ईरान पर इजराइल के अटैक से अमेरिका ने क्यों झाड़ा पल्ला? इसका भारत पर क्या होगा असर? जानें सबकुछ

    मिडिल ईस्ट एक बार फिर युद्ध के मुहाने पर खड़ा है. 13 जून की सुबह इजराइल ने ईरान के खिलाफ बड़ी सैन्य कार्रवाई को अंजाम दिया.

    Why did America shrug off Israels attack on Iran
    प्रतीकात्मक तस्वीर/Photo- FreePik

    नई दिल्ली: मिडिल ईस्ट एक बार फिर युद्ध के मुहाने पर खड़ा है. 13 जून की सुबह इजराइल ने ईरान के खिलाफ बड़ी सैन्य कार्रवाई को अंजाम दिया. रिपोर्ट्स के मुताबिक, इजराइली वायुसेना के करीब 200 विमानों ने ईरान के 100 से अधिक ठिकानों पर 330 बम गिराए. इजराइली प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने स्पष्ट रूप से कहा कि अगर ईरान को रोका नहीं गया तो वह आने वाले महीनों में परमाणु हथियार विकसित कर सकता है. वहीं अमेरिका ने इस हमले से खुद को पूरी तरह अलग कर लिया है. ईरान के सर्वोच्च नेता अयातुल्ला खामेनेई ने कड़ी चेतावनी दी है कि इजराइल को इस हमले की कीमत चुकानी पड़ेगी.

    हमला कहां और कैसे हुआ?

    तेहरान में सुबह करीब 3:30 बजे कई धमाकों की आवाजें सुनाई दीं. ईरानी मीडिया का दावा है कि रिहायशी इलाकों को भी निशाना बनाया गया. इजराइली सेना ने बाद में पुष्टि की कि हमले में कई सैन्य ठिकानों को निशाना बनाया गया, जिनमें परमाणु कार्यक्रम से जुड़े स्थल भी शामिल हैं.

    कुछ ही घंटों बाद ईरान के नतांज शहर, जो तेहरान से करीब 220 किलोमीटर दूर है, वहां भी जोरदार धमाके हुए. नतांज ईरान का सबसे महत्वपूर्ण भूमिगत परमाणु केंद्र है. अंतरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी (IAEA) ने इस हमले की पुष्टि की, हालांकि एजेंसी ने कहा कि रेडिएशन लीक की कोई सूचना नहीं है.

    इस हमले में ईरान की सैन्य ताकत मानी जाने वाली इस्लामिक रिवोल्यूशनरी गार्ड कॉर्प्स (IRGC) के प्रमुख हुसैन सलामी, और दो वरिष्ठ परमाणु वैज्ञानिक मोहम्मद मेहदी तेहरांची और फरदून अब्बासी की मौत की खबर है. इजराइल का दावा है कि हमले में ईरानी आर्मी चीफ मोहम्मद बाघेरी भी मारे गए हैं.

    न्यूक्लियर डील की पृष्ठभूमि

    ईरान के परमाणु कार्यक्रम को लेकर विवाद कोई नया नहीं है. वर्ष 2015 में ईरान और विश्व शक्तियों (अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस, चीन, रूस और जर्मनी) के बीच ‘जॉइंट कॉम्प्रेहेंसिव प्लान ऑफ एक्शन’ (JCPOA) नामक समझौता हुआ था, जिसके तहत ईरान ने अपने परमाणु कार्यक्रम को सीमित करने के वादे पर प्रतिबंधों में राहत पाई थी.

    हालांकि, अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने 2018 में इस समझौते से खुद को अलग कर लिया और ईरान पर सख्त आर्थिक प्रतिबंध लगा दिए. उसके बाद से दोनों देशों के बीच तनाव लगातार बना रहा. बाइडेन प्रशासन ने JCPOA को पुनर्जीवित करने की कोशिश की, लेकिन अब इजराइल के इस हमले के बाद एक बार फिर कूटनीतिक प्रयास खतरे में पड़ गए हैं.

    अमेरिका का रुख

    • हालांकि अमेरिका ने खुद को इस हमले से अलग बताया है, लेकिन कई विश्लेषकों का मानना है कि इस कार्रवाई में अमेरिका की सहमति थी.
    • इजराइली विमानों को इतने बड़े स्तर पर रिफ्यूलिंग की आवश्यकता थी, जो संभवतः अमेरिकी समर्थन के बिना संभव नहीं था.
    • हमले से कुछ दिन पहले अमेरिका ने मिडिल ईस्ट से अपने अधिकारियों और कुछ सैनिकों को हटाना शुरू कर दिया था.

    इसके अलावा, अमेरिका ने पहले से ही अपने B-2 बॉम्बर्स को हिंद महासागर के डिएगो गार्सिया बेस पर तैनात कर दिया था, जो रणनीतिक रूप से इस पूरे ऑपरेशन के लिहाज से महत्वपूर्ण माना जाता है.

    आगे क्या हो सकता है?

    ईरान ने इजराइल पर जवाबी कार्रवाई के तहत 100 से ज्यादा ड्रोन दागने का दावा किया है. इजराइली डिफेंस फोर्स (IDF) के मुताबिक, ईरान किसी भी समय बड़े मिसाइल हमले की तैयारी कर सकता है.

    विशेषज्ञ मानते हैं कि ईरान के पास तीन संभावित विकल्प हैं:

    सीधे मिसाइल और ड्रोन हमले:

    पहले भी ईरान ने इजराइल पर इस तरह के हमले किए हैं, लेकिन अधिकांश हमलों को इजराइल के एयर डिफेंस सिस्टम और सहयोगी देशों (सऊदी अरब, जॉर्डन, UAE) ने नाकाम कर दिया था.

    प्रॉक्सी वॉर:

    ईरान अपने समर्थित समूहों जैसे हूती विद्रोहियों या हिज्बुल्लाह के जरिए इजराइल और अमेरिकी ठिकानों पर हमला करवा सकता है.

    अमेरिकी ठिकानों को निशाना बनाना:

    हालांकि अमेरिका से सीधी भिड़ंत की संभावना कम है, लेकिन अगर ऐसा हुआ तो क्षेत्र में पूर्ण युद्ध छिड़ सकता है.

    भारत पर संभावित असर

    भारत के लिए यह स्थिति बेहद संवेदनशील है. भारत के ईरान और इजराइल दोनों के साथ अच्छे रिश्ते हैं. ऐसे में भारत को संतुलित कूटनीतिक रुख अपनाना होगा. भारत संभवतः इस टकराव में तटस्थ बयान देगा, लेकिन इससे भारत को कई मोर्चों पर नुकसान उठाना पड़ सकता है.

    कच्चे तेल की आपूर्ति पर असर: यदि मिडिल ईस्ट में तनाव बढ़ता है तो तेल के दाम तेजी से बढ़ सकते हैं. भारत अपनी कच्चे तेल की जरूरतों का बड़ा हिस्सा इसी क्षेत्र से आयात करता है.

    व्यापारिक मार्ग बाधित हो सकते हैं: खाड़ी देशों के जरिए भारत का बड़ा समुद्री व्यापार होता है. युद्ध की स्थिति में ये रूट अस्थिर हो सकते हैं.

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