टैरिफ से लेकर H-1B वीजा तक... MAGA के चक्कर में अमेरिका को बर्बाद कर रहे ट्रंप! होगा भारी नुकसान

    अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने अपने चुनावी अभियान के दौरान ‘Make America Great Again’ (MAGA) का नारा देकर देश की जनता से वादा किया था कि वे अमेरिका को फिर से दुनिया की सबसे शक्तिशाली और आत्मनिर्भर अर्थव्यवस्था बनाएंगे.

    Trump is ruining America with his MAGA agenda
    Image Source: ANI/ File

    अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने अपने चुनावी अभियान के दौरान ‘Make America Great Again’ (MAGA) का नारा देकर देश की जनता से वादा किया था कि वे अमेरिका को फिर से दुनिया की सबसे शक्तिशाली और आत्मनिर्भर अर्थव्यवस्था बनाएंगे. लेकिन उनके हालिया आर्थिक और वीजा नीतियों से लगता है कि अमेरिका को 'महान' बनाने की उनकी योजना कहीं देश के लिए 'महंगी' साबित न हो जाए.

    H-1B वीज़ा फीस में ऐतिहासिक बढ़ोतरी

    ट्रंप प्रशासन ने हाल ही में घोषणा की कि H-1B वीज़ा की नई याचिकाओं पर $100,000 (लगभग ₹88 लाख) की बड़ी फीस लगेगी. यह कदम उन कंपनियों और विदेशी पेशेवरों के लिए बड़ा झटका है, जो अमेरिका में नौकरी या कारोबार के ज़रिए भविष्य बनाने की कोशिश कर रहे हैं. खासकर भारतीय आईटी सेक्टर से जुड़े लोगों के लिए यह बड़ा आर्थिक और मानसिक झटका है.

    H-1B वीज़ा वर्षों से अमेरिका की अर्थव्यवस्था का एक अहम हिस्सा रहा है. माइक्रोसॉफ्ट के CEO सत्या नडेला, गूगल के CEO सुंदर पिचाई, और टेस्ला-स्पेसएक्स के प्रमुख एलन मस्क जैसे लोग अप्रवासी पृष्ठभूमि से हैं जिन्होंने अमेरिकी सपने को साकार किया और देश को आगे बढ़ाने में योगदान दिया. ऐसे में वीज़ा नीति में यह बदलाव केवल नौकरियों को प्रभावित नहीं करेगा, बल्कि अमेरिका की भविष्य की इनोवेशन और प्रतिस्पर्धा क्षमता पर भी असर डाल सकता है.

    अमेरिकी कर्ज: बढ़ता बोझ, घटती सहनशक्ति

    ट्रंप प्रशासन ऐसे समय में यह कदम उठा रहा है जब अमेरिका की वित्तीय हालत पहले से ही चिंता का विषय बनी हुई है. मौजूदा रिपोर्ट्स के अनुसार:

    • 12 ट्रिलियन डॉलर से अधिक कर्ज अमेरिका को अगले वर्ष चुकाना या री-इश्यू करना होगा.
    • इसमें से करीब 9 ट्रिलियन डॉलर पुराने कर्ज की परिपक्वता है.
    • करीब 2 ट्रिलियन डॉलर नया कर्ज बजट घाटा भरने के लिए उठाया जाएगा.
    • और 1 ट्रिलियन डॉलर केवल कर्ज का ब्याज चुकाने में खर्च होगा, जो बजट घाटे का लगभग 50% है.

    इसके साथ ही अमेरिका का Debt-to-GDP Ratio 125% के पार है, जबकि भारत की यह दर मात्र 56.1% है. यह अंतर दर्शाता है कि अमेरिका की अर्थव्यवस्था पर कर्ज का बोझ कहीं ज्यादा है, और कर्ज प्रबंधन में भारत फिलहाल बेहतर स्थिति में है.

    ट्रंप के फैसले: फायदा कम, नुकसान ज़्यादा?

    ट्रंप प्रशासन द्वारा लिए गए कुछ बड़े फैसले अब सवालों के घेरे में हैं:

    1. वैश्विक टैरिफ्स में बढ़ोतरी

    ट्रंप ने राष्ट्रपति बनने के बाद चीन, भारत और यूरोप समेत कई देशों पर आयात शुल्क बढ़ा दिए. तर्क दिया गया कि इससे अमेरिकी कंपनियां घरेलू उत्पादन को प्राथमिकता देंगी और स्थानीय रोजगार में वृद्धि होगी.

    हालांकि इसके उलट, विशेषज्ञों का कहना है कि इन टैरिफ्स से अमेरिका में महंगाई बढ़ी है और विदेशी कंपनियों ने अमेरिका से दूरी बनानी शुरू कर दी है. उत्पादन की लागत अधिक होने के कारण कंपनियों ने निवेश को सीमित कर दिया है, जिससे रोजगार सृजन पर भी नकारात्मक असर पड़ा है.

    2. H-1B वीजा शुल्क में भारी इज़ाफा

    अब H-1B वीजा पर नया बोझ डालना भी उसी सोच का हिस्सा है- विदेशी कामगारों को हतोत्साहित करना और स्थानीय नागरिकों को प्राथमिकता देना. लेकिन यह निर्णय एक दोधारी तलवार है.

    इसका सीधा असर अमेरिकी कंपनियों पर पड़ेगा जो भारतीय या अन्य विदेशी आईटी कंपनियों से सेवाएं लेती हैं. उन्हें या तो खुद तकनीकी स्टाफ हायर करना पड़ेगा, या अपने कर्मचारियों को अतिरिक्त प्रशिक्षण देना होगा दोनों ही विकल्प महंगे और समय लेने वाले हैं.

    आकर्षण कम हुआ तो अमेरिका का क्या होगा?

    H-1B वीजा के ज़रिए ही हजारों प्रतिभाशाली युवा अमेरिका आते हैं. यहीं वे इनोवेशन करते हैं, स्टार्टअप शुरू करते हैं, बड़ी कंपनियों का नेतृत्व संभालते हैं. इनका योगदान केवल आर्थिक नहीं, बल्कि तकनीकी और वैश्विक नेतृत्व के रूप में होता है.

    अगर अमेरिका इन नीतियों के ज़रिए अपना दरवाज़ा बंद करता चला गया, तो ये प्रतिभाएं अब कनाडा, ऑस्ट्रेलिया, यूके या यूरोप की ओर रुख कर सकती हैं जो खुलकर विदेशी टैलेंट का स्वागत कर रहे हैं.

    ये भी पढ़ें- 'H-1B होल्डर्स को जॉब देकर अमेरिकियों को निकाला', ट्रंप प्रशासन ने बताई वीजा फीस बढ़ाने की वजह