ऑपरेशन सिंदूर के दौरान भारत और पाकिस्तान के बीच चार दिन तक सीमित सैन्य टकराव देखने को मिला. इस संघर्ष ने सिर्फ इन दो देशों की ताकत को ही नहीं परखा, बल्कि इससे जुड़े तीसरे पक्ष—चीन और तुर्की—के हथियारों की वास्तविक क्षमता भी सामने आ गई. खासतौर पर तुर्की के ‘बायरकतार TB-2’ ड्रोन, जिन्हें वह अपनी सैन्य ताकत का प्रतीक मानता रहा है, भारत की वायु रक्षा प्रणाली के सामने बुरी तरह नाकाम साबित हुए.
भारत की इस रणनीतिक सफलता ने न केवल पाकिस्तान को झटका दिया, बल्कि तुर्की को भी असहज कर दिया है. इस पर प्रतिक्रिया स्वरूप तुर्की, पाकिस्तान और अजरबैजान के राष्ट्राध्यक्षों की हाल ही में एक अहम बैठक हुई, जिसमें उन्होंने अपने रक्षा संबंधों को और गहरा करने की योजना बनाई.
भारत की सैन्य तकनीक बनी तुर्की के लिए सिरदर्द
तथाकथित ड्रोन सुपरपावर तुर्की, जो लंबे समय से अपने TB-2 ड्रोन की सफलता का डंका बजाता रहा है, भारत के ‘आकाश’ और ‘T-4 एयर डिफेंस सिस्टम’ के सामने असहाय नजर आया. इन ड्रोनों को भारत ने न सिर्फ इंटरसेप्ट किया, बल्कि पूरी तरह निष्क्रिय भी कर दिया.
इस असफलता के बाद से तुर्की की बौखलाहट साफ झलक रही है. अब वह भारत के सहयोगी देश ग्रीस को खुलेआम धमकाने लगा है. हाल ही में ग्रीस द्वारा फ्रांस से 24 राफेल जेट खरीदने के बाद से तुर्की का आक्रामक रुख और बढ़ गया है. तुर्की सरकार के समर्थक मीडिया द्वारा ग्रीस के राफेल विमानों की क्षमता पर सवाल खड़े किए जा रहे हैं और भारत-पाक संघर्ष का उदाहरण देकर ग्रीस को चेतावनी दी जा रही है.
भारत-ग्रीस की नजदीकी और तुर्की की बेचैनी
भारत और ग्रीस के बीच हाल के वर्षों में व्यापार और रक्षा क्षेत्र में रिश्ते मजबूत हुए हैं. भारत ग्रीस में बंदरगाहों, रक्षा और पर्यटन क्षेत्रों में निवेश की योजना बना रहा है. इससे तुर्की को आशंका है कि भारत भविष्य में ग्रीस को रक्षा उपकरणों की आपूर्ति भी कर सकता है.
इसी तरह भारत की ओर से साइप्रस और आर्मेनिया के साथ बढ़ते रक्षा संबंध भी तुर्की और अजरबैजान की रणनीतिक योजना में सेंध लगाने का काम कर रहे हैं. भारत ने आर्मेनिया को पिनाका मल्टी-बैरल रॉकेट सिस्टम समेत कई अत्याधुनिक हथियार निर्यात किए हैं, जिससे इस क्षेत्र में तुर्की की दबंगई पर लगाम लगी है.
एर्दोगन की भड़काऊ नीति और नाटो में तनाव
तुर्की के राष्ट्रपति रेसेप तैयप एर्दोगन का ग्रीस और आर्मेनिया को लेकर रवैया लंबे समय से आक्रामक रहा है. अमेरिकी विश्लेषक माइकल रुबिन के अनुसार, एर्दोगन की सोच में "इस्लामिक नेतृत्व" की महत्त्वाकांक्षा झलकती है. वह तुर्की को एक इस्लामिक महाशक्ति के रूप में स्थापित करना चाहते हैं, जिसके चलते वे ग्रीस को खुलेआम धमकी दे चुके हैं.
रुबिन का मानना है कि तुर्की की यह नीतिगत आक्रामकता नाटो जैसे सैन्य गठबंधन के लिए एक गंभीर खतरा बन सकती है. उन्होंने चेताया कि अगर इस तरह की रणनीति जारी रही, तो अमेरिका और यूरोप को भविष्य में एक और युद्ध का सामना करना पड़ सकता है.
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