माता-पिता जवान बेटे के ल‍िए मांग रहे इच्छामृत्यु, सुप्रीम कोर्ट ने कहा- ऐसे जिंदा नहीं रहने दे सकते

    गाजियाबाद के रहने वाले 31 वर्षीय हरीश राणा के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने बड़ा संकेत दिया है.

    Parents are asking for euthanasia for their son Harish Rana
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    Harish Rana Passive Euthanasia Case: गाजियाबाद के रहने वाले 31 वर्षीय हरीश राणा के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने बड़ा संकेत दिया है. अपने बेटे के लिए पैसिव यूथनेशिया यानी निष्क्रिय इच्छामृत्यु की मांग कर रहे माता-पिता से अब शीर्ष अदालत सीधे बात करेगी. एम्स की ताजा मेडिकल रिपोर्ट देखने के बाद सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि अब इस मामले में कोई निर्णय लेना जरूरी हो गया है और हरीश को इस हालत में अनिश्चितकाल तक जीवित नहीं रखा जा सकता.

    जस्टिस जे. बी. पारदीवाला और जस्टिस के. वी. विश्वनाथन की पीठ ने आदेश दिया है कि हरीश राणा के माता-पिता निर्मला राणा और अशोक राणा को 13 जनवरी को व्यक्तिगत रूप से कोर्ट में पेश होने के लिए बुलाया जाए. कोर्ट ने साफ किया कि किसी भी अंतिम फैसले से पहले वह माता-पिता से सीधे बातचीत करना चाहती है और उनकी भावनाओं, इच्छाओं और स्थिति को समझना चाहती है.

    एम्स की रिपोर्ट ने बढ़ाई चिंता

    सुप्रीम कोर्ट ने यह आदेश अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (AIIMS), नई दिल्ली की दूसरी मेडिकल रिपोर्ट का अवलोकन करने के बाद दिया. एम्स की रिपोर्ट में कहा गया है कि हरीश राणा के ठीक होने की संभावना लगभग न के बराबर है. रिपोर्ट के मुताबिक, वह पिछले 13 वर्षों से बेहोशी की हालत में हैं और उनकी मेडिकल स्थिति में किसी तरह के सुधार की कोई उम्मीद नहीं दिखती.

    पहले भी दयनीय हालत बता चुका था मेडिकल बोर्ड

    इससे पहले नोएडा जिला अस्पताल के प्राथमिक मेडिकल बोर्ड ने भी अपनी रिपोर्ट में हरीश की हालत को बेहद गंभीर बताया था. रिपोर्ट के अनुसार, हरीश बिस्तर पर पड़े हुए हैं, सांस लेने के लिए उनके गले में ट्यूब लगी है और भोजन के लिए पेट में फीडिंग ट्यूब डाली गई है. माता-पिता ने कोर्ट को बताया कि लंबे समय तक बिस्तर पर पड़े रहने की वजह से उनके शरीर में घाव तक हो चुके हैं.

    सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने इस मामले में पेश सभी वकीलों से कहा कि अब यह मामला उस मोड़ पर पहुंच चुका है जहां अंतिम फैसला लेना अपरिहार्य हो गया है. कोर्ट ने कहा कि एम्स की रिपोर्ट बेहद दुखद है और यह फैसला अदालत के लिए भी आसान नहीं है, लेकिन हरीश को इसी स्थिति में हमेशा के लिए जीवित रखना मानवीय नहीं हो सकता.

    माता-पिता को दी जाएगी मेडिकल रिपोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने निर्देश दिया है कि एम्स की मेडिकल रिपोर्ट अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल ऐश्वर्या भाटी को सौंपी जाए, जो केंद्र सरकार की ओर से पक्ष रख रही हैं. इसके साथ ही यह रिपोर्ट हरीश राणा के माता-पिता की ओर से पेश अधिवक्ता रश्मि नंदकुमार को भी उपलब्ध कराई जाएगी. कोर्ट ने स्पष्ट किया कि सभी पक्षों को सुनने के बाद ही कोई निर्णय लिया जाएगा.

    हरीश राणा के साथ यह दर्दनाक हादसा 20 अगस्त 2013 को हुआ था. वह उस समय पंजाब यूनिवर्सिटी में बी-टेक की पढ़ाई कर रहे थे. अपने पीजी (Paying Guest) आवास की चौथी मंजिल से गिरने के बाद उन्हें सिर में गंभीर चोट आई. कई अस्पतालों में लंबे इलाज के बावजूद उनकी हालत में कोई सुधार नहीं हुआ और वह वेजिटेटिव स्टेट में चले गए. तब से लेकर आज तक वह बेहोशी की अवस्था में हैं.

    माता-पिता क्यों कर रहे पैसिव यूथनेशिया की मांग?

    पिछले 13 वर्षों से बेटे की इस स्थिति को देख रहे माता-पिता का कहना है कि हरीश अब सिर्फ मशीनों के सहारे जीवित है और उसे इस तरह की पीड़ा में रखना अमानवीय है. उन्होंने कोर्ट से अपील की है कि उनके बेटे को इस अवस्था से मुक्ति दी जाए और निष्क्रिय इच्छामृत्यु की अनुमति दी जाए.

    पैसिव यूथनेशिया में क्या होता है?

    निष्क्रिय इच्छामृत्यु या पैसिव यूथनेशिया में मरीज को दी जा रही कृत्रिम जीवन रक्षक प्रणाली, जैसे वेंटिलेटर या अन्य सपोर्ट सिस्टम, हटा लिए जाते हैं. इसके बाद मरीज को प्राकृतिक रूप से मृत्यु की ओर जाने दिया जाता है. सुप्रीम कोर्ट पहले ही स्पष्ट कर चुका है कि इस तरह का फैसला तभी लिया जा सकता है, जब प्राथमिक और द्वितीयक मेडिकल बोर्ड की रिपोर्ट एक-दूसरे से मेल खाती हों.

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