चीन से SH-15 तोप क्यों खरीद रही बांग्लादेश आर्मी? जानिए कौन-सा खतरनाक प्लान बना रहे मोहम्मद यूनुस

    भारत के पूर्वी पड़ोसी बांग्लादेश और चीन के बीच बढ़ती सैन्य साझेदारी. इस नए घटनाक्रम ने भारत की रणनीतिक नींद में हलचल पैदा कर दी है.

    Why Bangladesh Army buying SH-15 cannon from China Yunus
    प्रतीकात्मक तस्वीर | Photo: Freepik

    जब पूरी दुनिया भारत और पाकिस्तान के बीच जारी तनाव पर नज़र रख रही है, तब एक और मोर्चा चुपचाप सक्रिय हो रहा है — भारत के पूर्वी पड़ोसी बांग्लादेश और चीन के बीच बढ़ती सैन्य साझेदारी. इस नए घटनाक्रम ने भारत की रणनीतिक नींद में हलचल पैदा कर दी है.

    दरअसल, बांग्लादेश अब चीन से अत्याधुनिक स्वचालित हॉवित्जर तोपें (SH-15) खरीदने की दिशा में तेजी से कदम बढ़ा रहा है. ये वही हथियार हैं जिन्हें पाकिस्तान पहले ही अपने सैन्य भंडार में शामिल कर चुका है. यह सौदा चीनी सरकारी हथियार निर्माता NORINCO के साथ किया जा रहा है — जो सीधे पीपल्स लिबरेशन आर्मी को हथियारों की आपूर्ति करता है.

    चीन के न्योते पर रवाना हुआ बांग्लादेशी सैन्य दल

    बांग्लादेशी सेना का एक उच्चस्तरीय प्रतिनिधिमंडल, जिसमें सात सदस्य शामिल हैं, 25 मई से चार दिन के लिए चीन के दौरे पर है. इस दल का नेतृत्व कर रहे हैं मेजर जनरल मोअज्जम हुसैन, जो बरिशाल एरिया के कमांडर भी हैं. उनके नेतृत्व में यह दल चीन की SH-15 हॉवित्जर तोपों का लाइव फायरिंग डेमो देखेगा, साथ ही इनके लिए गोला-बारूद भंडारण की क्षमताओं का भी मूल्यांकन करेगा.

    SH-15: एक मॉडर्न मशीन जो भारत के लिए चिंता का कारण बन सकती है

    SH-15 एक हाई-मोबिलिटी ट्रक चेसिस पर आधारित, 155mm की सेल्फ-प्रोपेल्ड हॉवित्जर तोप है. यह तोप 4-6 राउंड प्रति मिनट की दर से फायर कर सकती है और इसके पास ऑटोमैटिक फायर कंट्रोल सिस्टम जैसी आधुनिक सुविधाएं हैं. इस हथियार की गति 90 किमी/घंटा तक है और इसे हवाई मार्ग से भी आसानी से तैनात किया जा सकता है — यानी यह एक त्वरित प्रतिक्रिया वाला युद्धक हथियार है.

    इसके अलावा, आत्मरक्षा के लिए इसमें 12.7mm की भारी मशीन गन भी लगाई जा सकती है. कुल छह लोगों का गन क्रू इस ट्रक में होता है.

    क्या भारत को सतर्क हो जाना चाहिए?

    इस पूरे घटनाक्रम को हल्के में नहीं लिया जा सकता. बांग्लादेश की सेना द्वारा वही हथियार अपनाना जो पहले से पाकिस्तान के पास हैं — एक साफ संकेत है कि चीन एक बार फिर भारत के पड़ोस में अपनी सैन्य छाया गहरा कर रहा है. भले ही यह एक "सामान्य रक्षा सौदा" लगे, लेकिन इसका भू-राजनीतिक असर भारत के लिए दूरगामी हो सकता है.

    भारत को न केवल अपनी पश्चिमी सीमाओं पर, बल्कि पूर्वी सीमाओं पर भी रणनीतिक चौकसी बढ़ाने की आवश्यकता है — क्योंकि आज की सैन्य साझेदारियां, कल की सामरिक चुनौतियों में बदल सकती हैं.

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