हाल ही में संपन्न हुए एससीओ शिखर सम्मेलन (SCO Summit) में भारत, रूस और चीन के नेताओं की मुलाकात और बढ़ती साझेदारी ने विश्व मंच पर कई समीकरणों को झकझोर दिया है. खासकर अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की प्रतिक्रियाएं इस बात का संकेत दे रही हैं कि उन्हें भारत की बहुपक्षीय कूटनीति और रूस के साथ उसके व्यापारिक रिश्ते रास नहीं आ रहे हैं.
डोनाल्ड ट्रंप ने अपने सोशल मीडिया हैंडल पर भारत को लेकर तीखा बयान देते हुए व्यापार घाटे, अमेरिकी टैरिफ, और भारत-रूस के रिश्तों को निशाने पर लिया. उन्होंने स्पष्ट रूप से कहा कि अमेरिका ने वर्षों तक भारत के साथ एकतरफा व्यापारिक रिश्ता निभाया है, जिसका संतुलन अब बिगड़ चुका है.
अमेरिका-भारत व्यापार को लेकर ट्रंप की शिकायतें
अपने बयान में ट्रंप ने अमेरिका और भारत के बीच व्यापारिक असंतुलन को लेकर नाराजगी जताई. उन्होंने कहा, "बहुत कम लोग जानते हैं कि भारत हमारे साथ जितना व्यापार करता है, हम उसके मुकाबले बहुत कम करते हैं. भारत को अमेरिका एक बड़ा ग्राहक मिला हुआ है, लेकिन इसके बावजूद वे अमेरिकी सामान पर सबसे ज्यादा टैरिफ लगाते हैं."
ट्रंप के आरोपों के मुख्य बिंदु:
व्यापार असंतुलन:
भारत अमेरिका को बहुत अधिक सामान निर्यात करता है, लेकिन अमेरिका को भारत में अपनी वस्तुएं बेचने में कठिनाई होती है. इसका कारण ट्रंप ने भारत द्वारा लगाए गए उच्च टैरिफ (Import Duties) को बताया.
टैरिफ की तुलना में भेदभाव:
ट्रंप के मुताबिक भारत अमेरिकी कंपनियों को अपने बाजार में सामान बेचने की इजाजत नहीं देता क्योंकि टैरिफ इतने ऊंचे हैं कि अमेरिकी उत्पाद प्रतिस्पर्धा नहीं कर पाते.
भारत का रूस से झुकाव:
उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि भारत अमेरिका के बजाय रूस से अधिक तेल और हथियार खरीदता है, जो अमेरिका के लिए एक रणनीतिक असंतुलन पैदा करता है.
क्या है ट्रंप की नाराज़गी की असली वजह?
डोनाल्ड ट्रंप का यह बयान एससीओ सम्मेलन के बाद आया है, जहां भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग और रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के साथ द्विपक्षीय बातचीत की. इसे भारत, रूस और चीन के बीच बढ़ती निकटता के संकेत के रूप में देखा जा रहा है, जिसने अमेरिका को कूटनीतिक रूप से असहज कर दिया है.
पश्चिमी विश्लेषकों का मानना है कि भारत जिस तरह से अमेरिका के साथ साझेदारी बनाए रखते हुए रूस और चीन के साथ भी अपने संबंधों को संतुलित कर रहा है, वह वॉशिंगटन के लिए चिंता का विषय बनता जा रहा है.
ट्रंप के लिए यह इसलिए भी असहज स्थिति है, क्योंकि भारत को अमेरिका का रणनीतिक साझेदार माना जाता रहा है, खासकर चीन को बैलेंस करने के नजरिए से. लेकिन SCO जैसे मंचों पर भारत की सक्रियता और रूस के साथ उसकी रक्षा साझेदारी अब ट्रंप जैसे नेताओं के निशाने पर है.
ट्रंप ने क्यों कहा 'अब बहुत देर हो चुकी है'?
ट्रंप ने अपने बयान में यह भी कहा कि भारत अब अमेरिका से टैरिफ कम करने की पेशकश कर रहा है, लेकिन यह 'बहुत देर' से आ रहा है. इसके जरिए ट्रंप यह जताना चाहते हैं कि भारत को पहले ही अमेरिकी उत्पादों के लिए अपनी सीमाएं खोल देनी चाहिए थीं.
इस टिप्पणी का निहितार्थ यह है कि ट्रंप भारत की वर्तमान नीतियों को “अवसरवादी” मानते हैं और वह नहीं चाहते कि अमेरिका सिर्फ "बड़ा बाजार" बनकर रह जाए, जबकि रक्षा और ऊर्जा जैसे अहम क्षेत्रों में भारत रूस से डील करता रहे.
भारत-रूस संबंध: अमेरिका को क्यों चुभ रहा है?
भारत और रूस के बीच लंबे समय से रक्षा, ऊर्जा और रणनीतिक साझेदारी है. भारत आज भी रूस से बड़ी मात्रा में कच्चा तेल, सैन्य उपकरण, और अंतरिक्ष टेक्नोलॉजी जैसी संवेदनशील तकनीकें खरीदता है. यूक्रेन युद्ध के बाद, जब पश्चिमी देश रूस पर प्रतिबंध लगा रहे थे, भारत ने रूस से रियायती दरों पर तेल खरीद जारी रखा. इससे अमेरिका और यूरोपीय संघ में असंतोष की भावना बनी रही.
हाल ही में आंकड़ों से भी यह स्पष्ट हुआ कि भारत अब रूस का दूसरा सबसे बड़ा तेल खरीदार बन चुका है. भारत ने GE-414 इंजन जैसी डील्स अमेरिका से जरूर की हैं, लेकिन व्यापक स्तर पर उसकी ऊर्जा और सुरक्षा रणनीति रूस-केंद्रित बनी हुई है.
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