अंकाराः 15 जुलाई 2016 की रात तुर्की के इतिहास में एक काले अध्याय के रूप में दर्ज हो गई. इस रात तुर्की की सेना के कुछ अफसरों ने सरकार के खिलाफ तख्तापलट की कोशिश की, जिससे पूरे देश में हड़कंप मच गया. अंकारा की सड़कों पर खून बहा, 250 से ज्यादा लोग मारे गए, और तख्तापलट नाकाम होने के बावजूद देश की राजनीतिक स्थिरता गंभीर रूप से प्रभावित हुई. हालांकि एर्दोआन की कुर्सी बच गई, लेकिन उसी रात से एक ऐसा सिलसिला शुरू हुआ जो आज भी जारी है.
इस तख्तापलट की साजिश को आतंकवाद से जोड़कर पेश किया गया और उसके बाद तुर्की में एक जबरदस्त दमनचक्र शुरू हो गया. ताजा आंकड़ों के अनुसार, अब तक 3,90,000 से ज्यादा लोगों को गिरफ्तार किया जा चुका है, जिन पर तख्तापलट या आतंकवाद से जुड़े मामलों में संलिप्तता का आरोप है. इनमें से एक लाख से ज्यादा लोग अब भी जेल में हैं. इस स्थिति ने सवाल खड़ा किया है कि अगर 2016 के तख्तापलट में केवल कुछ ही लोग शामिल थे, तो फिर इतनी बड़ी संख्या में 'आतंकी' कैसे पैदा हो गए?
गुलेन आंदोलन: क्या था असल खतरा?
तख्तापलट के बाद, तुर्की सरकार ने पूरी जिम्मेदारी अमेरिका में निर्वासित धर्मगुरु फेतुल्लाह गुलेन पर डाली. उनका नाम प्रमुख रूप से 'गुलेन नेटवर्क' के साथ जुड़ा हुआ था, जिसे तुर्की सरकार ने साजिश के पीछे का मुख्य तत्व बताया. हालांकि, गुलेन ने हमेशा इन आरोपों का खंडन किया और अंतरराष्ट्रीय जांच की मांग की, लेकिन ऐसी कोई जांच आज तक नहीं हुई. सरकार के अनुसार, 'गुलेन समर्थक' एक व्यापक और खतरनाक नेटवर्क हैं, और इसके खिलाफ कार्रवाई की जाती रही है.
अब तक करीब 1.26 लाख लोग 'गुलेन नेटवर्क' से जुड़े होने के आरोप में सजा पा चुके हैं, जिनमें से 11,000 से ज्यादा लोग अब भी जेल में बंद हैं. इसके अलावा 24,000 से ज्यादा केस कोर्ट में लंबित हैं. लेकिन सवाल यह उठता है कि ऐसे मामलों में सजा का आधार क्या है?
क्या था इन लोगों का अपराध?
कई लोगों को सिर्फ इस कारण गिरफ्तार किया गया कि उन्होंने 'गुलेन समर्थक' संस्थाओं में शामिल होने या उनके द्वारा समर्थित किसी गतिविधि में भाग लिया था. कुछ लोग तो महज इस वजह से पकड़े गए कि उन्होंने 'ByLock' नामक एक एप्लिकेशन का इस्तेमाल किया, जो कि तख्तापलट के दौरान प्रमुख माना गया था. कुछ अन्य को सिर्फ इस लिए गिरफ्तार किया गया कि उन्होंने 'गुलेन समर्थक' मीडिया संस्थानों की सदस्यता ली थी. इन मामलों में आरोपितों के खिलाफ पर्याप्त सबूत नहीं थे, और यूरोपीय मानवाधिकार न्यायालय ने इन्हें बिना साक्ष्यों के दोषी ठहराने की निंदा की है.
तुर्की सरकार ने इन गिरफ्तारीयों को देश की सुरक्षा के नाम पर सही ठहराया है, लेकिन यूरोपीय न्यायालय और मानवाधिकार संगठनों का मानना है कि यह कार्रवाई अत्यधिक और गलत थी.
तीन लाख 90 हजार की संख्या का क्या मतलब है?
इस दौरान गिरफ्तार किए गए लोगों में कई ऐसे लोग भी हैं जो केवल सरकार की नीतियों के विरोध में खड़े हुए थे, या फिर जिन्होंने सोशल मीडिया पर कोई असहमति वाली पोस्ट की थी. कई बार तो सिर्फ किसी गलत समय और स्थान पर होने की वजह से भी उन्हें हिरासत में लिया गया. तख्तापलट के आरोपियों की तलाश में तुर्की सरकार ने 118 देशों से प्रत्यर्पण की मांग की और 3,579 रेड नोटिस जारी किए, लेकिन परिणाम स्वरूप केवल 131 लोगों को वापस लाया गया, जिनमें से 128 को बिना किसी कानूनी प्रक्रिया के गिरफ्तार कर लिया गया.
संयुक्त राष्ट्र ने तुर्की की इन कार्रवाइयों को मानवाधिकारों का उल्लंघन बताया और इसे पूरी तरह से कानून के खिलाफ माना. यह सवाल उठता है कि अगर तख्तापलट का प्रयास कुछ लोगों द्वारा किया गया था, तो बाकी लोगों को क्यों निशाना बनाया गया? क्या 3,90,000 लोग वाकई आतंकवादी हैं, या फिर यह केवल एक राजनीतिक शिकार है?
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