश सरकार के एक और शीर्ष सलाहकार मुहम्मद यूनुस, जो मार्च में चीन की यात्रा पर थे, उन्होंने बीजिंग में भारत के खिलाफ खुलकर बयान दिए. उन्होंने न केवल चीन को बांग्लादेश में अपना प्रोडक्शन बेस बनाने के लिए आमंत्रित किया, बल्कि यह भी कहा कि भारत के पूर्वोत्तर राज्य समुद्र से कटे हुए हैं, और इस स्थिति में बांग्लादेश “महासागर का संरक्षक” बन सकता है. यूनुस ने चीन से आग्रह किया कि वह इस क्षेत्र को अपनी अर्थव्यवस्था का विस्तार स्थल बनाए.
चीन और बांग्लादेश की इस नजदीकी का एक और संकेत तब मिला जब खबर आई कि चीन, बांग्लादेश के लालमोनिरहाट क्षेत्र में द्वितीय विश्व युद्ध के समय के एक निष्क्रिय एयरबेस को दोबारा सक्रिय करने में रुचि दिखा रहा है. यह जगह भारत की सीमा से सिर्फ 12–15 किलोमीटर दूर है और सिलीगुड़ी कॉरिडोर से लगभग 135 किलोमीटर की दूरी पर है. सिलीगुड़ी कॉरिडोर वही रणनीतिक रेखा है, जो भारत के पूर्वोत्तर राज्यों को बाकी देश से जोड़ती है, और जिसे ‘चिकन नेक’ के नाम से जाना जाता है. यह बेहद संकीर्ण गलियारा भारत के लिए एक सामरिक नाड़ी है. ऐसे में इस क्षेत्र के पास चीनी सैन्य या तकनीकी गतिविधियों की संभावना भारत की सुरक्षा के लिए सीधा खतरा बन सकती है.
भारत ने बांग्लादेश से आने वाले कई उत्पादों पर प्रतिबंध लगा दिया
यह सब देखते हुए भारत ने न सिर्फ कूटनीतिक प्रतिक्रिया दी, बल्कि एक्शन में भी उतर आया. सबसे पहले भारत ने बांग्लादेश से आने वाले कई उत्पादों पर प्रतिबंध लगा दिया, खासकर टेक्सटाइल सेक्टर से जुड़े सामानों पर, जो भारत में काफी लोकप्रिय थे. इससे न सिर्फ बांग्लादेश की अर्थव्यवस्था को झटका लगा, बल्कि भारत के घरेलू उद्योगों को भी राहत मिली.
लेकिन भारत की रणनीति यहीं तक सीमित नहीं रही. भारत ने पूर्वोत्तर को नई दिशा देने की ठानी. हाल ही में आयोजित 'राइजिंग नॉर्थ ईस्ट इन्वेस्टर समिट' में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पूर्वोत्तर को भारत की "एक्ट ईस्ट" नीति का प्रवेश द्वार करार दिया. उन्होंने साफ कहा कि अब यह इलाका भौगोलिक चुनौतियों के लिए नहीं, बल्कि आर्थिक और रणनीतिक अवसरों के लिए जाना जाएगा.
इस समिट में भारत के तीन दिग्गज कॉरपोरेट घराने – रिलायंस इंडस्ट्रीज़, अडानी ग्रुप और वेदांता – सामने आए और पूर्वोत्तर में रिकॉर्ड निवेश की घोषणा की. मुकेश अंबानी ने घोषणा की कि रिलायंस अगले पांच वर्षों में इस क्षेत्र में 45,000 करोड़ रुपए और निवेश करेगा, जिससे कंपनी का कुल निवेश 75,000 करोड़ रुपए तक पहुंच जाएगा.
50,000 करोड़ के निवेश का ऐलान
अडानी ग्रुप, जो पहले ही एडवांटेज असम शिखर सम्मेलन में 50,000 करोड़ के निवेश का ऐलान कर चुका है, अब इस आंकड़े को दोगुना करते हुए 1 लाख करोड़ रुपए तक ले जाने की योजना बना रहा है. अडानी ग्रुप का यह निवेश ग्रीन एनर्जी, सड़क निर्माण, पॉवर ट्रांसमिशन, डिजिटल इन्फ्रा और स्किल डेवेलपमेंट जैसे अहम क्षेत्रों में होगा.
इसी कड़ी में वेदांता ग्रुप ने भी एक बड़ा ऐलान किया – 80,000 करोड़ रुपए का निवेश, जिसमें से 50,000 करोड़ सिर्फ असम में लगाए जाएंगे. यह पैसा तेल-गैस, मिनरल्स, डेटा सेंटर्स, ऑप्टिकल फाइबर नेटवर्क और रिन्युएबल एनर्जी सेक्टर में लगाया जाएगा. अनुमान है कि इस निवेश से एक लाख से ज्यादा रोजगार के अवसर भी पैदा होंगे.
भारत की इस व्यापक रणनीति में केवल इन्वेस्टमेंट नहीं, बल्कि एक संदेश भी छिपा है – वह संदेश जो बांग्लादेश और चीन दोनों को साफ तौर पर बताता है कि भारत अब अपने पूर्वोत्तर को उपेक्षित नहीं छोड़ने वाला. यह एक तरह की "सॉफ्ट कंटेनमेंट" रणनीति है – जिसमें भारत न सिर्फ अपने रणनीतिक हितों की रक्षा करता है, बल्कि आर्थिक विकास और स्थानीय सशक्तिकरण के जरिए पूरे क्षेत्र को मज़बूत भी करता है.
चीन की हरकतों पर भी एक मजबूत जवाब
बांग्लादेश के भीतर से उठने वाली भारत-विरोधी आवाजें और चीन की बढ़ती दिलचस्पी एक नए खतरे का संकेत देती हैं. लेकिन भारत ने जो जवाब दिया है, वह केवल एक सीमित प्रतिक्रिया नहीं, बल्कि एक बहुस्तरीय रणनीतिक पुनर्गठन है. इसमें कूटनीति, सुरक्षा, व्यापार और निवेश – सभी को एक साथ जोड़ा गया है. अब भारत पूर्वोत्तर को ‘सीमांत क्षेत्र’ नहीं, बल्कि ‘प्रवेश द्वार’ के रूप में देख रहा है – एक ऐसा द्वार जो न केवल भारत को दक्षिण-पूर्व एशिया से जोड़ता है, बल्कि चीन की हरकतों पर भी एक मजबूत जवाब बन सकता है.
जिस तरह बांग्लादेश में अस्थिर राजनीतिक हालात चीन के लिए जगह बना रहे हैं, उसी तरह भारत भी अपनी ज़मीन को मजबूती से संवारने में जुटा है. इस बार मुकाबला बंदूक या बयानों का नहीं, बल्कि रणनीतिक सोच, आर्थिक ताकत और राजनीतिक संकल्प का है – और इस दौड़ में भारत कहीं पीछे नहीं है.
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