नई दिल्ली: भारत और अमेरिका के बीच व्यापारिक संबंधों में इन दिनों तनाव की स्थिति बनी हुई है. रूस से तेल खरीदने के चलते अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने भारत पर नए आयात शुल्क (टैरिफ) लगाने का ऐलान किया है. इस फैसले से दोनों देशों के बीच संबंधों में तल्खी आ गई है. हालांकि, वरिष्ठ कांग्रेस नेता और सांसद डॉ. शशि थरूर ने इस स्थिति को लेकर आशावादी रुख दिखाया है और उम्मीद जताई है कि यह विवाद बातचीत के जरिए सुलझाया जा सकता है.
शशि थरूर, जो पूर्व विदेश राज्यमंत्री और संयुक्त राष्ट्र में भारत के स्थायी प्रतिनिधि रह चुके हैं, अंतरराष्ट्रीय राजनीति और कूटनीति को गहराई से समझते हैं. उनका मानना है कि डोनाल्ड ट्रंप की नीतियों को सामान्य कूटनीतिक नजरिए से नहीं देखा जा सकता, क्योंकि उनका तरीका अक्सर सौदेबाजी और दबाव बनाने वाला होता है. थरूर के अनुसार, यह अमेरिका की ओर से एक रणनीतिक दांव भी हो सकता है, बातचीत के दरवाजे बंद नहीं हुए हैं.
ट्रंप की चेतावनी और भारत पर असर
बुधवार (6 अगस्त 2025) को अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने घोषणा की कि अमेरिका भारत से आने वाले सभी प्रमुख उत्पादों पर अतिरिक्त 25% टैरिफ लगाएगा. इस फैसले को रूस से भारत द्वारा कच्चा तेल खरीदने के जवाब के रूप में देखा जा रहा है, जिससे अमेरिका कथित तौर पर असहज है. ट्रंप ने अपने बयान में "राष्ट्रीय सुरक्षा" और "अमेरिका की विदेश नीति के हितों" का हवाला दिया.
यह निर्णय ऐसे समय में आया है जब भारत अमेरिका का अहम व्यापारिक और रणनीतिक साझेदार बना हुआ है. बीते वर्षों में दोनों देशों ने रक्षा, तकनीक, ऊर्जा और निवेश के क्षेत्रों में कई समझौते किए हैं. लेकिन अब ऐसा प्रतीत हो रहा है कि रूस से भारत के बढ़ते आर्थिक संबंधों से अमेरिका असहज हो रहा है, और उसने यह कदम उस असंतोष की प्रतिक्रिया के तौर पर उठाया है.
थरूर का दृष्टिकोण: बातचीत से हल संभव
शशि थरूर ने शुक्रवार को संसद के बाहर पत्रकारों से बातचीत में कहा कि भारत और अमेरिका के बीच ऐतिहासिक रूप से मजबूत संबंध रहे हैं और उन्हें भरोसा है कि मौजूदा टैरिफ विवाद को भी शांतिपूर्ण बातचीत के जरिए सुलझाया जा सकता है.
उन्होंने कहा, "ट्रंप का रवैया आम अमेरिकी राष्ट्रपतियों से अलग होता है. उनका अंदाज डील-मेकिंग (सौदेबाजी) का है. वे पहले दबाव बनाते हैं और फिर बातचीत की मेज पर आते हैं. हमें इस स्थिति को भी उसी नजरिए से देखना चाहिए."
थरूर ने यह भी जोड़ा कि भारत को भी अपनी रणनीति तैयार रखनी चाहिए. उन्होंने कहा, "अगर कोई ऐसा देश, जिससे हमारे रणनीतिक रिश्ते हैं, अपना व्यवहार बदल रहा है, तो भारत को भी अपने विकल्प तलाशने होंगे. जरूरी हुआ तो हमें अपने व्यापारिक हितों की रक्षा के लिए कदम उठाने पड़ेंगे."
अमेरिका को जवाब देने की सलाह
थरूर ने एक दिन पहले भी बयान देते हुए सुझाव दिया था कि यदि अमेरिका भारत पर टैरिफ बढ़ाता है, तो भारत को भी अमेरिका से आयात होने वाले उत्पादों पर पारस्परिक टैरिफ (Reciprocal Tariff) लगाना चाहिए. उन्होंने यहां तक कहा कि भारत 50% तक का आयात शुल्क अमेरिकी वस्तुओं पर लगा सकता है, ताकि यह संदेश जाए कि भारत अपने व्यापारिक हितों से समझौता नहीं करेगा.
यह बयान भारत की "टिट-फॉर-टैट" (जैसे को तैसा) नीति का समर्थन करता है, जो अंतरराष्ट्रीय व्यापार में अक्सर एक प्रभावी दबाव बनाने वाला औजार बन जाती है. इससे अमेरिका को यह संकेत मिल सकता है कि भारत भी अपनी शर्तों पर सौदा करना जानता है.
रणनीतिक साझेदारी या तनाव की ओर?
भारत और अमेरिका का रिश्ता सिर्फ व्यापार तक सीमित नहीं है. दोनों देशों के बीच रक्षा सौदे, तकनीकी आदान-प्रदान, स्टार्टअप और अंतरिक्ष क्षेत्र में सहयोग जैसे कई आयाम हैं. भारत-अमेरिका संबंधों को लेकर अक्सर यह कहा जाता है कि यह एक “नेचुरल अलायंस” है, जहां लोकतंत्र, खुले बाजार और वैश्विक स्थिरता जैसे मूल्य साझे हैं.
लेकिन अगर यह टैरिफ विवाद आगे बढ़ता है और दोनों देशों के बीच कोई संतुलन नहीं बनता, तो इसका असर अन्य क्षेत्रों पर भी पड़ सकता है. भारत की रूस से ऊर्जा निर्भरता को देखते हुए, अमेरिका की ओर से आने वाला दबाव नई दिल्ली के लिए एक जटिल कूटनीतिक चुनौती बन सकता है.
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