दुनिया में तकनीक और रक्षा के क्षेत्र में बढ़ती प्रतिस्पर्धा के बीच अब जंग केवल हथियारों से नहीं, बल्कि खनिजों की ताकत से भी लड़ी जा रही है. चीन, जो पहले ही दुर्लभ मृदा तत्वों (rare earth elements) का सबसे बड़ा उत्पादक और निर्यातक है, अब एक ऐसे खनिज पर अपना शिकंजा कस रहा है, जो किसी भी आधुनिक सैन्य शक्ति की रीढ़ माना जाता है—सैमरियम.
क्या है सैमरियम, और क्यों है यह इतना अहम?
सैमरियम एक दुर्लभ मृदा तत्व है जिसका उपयोग लगभग पूरी तरह से रक्षा क्षेत्र में होता है. लड़ाकू विमान, मिसाइल, स्मार्ट बम और उच्च तकनीक वाले सैन्य प्लेटफॉर्म इसके बिना अधूरे हैं. उदाहरण के लिए, अमेरिका का एडवांस्ड फाइटर जेट F-35—इसमें 50 पाउंड तक सैमरियम मैग्नेट की जरूरत होती है. इसके बिना उसका निर्माण संभव नहीं.
चीन ने सैमरियम और 6 अन्य दुर्लभ तत्वों के निर्यात पर लगाया प्रतिबंध
अमेरिका और चीन के बीच चल रही व्यापारिक तनातनी के बीच चीन ने अप्रैल में सात दुर्लभ मृदाओं के निर्यात पर रोक लगा दी थी. इनमें डिस्प्रोसियम, गैडोलीनियम, ल्यूटेटियम, स्कैंडियम, टेरबियम, यट्रियम और सैमरियम शामिल हैं. इनमें से अधिकांश का उपयोग नागरिक तकनीकों में होता है, लेकिन सैमरियम विशेष रूप से सैन्य उपयोग में लाया जाता है.
अमेरिका के लिए खतरे की घंटी
विशेषज्ञों का मानना है कि अगर चीन सैमरियम की सप्लाई पर पूरी तरह से लगाम कस देता है, तो इससे अमेरिकी और अन्य पश्चिमी सेनाओं की युद्धक तैयारियों पर गहरा असर पड़ेगा. ब्रिटिश चैंबर्स ऑफ कॉमर्स के व्यापार नीति प्रमुख विलियम बैन ने चेताया कि अगर सैमरियम की आपूर्ति बाधित रही, तो F-35 जैसे विमानों का उत्पादन थम सकता है. लॉकहीड मार्टिन, जो अमेरिका में इन जेट्स का निर्माण करता है, सैमरियम का प्रमुख उपभोक्ता है.
चीन बना रहा है रणनीतिक दबाव
रिपोर्ट्स के अनुसार, चीन जानबूझकर डिस्प्रोसियम और टेरबियम जैसे अन्य दुर्लभ तत्वों के लिए लाइसेंस देना शुरू कर चुका है, लेकिन सैमरियम के लिए कोई लाइसेंस नहीं दिया गया. यह दिखाता है कि चीन इस खनिज का इस्तेमाल अमेरिका और अन्य पश्चिमी देशों पर रणनीतिक दबाव बनाने के लिए कर रहा है.
कब तक चलेंगे पश्चिमी देशों के भंडार?
अमेरिकी रक्षा विभाग और कुछ पश्चिमी कंपनियों के पास सीमित मात्रा में सैमरियम का भंडार मौजूद है, लेकिन विशेषज्ञों के मुताबिक ये सिर्फ कुछ महीनों तक ही चल पाएंगे. नई आपूर्ति के बिना, उत्पादन, मरम्मत और सैन्य अपग्रेड सब कुछ ठप हो सकता है.
चीन को मिल रही रणनीतिक बढ़त
चीन की इस रणनीति ने व्यापारिक वार्ता की दिशा ही बदल दी है. पहले जहां बातचीत टैरिफ और शुल्क पर केंद्रित थी, अब दुर्लभ मृदाओं की आपूर्ति एक प्रमुख मुद्दा बन गई है. चीन, अब इन तत्वों के बदले में पश्चिमी तकनीकों तक पहुंच की मांग कर रहा है, और कहीं न कहीं इसमें उसे कामयाबी भी मिल रही है.
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