Polder Effect: दुनिया के कुछ सबसे बड़े और खूबसूरत शहर आने वाले दशकों में नक्शे से गायब हो सकते हैं. जलवायु परिवर्तन ने एक ऐसा संकट खड़ा कर दिया है, जिसकी कल्पना तक डर पैदा करती है. शंघाई, कराची, निंगबो, ढाका और यांगून जैसे विशाल महानगरों को अब “जल-समाधि” का वास्तविक खतरा है.
अंतरराष्ट्रीय वैज्ञानिकों की नई शोध बताती है कि समुद्र किनारे बसे डेल्टा शहर अभूतपूर्व खतरे में हैं, जमीन तेजी से धंस रही है और समुद्र का स्तर उतनी ही रफ्तार से ऊपर उठ रहा है. यह संयोजन उन शहरों के लिए विनाशकारी साबित हो सकता है, जो पहले ही जलवायु संकट से लड़ रहे हैं.
नई स्टडी ने खोला खतरे का पैमाना
प्रतिष्ठित जर्नल ‘वन अर्थ’ में प्रकाशित इस शोध ने वैश्विक विशेषज्ञों को हैरान कर दिया है. अध्ययन के अनुसार, कई तटीय शहर जिस सुरक्षा पर वर्षों से भरोसा करते थे, जैसे ऊँची डाइक, सी वॉल और बांध, अब उतने प्रभावी नहीं रह गए हैं. वैज्ञानिकों का कहना है कि समुद्री तूफानों की तीव्रता और समुद्र स्तर की तेजी से बढ़ोतरी के सामने ये संरचनाएँ भविष्य में टिक नहीं पाएंगी.
शोधकर्ताओं ने स्पष्ट चेतावनी दी है कि यदि कोई बड़ा तूफान आया और ये सुरक्षा दीवारें टूट गईं, तो शहरों को ऐसी बाढ़ झेलनी पड़ेगी जिसकी तुलना किसी भी सामान्य प्राकृतिक आपदा से नहीं की जा सकती. इस तरह की बाढ़ को “पोल्डर फ्लड” कहा जाता है कि एक ऐसी स्थिति जिसमें शहर पूरी तरह पानी से भर जाता है और पानी निकलने का कोई रास्ता नहीं रहता.
क्या है ‘पोल्डर इफेक्ट’ और क्यों है यह इतना विनाशकारी?
आम हालात में बाढ़ का पानी ढलान के कारण बहकर निकल सकता है, लेकिन डेल्टा क्षेत्र में बसे शहरों की संरचना अलग होती है. समुद्र स्तर के नीचे जा रही जमीन और सिकुड़ते तटों की वजह से ये शहर एक विशाल कटोरे जैसे बन जाते हैं. जब सुरक्षा दीवारें किसी तूफान या ज्वार-भाटे के दबाव से टूटती हैं, तो पानी शहर में घुसकर भर जाता है और अंदर ही फँस जाता है.
गुरुत्वाकर्षण के कारण यह पानी अपने आप वापस समुद्र में नहीं जा सकता. नतीजा यह होता है कि पूरा इलाका पानी से भर जाता है और तब तक डूबा रहता है जब तक टूटे हुए बांधों की मरम्मत न हो जाए और भारी मशीनों से पानी पंप करके बाहर न निकाला जाए. वैज्ञानिकों के मुताबिक यह स्थिति जमीन पर “अनियंत्रित जल-कैद” जैसी होती है.
कौन से शहर सबसे बड़े खतरे में?
शोधकर्ताओं ने 40 प्रमुख डेल्टा शहरों का मूल्यांकन किया है, जहाँ करीब 30 करोड़ लोग रहते हैं. इनमें से कई महानगरों की आबादी कम ऊँचाई वाले इलाकों में है और ये “कंपाउंड फ्लडिंग”, यानी कई खतरों के एक साथ घटने का सीधा सामना कर सकते हैं.
चीन के शंघाई, निंगबो और ग्वांगझू को सबसे उच्च जोखिम वाले शहरों में रखा गया है. दक्षिण एशिया में यांगून, ढाका और कराची भी बेहद संवेदनशील श्रेणी में शामिल हैं. संयुक्त राज्य अमेरिका का न्यू ऑरलियन्स, जो 2005 में हरिकेन कैटरीना से तबाह हो गया था, अभी भी ऐसे ही जोखिमों से जूझ रहा है. इन सभी शहरों में एक बात समान है, यहाँ की जमीन धंस रही है और समुद्र लगातार उनकी ओर बढ़ रहा है.
शंघाई का मॉडल: 75 साल बाद कैसी होगी तस्वीर?
स्टडी के लेखकों ने शंघाई के लिए एक उन्नत डिजिटल मॉडल तैयार किया और पिछले 50 वर्षों में आए दस सबसे खतरनाक तूफानों का डेटा इसमें जोड़ा गया. फिर यह आकलन किया गया कि आने वाले 75 वर्षों में संभावित बदलाव क्या हो सकते हैं.
नतीजे बेहद भयावह थे. वैज्ञानिकों ने पाया कि वर्ष 2100 तक एक बड़े समुद्री तूफान के दौरान डूबने वाला इलाका 80 प्रतिशत तक बढ़ सकता है. इसका अर्थ है कि शंघाई का विशाल हिस्सा, जिसमें शहर के कई महत्वपूर्ण आर्थिक और आवासीय ज़ोन शामिल हैं, स्थायी बाढ़ के खतरे में आ सकता है.
सिर्फ ऊँची दीवारें शहर को नहीं बचा पाएंगी
कई शहर वर्षों से इस सोच पर काम कर रहे थे कि समुद्र किनारे ऊंची दीवारें जितनी मजबूत होंगी, उतनी ही सुरक्षा मिलेगी. लेकिन वैज्ञानिकों के अनुसार यह अब पुरानी सोच हो चुकी है. दीवारें न केवल बेहद महंगी हैं बल्कि यदि वे टूट गईं तो तबाही और भी बुरी होगी.
विशेषज्ञ बताते हैं कि बाढ़ सिर्फ एक कारण से नहीं आती, ज्वार, तेज हवाएँ, समुद्री लहरें, नदी का बहाव, दबाव वाली बारिश, जब ये सभी कारक एक साथ होते हैं, तब “परफेक्ट स्टॉर्म” बनता है. यही वजह है कि केवल कंक्रीट संरचनाओं पर भरोसा करना खतरनाक साबित हो सकता है.
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