जियो-पॉलिटिक्स की दुनिया काफी दिलचस्प और जटिल होती है, जहां एक तरफ देशों के बीच रिश्ते समय के साथ बदलते हैं, वहीं दूसरी तरफ नीतियां और समझौते अक्सर पलटी मारने का खेल खेलते हैं. उदाहरण के तौर पर, तुर्की और अमेरिका के बीच पिछले कुछ वर्षों में रिश्तों में खटास आ चुकी थी, खासकर जब तुर्की ने रूस से S-400 एयर डिफेंस सिस्टम खरीदा था. इसके बाद अमेरिका ने तुर्की को F-35 फाइटर जेट प्रोग्राम से बाहर कर दिया और तुर्की पर सैन्य प्रतिबंध भी लगाए थे. लेकिन अब लगता है कि तुर्की और अमेरिका के रिश्तों में फिर से एक नया मोड़ आ सकता है. तुर्की के राष्ट्रपति रेचेप तैय्यप एर्दोगन ने भरोसा जताया है कि दोनों देशों के बीच एफ-35 जेट डील पर फिर से बात हो सकती है, बशर्ते तुर्की अपना रूसी S-400 डिफेंस सिस्टम हटा दे.
तुर्की की बदलती नीति और ट्रंप के साथ संभावित डील
तुर्की के राष्ट्रपति एर्दोगन ने हाल ही में इस बात का संकेत दिया कि वे फिर से एफ-35 जेट कार्यक्रम में शामिल हो सकते हैं. 2019 में अमेरिका ने तुर्की को इस कार्यक्रम से बाहर कर दिया था, जब तुर्की ने रूस से S-400 डिफेंस सिस्टम खरीदी थी. लेकिन अब, जब डोनाल्ड ट्रंप फिर से अमेरिकी राष्ट्रपति बनने की ओर बढ़ रहे हैं, तो एर्दोगन का मानना है कि पुराने समझौते को फिर से जिंदा किया जा सकता है. एर्दोगन ने अजरबैजान से लौटते समय कहा, "मुझे विश्वास है कि ट्रंप हमारे साथ किए गए समझौते के प्रति वफादार रहेंगे, और मुझे लगता है कि उनके कार्यकाल के दौरान तुर्की को F-35 विमान चरणबद्ध तरीके से दिए जाएंगे."
ट्रंप का रुख और अमेरिकी रणनीति
एक्सपर्ट्स का मानना है कि ट्रंप के नेतृत्व में अमेरिका तुर्की के साथ इस डील को फिर से शुरू करने में दिलचस्पी ले सकता है, खासकर जब अमेरिका को इस डील से आर्थिक फायदे हो सकते हैं. ट्रंप ने अपने शीर्ष राजनयिकों को निर्देश देने की बात की है कि वे F-35 विमान सौदे पर रास्ता निकालें और तुर्की पर लगे प्रतिबंध को खत्म करें. मार्च में एर्दोगन और ट्रंप के बीच हुई बातचीत में F-16 जेट्स की डील पर भी चर्चा हुई थी, और अब तुर्की F-35 जेट कार्यक्रम में फिर से शामिल होने की कोशिश कर रहा है. यह बदलाव न केवल अमेरिका-तुर्की रिश्तों के लिए महत्वपूर्ण है, बल्कि यह रूस और तुर्की के बीच भी एक नई जियो-इकोनॉमिक रणनीति को जन्म दे सकता है.
तुर्की और रूस के रिश्तों में तनाव
तुर्की, अमेरिका और रूस के बीच संतुलन साधने की कोशिश कर रहा है. एक तरफ तुर्की ने रूस से S-400 डिफेंस सिस्टम खरीदी है, तो दूसरी ओर अब वह F-35 जैसे अत्याधुनिक विमान अमेरिकी से हासिल करना चाहता है. यह स्थिति न केवल NATO के भीतर असमंजस पैदा करती है, बल्कि यह रूस के साथ तुर्की के रिश्तों पर भी असर डाल सकती है.
तुर्की ने अभी तक S-400 डिफेंस सिस्टम को अपनी वायुसेना के साथ पूरी तरह से इंटीग्रेट नहीं किया है. रूस ने इस सिस्टम को कुछ तकनीकी शर्तों के साथ भेजा था, जिसमें यह भी था कि इस सिस्टम को किसी तीसरे देश को नहीं बेचा जा सकता. लेकिन अब तुर्की इस दिशा में विचार कर रहा है कि वह रूस के इस हाई-टेक डिफेंस सिस्टम को किसी तीसरे देश को बेचे. ऐसी स्थिति में, अगर तुर्की ने S-400 को किसी अन्य देश को बेचा, तो इससे तुर्की-रूस रिश्तों में भारी तनाव आ सकता है, खासकर यदि वह पाकिस्तान को यह सिस्टम बेचने की कोशिश करता है. इससे भारत और रूस के रिश्तों पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है, और भारत इस पर कड़ी आपत्ति जता सकता है.
भविष्य में क्या होगा?
अगर तुर्की S-400 को किसी तीसरे देश को बेचता है, तो यह रूस के लिए बड़ा झटका होगा और इससे मास्को के साथ तुर्की के रिश्तों में दरार आ सकती है. वहीं, अगर तुर्की और अमेरिका के बीच F-35 जेट डील पर समझौता हो जाता है, तो यह दोनों देशों के रिश्तों में एक नई शुरुआत हो सकती है. इस बीच, ट्रंप के राष्ट्रपति बनने के बाद तुर्की और अमेरिका के बीच रणनीतिक दिशा में भी बदलाव की उम्मीद जताई जा रही है.
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