बीजिंग/मनीला: दक्षिण चीन सागर, जो पहले से ही रणनीतिक और भूराजनीतिक खींचतान का केंद्र रहा है, एक बार फिर वैश्विक ध्यान का केंद्र बन गया है. इस बार वजह है भारत और फिलीपींस की नौसेनाओं के बीच इस क्षेत्र में पहली बार हुआ संयुक्त सैन्य अभ्यास. जहां एक ओर यह अभ्यास दोनों देशों के बीच रक्षा सहयोग को मजबूत करने की दिशा में एक अहम कदम माना जा रहा है, वहीं दूसरी ओर चीन ने इसे क्षेत्रीय संप्रभुता पर ‘बाहरी हस्तक्षेप’ करार देते हुए कड़ी प्रतिक्रिया दी है.
भारतीय नौसेना ने पहली बार फिलीपींस की नौसेना के साथ दक्षिण चीन सागर में संयुक्त अभ्यास किया है. इस सैन्य अभ्यास में भारतीय युद्धपोत INS दिल्ली (गाइडेड मिसाइल डेस्ट्रॉयर), INS शक्ति (फ्लीट सपोर्ट टैंकर), और INS किल्टन (एंटी-सबमरीन कार्वेट) हिस्सा ले रहे हैं. यह अभ्यास फिलीपींस के विशेष आर्थिक क्षेत्र (EEZ) में आयोजित किया जा रहा है.
फिलीपींस की सेना के प्रमुख जनरल रोमियो ब्राउनर के अनुसार, यह अभ्यास फिलीपींस की समुद्री सुरक्षा क्षमताओं को बढ़ाने के साथ-साथ हिंद-प्रशांत क्षेत्र में सहयोग बढ़ाने की दिशा में एक निर्णायक पहल है.
चीन ने अभ्यास को बताया "उकसावे की कार्रवाई"
हालांकि यह सैन्य अभ्यास दो संप्रभु देशों के बीच द्विपक्षीय रक्षा सहयोग का प्रतीक है, लेकिन चीन इससे नाखुश नजर आ रहा है. चीनी सेना की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (PLA) के दक्षिणी थिएटर कमांड ने इस अभ्यास पर तीखी प्रतिक्रिया दी है. PLA ने आरोप लगाया कि फिलीपींस इस क्षेत्र में ‘संयुक्त गश्त’ के नाम पर एक "बाहरी ताकत" को आमंत्रित कर रहा है, जो क्षेत्रीय शांति और स्थिरता के लिए खतरा पैदा कर सकता है.
चीन ने दक्षिण चीन सागर पर अपने 'ऐतिहासिक अधिकार' का दावा दोहराते हुए कहा कि वह किसी भी "विदेशी सैन्य हस्तक्षेप" को बर्दाश्त नहीं करेगा. PLA के प्रवक्ता ने कहा, "हम हाई अलर्ट पर हैं और राष्ट्रीय संप्रभुता तथा समुद्री हितों की पूरी शक्ति से रक्षा करेंगे." PLA ने यह भी दावा किया कि वह इस पूरे सैन्य अभ्यास की निगरानी कर रहा है और क्षेत्र में किसी भी 'अस्थिरता फैलाने वाले प्रयास' को नियंत्रण में रखने के लिए पूरी तरह सक्षम है.
फिलीपींस के राष्ट्रपति की भारत यात्रा
इस सैन्य अभ्यास के बीच एक और अहम घटनाक्रम हुआ, फिलीपींस के राष्ट्रपति फर्डिनेंड आर. मार्कोस जूनियर भारत की राजकीय यात्रा पर नई दिल्ली पहुंचे. यह उनकी भारत की पहली आधिकारिक यात्रा है, जो दोनों देशों के बीच रक्षा, व्यापार और रणनीतिक सहयोग को नई ऊंचाई पर ले जाने की दिशा में महत्वपूर्ण मानी जा रही है.
मंगलवार को राष्ट्रपति भवन में उन्हें औपचारिक गार्ड ऑफ ऑनर दिया गया. इस अवसर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने उनका गर्मजोशी से स्वागत किया.
पत्रकारों से बातचीत करते हुए राष्ट्रपति मार्कोस ने कहा, "यह यात्रा हमारे बीच के गठबंधन और साझेदारी की पुनः पुष्टि है. अब हम एशिया-प्रशांत नहीं, बल्कि 'हिंद-प्रशांत' क्षेत्र में हैं, जो हमारी राजनीतिक, व्यापारिक और आर्थिक रणनीतियों की वैश्विक प्रकृति को दर्शाता है."
उन्होंने आगे कहा कि फिलीपींस भारत के साथ संबंधों को केवल औपचारिकताओं तक सीमित नहीं रखना चाहता, बल्कि इन साझेदारियों को तकनीकी सहयोग, समुद्री सुरक्षा, साइबर सुरक्षा और क्षेत्रीय स्थिरता तक विस्तारित करने की दिशा में प्रतिबद्ध है.
भारत-फिलीपींस सहयोग: हिंद-प्रशांत में नया संतुलन?
भारत और फिलीपींस के बीच बढ़ती नजदीकियां इस बात का संकेत हैं कि हिंद-प्रशांत क्षेत्र में चीन के प्रभुत्व को संतुलित करने के प्रयास जारी हैं. भारत की ‘एक्ट ईस्ट पॉलिसी’ और फिलीपींस की ‘नेशनल मैरीटाइम स्ट्रैटेजी’ एक-दूसरे के पूरक बनकर उभर रही हैं.
विशेषज्ञों का मानना है कि यह नौसैनिक अभ्यास एक साधारण सैन्य कवायद नहीं, बल्कि एक व्यापक रणनीतिक संकेत है कि क्षेत्रीय देश अब अपनी रक्षा और कूटनीति को अधिक बहुपक्षीय और स्वतंत्र बनाना चाहते हैं.
चीन की प्रतिक्रिया: तनाव या चेतावनी?
चीन की प्रतिक्रिया केवल कूटनीतिक विरोध नहीं, बल्कि एक रणनीतिक संदेश भी है कि वह दक्षिण चीन सागर को "अपना प्रभाव क्षेत्र" मानता है और वहां किसी तीसरे पक्ष की सक्रियता को चुनौती के रूप में देखता है. हालांकि, अंतरराष्ट्रीय कानून और यूएनसीएलओएस (UNCLOS) जैसे समझौते फिलीपींस को अपने EEZ में सैन्य साझेदारी की पूरी आजादी देते हैं.
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