TTP की पूर्वोत्तर में दस्तक! पाकिस्तान के बाद बांग्लादेश बन रहा आतंक का हब, क्या भारत पर मंडरा रहा है आतंकी साया?

    बांग्लादेश की राजनीतिक स्थिरता डगमगाई है, वहीं दूसरी ओर सीमा पार से भारत के लिए खतरे की एक नई परत खुलती दिख रही है - नाम है तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान यानी टीटीपी.

    TTP enters Northeast terror Pakistan Bangladesh
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    बांग्लादेश में सत्ता पलट के बाद हालात तेजी से बदले हैं, और इसका असर भारत की सुरक्षा पर अब साफ नजर आने लगा है. एक तरफ बांग्लादेश की राजनीतिक स्थिरता डगमगाई है, वहीं दूसरी ओर सीमा पार से भारत के लिए खतरे की एक नई परत खुलती दिख रही है - नाम है तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान यानी टीटीपी.

    पाकिस्तान और अफगानिस्तान के बीच लंबे समय से हिंसा और आतंक की पटकथा लिखता रहा यह संगठन अब भारत के पड़ोसी बांग्लादेश में घुसपैठ कर चुका है. ये वही बांग्लादेश है, जिसकी करीब 4,100 किलोमीटर लंबी सीमा असम, त्रिपुरा, मिजोरम, मेघालय और पश्चिम बंगाल से लगती है. ऐसे में TTP की घुसपैठ भारत के पूर्वोत्तर में नई चिंता का सबब बन रही है.

    ढाका में पकड़े गए TTP से जुड़े दो संदिग्ध

    हाल ही में बांग्लादेश की आतंकवाद-रोधी यूनिट (ATU) ने दो ऐसे संदिग्धों को गिरफ्तार किया है जिन पर TTP से संबंध होने का आरोप है. इन युवकों ने पाकिस्तान और अफगानिस्तान में जाकर टीटीपी के ट्रेनिंग कैंप्स में हिस्सा लिया था. उनमें से एक की मौत वजीरिस्तान में पाक सेना से मुठभेड़ में हो गई, जबकि बाकी की गिरफ्तारी ने बांग्लादेश की धरती पर टीटीपी की सक्रियता को लेकर अलार्म बजा दिया है.

    यह वही TTP है, जो पाकिस्तान में सेना, पुलिस और स्कूलों तक को निशाना बनाने के लिए कुख्यात रहा है. इस संगठन की रणनीति आत्मघाती हमलों, टारगेट किलिंग और सीमावर्ती इलाकों में उथल-पुथल मचाने की रही है. अब अगर यही नेटवर्क भारत के करीब पहुंचता है, वो भी ऐसे वक्त में जब बांग्लादेश की राजनीतिक कमान कमजोर हो, तो भारत के लिए यह एक नई चुनौती का आगाज है.

    मलेशिया में भी गिरफ्तार हुए 36 बांग्लादेशी

    इस बीच मलेशिया में भी बांग्लादेश के 36 नागरिकों को आतंकवाद से जुड़े शक में पकड़ा गया है. इन घटनाओं को एक साथ देखें तो तस्वीर और डरावनी हो जाती है - लगता है कि TTP जैसे आतंकी संगठन बांग्लादेश की बदलती सत्ता संरचना और शेख हसीना की गैरमौजूदगी का फायदा उठाकर अपनी जड़ें मजबूत करने में जुटे हैं.

    भारत के लिए क्यों बढ़ा खतरा?

    भारत के लिए यह सिर्फ एक सीमावर्ती खतरा नहीं, बल्कि एक रणनीतिक खतरा है. TTP की मौजूदगी का मतलब है, न सिर्फ आतंक की संभावना, बल्कि पूर्वोत्तर में पहले से मौजूद उग्रवादी समूहों के साथ उसका गठजोड़. भारत की कई सुरक्षा एजेंसियों का मानना है कि बांग्लादेश के जरिए आतंकी गतिविधियों की घुसपैठ करना पहले से ही पाकिस्तान की रणनीति रही है. अगर अब TTP इस मॉडल में फिट हो जाए, तो हालात बेहद खतरनाक हो सकते हैं.

    ढाका क्या कर रहा है?

    बांग्लादेश की सुरक्षा एजेंसियां कह रही हैं कि वो इस खतरे से निपटने के लिए कार्रवाई कर रही हैं. ‘द डेली स्टार’ अखबार की रिपोर्ट के मुताबिक, बांग्लादेश में कई खुफिया अभियानों के जरिए कट्टरपंथी नेटवर्क को तोड़ने की कोशिश की जा रही है, लेकिन विशेषज्ञों का मानना है कि मौजूदा प्रशासन की वैधता और स्थायित्व पर उठते सवाल इन प्रयासों को कमजोर बना रहे हैं.

    नेपाल से भी आ रही हैं चेतावनियां

    दिलचस्प रूप से हाल ही में नेपाल में एक अंतरराष्ट्रीय सेमिनार हुआ, जिसमें पाकिस्तान-प्रायोजित आतंकवाद को क्षेत्रीय खतरे के रूप में पहचाना गया. नेपाल के पूर्व विदेश मंत्री, रक्षा मंत्री और राजदूतों ने मिलकर माना कि पाकिस्तान की आतंकी नीतियों ने SAARC जैसे क्षेत्रीय संगठनों को निष्क्रिय बना दिया है. भारत के पड़ोसी देश अब यह समझने लगे हैं कि आतंकवाद सिर्फ भारत का मुद्दा नहीं, बल्कि पूरे दक्षिण एशिया की स्थिरता के लिए खतरा है.

    नेपाल के पूर्व राजदूत मधु रामन आचार्य ने भारत और नेपाल के बीच संयुक्त खुफिया साझेदारी और सीमा पर संयुक्त गश्त की जरूरत पर जोर देते हुए कहा, "आतंकवाद के खिलाफ हम भारत के साथ खड़े हैं." यह बयान ऐसे समय आया है जब बांग्लादेश की सीमाएं भी सुलगने लगी हैं.

    अब भारत को क्या करना चाहिए?

    भारत के पास अब विकल्प सीमित हैं - या तो वह बांग्लादेश में नई सत्ता से कूटनीतिक बातचीत के ज़रिए अपनी सुरक्षा चिंताओं को प्रमुखता दे, या फिर अपने पूर्वोत्तर में खुफिया नेटवर्क और सीमा प्रबंधन को और ज्यादा मजबूत करे.

    भारत पहले भी ऐसे दौर से गुज़रा है जब पड़ोसी देशों की अस्थिरता ने उसकी सुरक्षा को सीधे प्रभावित किया है - चाहे वह म्यांमार का सैन्य तख्तापलट हो या नेपाल की आंतरिक राजनीति में चीन का हस्तक्षेप. लेकिन TTP जैसे आतंकी संगठनों की सीमावर्ती मौजूदगी, और वो भी बांग्लादेश जैसे घनी आबादी वाले देश में, स्थिति को और अधिक जटिल बनाती है.

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