Trump and Armenia Bridge Coridor Deal: दुनिया की भू-राजनीतिक बिसात पर एक और बड़ा मोहरा चल दिया गया है. अमेरिका और इजराइल अब आर्मेनिया के साथ मिलकर एक ऐसा कॉरिडोर विकसित कर रहे हैं, जो कागजों पर भले ही एक ट्रांसपोर्ट योजना लगे, लेकिन इसका असली मकसद कहीं गहरे तक जाकर ईरान की सुरक्षा रणनीति को झकझोरने वाला है.
ये कॉरिडोर केवल एक सड़क नहीं, बल्कि ईरान की उत्तरी सरहद पर खींची जा रही एक रणनीतिक लकीर है. आर्मेनिया के स्युनीक (या ज़ंगेज़ूर) इलाके से होकर गुजरने वाला यह 42 किलोमीटर लंबा रास्ता अजरबैजान के मुख्य भूभाग को उसके अलग-थलग नखिचवान एन्क्लेव से जोड़ेगा. लेकिन असली बात सिर्फ जोड़ने की नहीं, यह रास्ता अमेरिका के हाथों 99 साल की लीज पर रहेगा और इसका निर्माण तथा संचालन एक प्राइवेट अमेरिकी मिलिट्री कंपनी (PMC) करेगी. यानी आधिकारिक सैन्य ठिकाना न होते हुए भी यहां अमेरिकी हथियारबंद ताकतें पूरी छूट के साथ मौजूद रहेंगी.
ईरान के लिए क्यों है ये बड़ा खतरा?
इस कॉरिडोर की लोकेशन ईरान की उत्तरी सीमा से बेहद करीब है, जिससे वॉशिंगटन को एक नया निगरानी अड्डा मिल जाएगा. इस ज़ोन में करीब 1000 से अधिक अमेरिकी कॉन्ट्रैक्ट सैनिकों की मौजूदगी की बात सामने आई है. ड्रोन ऑपरेशन, साइबर जासूसी, इलेक्ट्रॉनिक सर्विलांस और अन्य सैन्य गतिविधियों को अंजाम देने के लिए यह एक ‘सॉफ्ट बेस’ की तरह काम करेगा बिना किसी पारंपरिक युद्ध घोषणा के.
ईरान चारों ओर से कैसे घिरता जा रहा है?
अब इस कॉरिडोर के जरिए अमेरिका ने उत्तर से ईरान पर निगरानी का दबाव बना लिया है. वहीं, पूर्व में अजरबैजान और तुर्की पहले से अमेरिका और इजराइल के करीबी हैं. दक्षिण में इजराइली नेवी की उपस्थिति और गुप्त ऑपरेशनल बेस पश्चिम में अफगानिस्तान से अमेरिकी इंटेलिजेंस का प्रभाव ईरान के लिए ये संकेत काफी हैं कि उसे रणनीतिक रूप से घेरने का काम तेजी से पूरा किया जा रहा है.
आर्मेनिया का बदला हुआ रुख और इसका वैश्विक असर
कभी रूस के सैन्य गुट CSTO का हिस्सा रहा आर्मेनिया अब अमेरिका के साथ खड़ा दिखाई दे रहा है. ये बदलाव केवल एक संधि भर नहीं, बल्कि बड़े जियोपॉलिटिकल समीकरण को हिला सकता है. रूस के लिए सीधी चुनौती, कॉकस क्षेत्र में अमेरिका की घुसपैठ, चीन के बेल्ट एंड रोड प्रोजेक्ट पर असर यूरोप के लिए शक्ति संतुलन का संकट
जंग का नया चेहरा: सैनिक नहीं, कॉरिडोर लड़ेंगे युद्ध
ट्रंप ब्रिज एक ऐसा ‘साइलेंट वॉर ज़ोन’ बन सकता है, जिसे कभी भी ड्रोन बेस, इंटेल हब या स्पेशल ऑप्स लॉन्च सेंटर में बदला जा सकता है. आने वाले वर्षों में अगर इजराइल और ईरान के बीच तनाव बढ़ा, तो यह कॉरिडोर निर्णायक भूमिका निभा सकता है — न सिर्फ निगरानी में बल्कि मनोवैज्ञानिक दबाव और आक्रामक नीति में भी.
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