मॉस्कोः अब दुनिया देखेगी 'मेक इन इंडिया' की ताकत! भारत में बनी घातक AK-203 असॉल्ट राइफल अब सिर्फ भारतीय सेना तक सीमित नहीं रहेगी, बल्कि इसे दुनिया के कई देशों में निर्यात किया जा सकेगा. रूस ने इस कदम को मंजूरी देकर भारत के हथियार उद्योग को एक अंतरराष्ट्रीय पहचान देने की तैयारी कर ली है. ये फैसला ना सिर्फ भारत-रूस की रणनीतिक साझेदारी को और मज़बूत करता है, बल्कि यह भारत के आत्मनिर्भर रक्षा अभियान – ‘मेक इन इंडिया’ – के लिए एक बड़ी छलांग है.
अमेठी की फैक्ट्री से अब दुनिया तक पहुंचेगी AK-203
रूसी हथियार निर्यात एजेंसी Rosoboronexport के प्रमुख ने इस बात की पुष्टि की है कि अमेठी के कोरवा आयुध निर्माणी में बनी राइफलों को अब भारत के साथ-साथ अन्य मित्र देशों को भी निर्यात किया जा सकेगा. यह वही फैक्ट्री है जहां भारत और रूस की ज्वाइंट वेंचर कंपनी Indo-Russian Rifles Private Limited (IRRPL) ने AK-203 राइफल का उत्पादन शुरू किया था. यह पहल न केवल भारत को आत्मनिर्भर बना रही है, बल्कि भारत को एक "हथियार एक्सपोर्ट हब" में तब्दील करने की दिशा में भी एक बड़ा कदम है.
क्या है AK-203 की ताकत?
AK-203, दरअसल रूस की प्रतिष्ठित AK-200 राइफल का आधुनिक संस्करण है, जिसे भारतीय सेना की जरूरतों के हिसाब से 7.62x39mm कारतूस के अनुकूल बनाया गया है. इसकी फायरिंग स्पीड जानकर कोई भी चौंक जाएगा – यह राइफल एक मिनट में लगभग 700 राउंड फायर कर सकती है. यह राइफल न केवल घातक है, बल्कि इसका निर्माण पूरी तरह से टेक्नोलॉजी ट्रांसफर के तहत भारत में किया जा रहा है – यानी रूस की अत्याधुनिक तकनीक अब भारतीय इंजीनियरों और तकनीशियनों के पास है.
भारतीय सेना को पहले ही मिल चुकी है पहली खेप
2023 में इस फैक्ट्री ने 5000 राइफलों की पहली खेप तैयार की थी और कुल 35,000 राइफलों की डिलीवरी करके अपने पहले फेज को सफलतापूर्वक पूरा किया. अंततः इस प्रोजेक्ट का लक्ष्य है भारतीय सेना के लिए 600,000 से अधिक राइफलें तैयार करना. साथ ही, वायुसेना और नौसेना के लिए भी इनका निर्माण जारी रहेगा.
अब भारत से होगा हथियारों का 'शुद्ध निर्यात'
यह पहली बार है जब भारत किसी अत्याधुनिक रूसी हथियार का निर्माण कर उसे विदेशों को निर्यात करने की स्थिति में पहुंचा है. इससे भारत को आर्थिक फायदा, रणनीतिक बढ़त और ग्लोबल डिफेंस मार्केट में मजबूत पैठ तीनों ही मिलेंगी. यह एक संकेत है कि भारत अब सिर्फ रक्षा उपकरणों का आयातक देश नहीं रहा, बल्कि वह अब एक डिफेंस मैन्युफैक्चरिंग पावरहाउस बनकर उभर रहा है.
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