China India Relations: दुनिया की सबसे जटिल भू-राजनीतिक चालों में एक नया मोड़ तब आया, जब भारत और अमेरिका के रिश्तों में हाल ही में खटास देखने को मिली. ट्रंप प्रशासन द्वारा भारतीय तेल आयात पर 50% टैरिफ लगाने के फैसले ने इन दो करीबी सहयोगियों के बीच दरार पैदा कर दी है, और इसी दरार से एक तीसरा देश सबसे ज्यादा लाभ उठाता दिख रहा है.
जहां एक ओर भारत और अमेरिका वर्षों से सुरक्षा, प्रौद्योगिकी और रणनीतिक गठबंधनों में साथ आते दिखे थे, वहीं अब अमेरिका की नीतियों में अचानक आए बदलाव ने इस समीकरण को अस्थिर कर दिया है. और इस परिस्थिति में चीन के लिए यह मानो एक अप्रत्याशित कूटनीतिक तोहफा बन गया है.
क्या चीन-भारत संबंधों में आ रही है नई गर्माहट?
बीते कुछ वर्षों से भारत और चीन के रिश्तों में तनातनी बनी रही, खासकर सीमा विवाद, रणनीतिक अविश्वास और क्षेत्रीय प्रतिस्पर्धा को लेकर. लेकिन पिछले साल अक्टूबर में ब्रिक्स सम्मेलन के दौरान प्रधानमंत्री मोदी और राष्ट्रपति शी जिनपिंग की मुलाकात के बाद दोनों देशों के बीच बर्फ पिघलती नजर आई.
उसके बाद से उच्च स्तरीय संवाद बढ़ा है, व्यापार बाधाओं पर चर्चा हुई है और यहां तक कि लोगों की आवाजाही को आसान बनाने जैसे मुद्दों पर भी प्रगति हुई है. बेंगलुरु स्थित तक्षशिला संस्थान के हिंद-प्रशांत विशेषज्ञ मनोज केवलरमानी के अनुसार, “बीजिंग में कई लोगों को भारत और अमेरिका के बढ़ते व्यापारिक रिश्ते से असहजता थी. लेकिन अब यह दूरी चीन के हित में काम आ सकती है.”
लेकिन रिश्तों में अब भी हैं दरारें
हालांकि हालिया संवाद सकारात्मक रहा है, फिर भी भारत और चीन के बीच अभी भी कई ऐसे मुद्दे हैं जो आपसी विश्वास को सीमित करते हैं. जैसे कि 2,100 मील लंबी सीमा पर नियंत्रण से जुड़े विवाद, पाकिस्तान को चीन का निरंतर समर्थन और भारत की कोशिश कि वह उन वैश्विक कंपनियों को आकर्षित कर सके जो चीन पर अपनी निर्भरता कम करना चाहती हैं. ये सभी तत्व इस उभरती निकटता पर एक सावधानी की परत चढ़ा देते हैं.
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