'सभी मुस्लिम देश मिलकर...' एयरस्ट्राइक के बाद ईरान की धमकी, इजराइल को चारों ओर से घेरने की तैयारी?

    13 जून को इज़राइल द्वारा ईरान की राजधानी तेहरान और नतांज़ में किए गए व्यापक हवाई हमलों के बाद पश्चिम एशिया में तनाव चरम पर पहुंच गया है.

    Will Irene attack Israel from all sides?
    प्रतीकात्मक तस्वीर/Photo- ANI

    नई दिल्ली: 13 जून को इज़राइल द्वारा ईरान की राजधानी तेहरान और नतांज़ में किए गए व्यापक हवाई हमलों के बाद पश्चिम एशिया में तनाव चरम पर पहुंच गया है. इन हमलों में इज़राइली वायुसेना ने ईरान के कई महत्वपूर्ण सैन्य और परमाणु ठिकानों को निशाना बनाया. इसके जवाब में ईरान ने न केवल ड्रोन हमले शुरू कर दिए हैं, बल्कि अब क्षेत्रीय मुस्लिम देशों से एकजुट होकर इज़राइल का विरोध करने की भी अपील की है.

    मुस्लिम देशों से समर्थन की मांग

    ईरान के सर्वोच्च नेता अयातुल्ला अली खामेनेई ने इज़राइली हमले को ‘सीधी आक्रामकता’ करार देते हुए इसका कड़ा जवाब देने की चेतावनी दी है. ईरानी विदेश मंत्रालय ने भी एक आधिकारिक बयान में सभी मुस्लिम देशों, गुटनिरपेक्ष आंदोलन (NAM) के सदस्य राष्ट्रों और वैश्विक शांति समर्थक देशों से अपील की है कि वे इस हमले की कड़ी निंदा करें और इज़राइल के खिलाफ संयुक्त मोर्चा बनाएं.

    ईरान के विदेश मंत्रालय ने कहा, "यह हमला केवल ईरान पर नहीं, बल्कि पूरे क्षेत्र की स्थिरता और वैश्विक शांति पर हमला है. दुनिया को इसे नजरअंदाज नहीं करना चाहिए."

    पहले से थी टकराव की तैयारी

    विश्लेषकों का मानना है कि यह हमला अचानक नहीं हुआ है. पिछले कुछ महीनों से इज़राइल और ईरान के बीच तनाव लगातार बढ़ रहा था. इज़राइली खुफिया एजेंसियों के अनुसार, ईरान ने अपने यूरेनियम संवर्धन कार्यक्रम में तेज़ी लाई थी और वह कुछ महीनों में परमाणु बम बनाने की स्थिति में आ सकता था.

    इज़राइली प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने इस कार्रवाई को "राष्ट्र की सुरक्षा के लिए आवश्यक" बताया. दूसरी ओर, ईरान ने इन आरोपों को खारिज करते हुए दावा किया है कि उसका परमाणु कार्यक्रम पूरी तरह से शांतिपूर्ण है और इज़राइल क्षेत्र में जानबूझकर अस्थिरता फैला रहा है.

    ईरान का संभावित जवाब

    ईरान ने शुरुआती प्रतिक्रिया में इज़राइल की ओर 100 से अधिक ड्रोन भेजे हैं. सुरक्षा विशेषज्ञों के अनुसार, ईरान भविष्य में मिसाइल हमलों या अपने सहयोगी संगठनों जैसे हिज़्बुल्ला और हूती विद्रोहियों के माध्यम से अप्रत्यक्ष हमले कर सकता है.

    ईरान द्वारा मुस्लिम देशों को साथ लाने की अपील ने क्षेत्रीय समीकरणों को और जटिल कर दिया है. हालांकि, यह देखना बाकी है कि सऊदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात और अन्य खाड़ी देश इस अपील पर क्या प्रतिक्रिया देते हैं.

    अमेरिका की स्थिति स्पष्ट लेकिन पेचीदा

    इस पूरे घटनाक्रम में अमेरिका की भूमिका काफी अहम है. अमेरिकी विदेश मंत्री मार्को रूबियो ने स्पष्ट किया कि यह इज़राइल की "एकतरफा सैन्य कार्रवाई" थी और अमेरिका इस ऑपरेशन में प्रत्यक्ष रूप से शामिल नहीं है. उन्होंने ईरान को चेतावनी दी कि वह अमेरिकी सैनिकों या परिसंपत्तियों को निशाना न बनाए.

    गौर करने वाली बात यह है कि हमले से ठीक एक दिन पहले अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने संकेत दिया था कि "इज़राइल कुछ बड़ा कदम उठाने वाला है". साथ ही अमेरिका ने मध्य पूर्व के कई देशों से अपने गैर-जरूरी कर्मचारियों को वापस बुला लिया था और अपने सैन्य ठिकानों की सुरक्षा बढ़ा दी थी. इससे यह भी संकेत मिलता है कि अमेरिका को इस हमले की पूर्व जानकारी थी, भले ही उसने उसमें प्रत्यक्ष भागीदारी न की हो.

    बातचीत पर भी पड़ा असर

    इस हमले का सीधा असर ईरान और अमेरिका के बीच चल रही परमाणु वार्ताओं पर भी पड़ा है. 15 जून को ओमान में प्रस्तावित बैठक अब अधर में लटक गई है. अगर वार्ता टूटती है तो क्षेत्र में तनाव और बढ़ सकता है.

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