भारत द्वारा हाल में चलाए गए ‘ऑपरेशन सिंदूर’ के बाद पाकिस्तान में रणनीतिक उथल-पुथल साफ नज़र आ रही है. पाकिस्तानी सेना के प्रमुख जनरल आसिम मुनीर, जो हाल ही में फील्ड मार्शल पद पर पदोन्नत हुए हैं, इस समय अमेरिका के दौरे पर हैं. इस दौरे का मकसद है अमेरिका से राजनयिक और सामरिक समर्थन हासिल करना — और इसके लिए मुनीर की रणनीति चर्चा में है.
ट्रंप से मुलाकात और नोबेल का संदर्भ
वॉशिंगटन में एक अहम मुलाकात के दौरान जनरल मुनीर ने अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप से व्हाइट हाउस में लंच पर मुलाकात की. सूत्रों के मुताबिक, यह बैठक उस समय संभव हो सकी जब मुनीर ने ट्रंप को नोबेल शांति पुरस्कार के लिए नामांकित करने की अपील की. इसके बाद ट्रंप की टीम ने उन्हें निजी लंच के लिए आमंत्रित किया.
मुनीर ने ट्रंप की उस भूमिका को रेखांकित किया जिसमें, उनके अनुसार, ट्रंप ने भारत और पाकिस्तान के बीच परमाणु युद्ध की आशंका को टालने में योगदान दिया था. इस कदम को पाकिस्तानी कूटनीति के एक नए अध्याय के रूप में देखा जा रहा है, जो भारत के जवाबी हमलों से बुरी तरह घबराया हुआ है.
ऑपरेशन सिंदूर के बाद पाकिस्तान की रणनीति
भारत द्वारा छह मई को ‘ऑपरेशन सिंदूर’ के तहत पाक अधिकृत कश्मीर (PoK) में आतंकी ठिकानों पर की गई कार्रवाई के बाद पाकिस्तान बैकफुट पर है. इस कार्रवाई में भारतीय वायुसेना ने आतंकवादियों के कई प्रशिक्षण शिविरों को निशाना बनाया था. इस ऑपरेशन के बाद भारत और पाकिस्तान के बीच चार दिनों तक भीषण झड़पें हुईं.
10 मई को पाकिस्तान की ओर से युद्धविराम की पेशकश के साथ यह संघर्ष थमा, जिसे नई दिल्ली ने भारत की निर्णायक सैन्य प्रतिक्रिया की सफलता माना.
ईरान के पक्ष में बयान और वॉशिंगटन की हलचल
ट्रंप और मुनीर की यह मुलाकात ऐसे समय पर हुई है जब ईरान और इजरायल के बीच तनाव चरम पर है. अंदरूनी सूत्रों की मानें तो बंद कमरे में हुई बातचीत में मुनीर ने ईरान के हितों की भी वकालत की, क्योंकि पाकिस्तान और ईरान के पारंपरिक रिश्ते मजबूत रहे हैं.
इस मुलाकात के बीच ट्रंप जी7 समिट से अचानक अमेरिका लौट आए, और भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से एक फोन कॉल पर बातचीत भी हुई, जिसमें वॉशिंगटन में संभावित स्टॉपओवर का जिक्र आया.
सैन्य कूटनीति के बड़े संकेत
व्हाइट हाउस से किसी सेवारत पाकिस्तानी सेना प्रमुख को निजी रूप से आमंत्रित किया जाना असाधारण माना जा रहा है. अतीत में केवल अयूब खान, ज़िया उल हक और परवेज़ मुशर्रफ़ जैसे अधिकारी ही ऐसे निमंत्रण पाते रहे हैं — लेकिन वे सभी उस समय पाकिस्तान के राष्ट्रपति भी थे.
इस दौरे को लेकर भारत की प्रतिक्रिया का इंतजार किया जा रहा है, लेकिन यह स्पष्ट है कि पाकिस्तान अमेरिका से नया समर्थन हासिल करने के प्रयास में जुटा है, खासतौर पर ऐसे समय में जब वह अपनी सैन्य और कूटनीतिक कमजोरियों को महसूस कर रहा है.
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