अगर भारत ने रूस से तेल लेना किया बंद, तो होगा 9 अरब डॉलर का नुकसान... देश के सबसे बड़े बैंक का दावा

    वैश्विक कूटनीतिक और आर्थिक तनावों के बीच भारत और रूस के बीच कच्चे तेल की रणनीतिक साझेदारी पर अब सवाल उठने लगे हैं.

    If India stops buying oil from Russia it will lose $9 billion
    प्रतिकात्मक तस्वीर/ FreePik

    नई दिल्ली: वैश्विक कूटनीतिक और आर्थिक तनावों के बीच भारत और रूस के बीच कच्चे तेल की रणनीतिक साझेदारी पर अब सवाल उठने लगे हैं. भारत, जो इस समय रूस से सबसे अधिक कच्चा तेल खरीदने वाला देश है, उसके लिए यह साझेदारी आर्थिक रूप से बेहद लाभकारी साबित हो रही है. लेकिन यदि यह साझेदारी किसी कारणवश रुक जाती है, तो इसका असर न केवल भारत की अर्थव्यवस्था पर पड़ेगा, बल्कि वैश्विक तेल बाजार में भी हलचल मच सकती है.

    देश के सबसे बड़े सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक, स्टेट बैंक ऑफ इंडिया (SBI) की हालिया रिपोर्ट में आगाह किया गया है कि अगर भारत ने वित्तीय वर्ष 2026 के शेष समय में रूस से कच्चा तेल खरीदना बंद कर दिया, तो क्रूड ऑयल इम्पोर्ट बिल में 9 अरब डॉलर से लेकर 12 अरब डॉलर (यानी ₹10,52,61,12,00,000 से भी अधिक) तक की बढ़ोत्तरी हो सकती है. रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि अगले वित्तीय वर्ष में यह बोझ और अधिक बढ़कर लगभग 11.7 अरब डॉलर तक पहुंच सकता है.

    रूस, जो इस समय अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंधों की मार झेल रहा है, भारत को भारी डिस्काउंट पर कच्चा तेल बेच रहा है. पश्चिमी देशों द्वारा यूक्रेन पर आक्रमण के बाद रूस पर लगाई गईं आर्थिक पाबंदियों ने उसके तेल निर्यात बाजार को सीमित कर दिया है. ऐसे में भारत ने अपनी ऊर्जा जरूरतों को देखते हुए रूस से सस्ता तेल खरीदना शुरू किया और यह रणनीति भारत के पक्ष में गई.

    वर्ष 2020 में भारत की कुल कच्चे तेल की खरीद में रूस की हिस्सेदारी मात्र 1.7% थी. लेकिन 2024-25 के वित्तीय वर्ष तक यह आंकड़ा बढ़कर 35.1% हो गया. इस दौरान भारत ने रूस से 88 मिलियन मीट्रिक टन कच्चा तेल खरीदा, जबकि कुल आयात 245 मिलियन मीट्रिक टन रहा. यह इशारा करता है कि किस तरह रूस भारत का सबसे प्रमुख तेल आपूर्तिकर्ता बन गया है.

    अमेरिका का दबाव और टैरिफ का झटका

    हालांकि भारत की यह रणनीति अमेरिका को रास नहीं आई है. अमेरिका ने हाल ही में भारतीय सामानों पर 50% तक का टैरिफ लगाने की घोषणा की है, जिसमें रूस से तेल खरीदने के लिए लगाए गए 25% के जुर्माने जैसे तत्व भी शामिल हैं. इस तरह भारत पर भू-राजनीतिक दबाव बढ़ता जा रहा है, जिससे उसकी स्वतंत्र तेल नीति पर असर पड़ सकता है.

    अगर रूस से तेल नहीं मिला तो क्या होगा?

    SBI की रिपोर्ट स्पष्ट करती है कि यदि रूस से तेल मिलना बंद हो जाता है, तो भारत को दूसरा विकल्प खोजना तो संभव है, लेकिन यह विकल्प सस्ता नहीं होगा. भारत को दूसरे देशों से महंगे दाम पर तेल खरीदना पड़ेगा, जिससे इम्पोर्ट बिल में अरबों डॉलर की बढ़ोत्तरी हो सकती है.

    इसके साथ ही, वैश्विक स्तर पर अगर रूस से तेल की आपूर्ति में कटौती होती है, तो कच्चे तेल की कीमतों में लगभग 10% की वृद्धि संभव है. इसका सीधा असर भारत जैसे बड़े तेल आयातक देशों पर पड़ेगा, जहां महंगे तेल के कारण मंहगाई, व्यापार घाटा और करेंट अकाउंट डेफिसिट में इजाफा हो सकता है.

    भारत की रणनीति: तेल की टोकरी में विविधता

    भारत की ऊर्जा सुरक्षा नीति पहले से ही विविध स्रोतों पर आधारित है. भारत आज लगभग 40 देशों से तेल खरीदता है, जिनमें अमेरिका, मध्य पूर्व (इराक, सऊदी अरब, यूएई), ब्राजील, गुयाना, अजरबैजान और कनाडा शामिल हैं. इससे यह सुनिश्चित होता है कि किसी एक देश से आपूर्ति बाधित होने की स्थिति में भी भारत अपनी ऊर्जा जरूरतें पूरी कर सकता है.

    इसके अलावा भारत के कई तेल उत्पादक देशों के साथ पहले से वार्षिक अनुबंध हैं, जिनके तहत आपात स्थिति में भी नियमित आपूर्ति सुनिश्चित की जा सकती है. यदि रूस से तेल खरीदना बंद करना पड़े, तो भारत मध्य पूर्व के पुराने सहयोगियों से फिर से अधिक मात्रा में तेल खरीद सकता है.

    नुकसान सीमित, लेकिन कीमत चुकानी होगी

    SBI की रिपोर्ट में यह संतुलित दृष्टिकोण भी सामने आता है कि हालांकि तेल आयात बिल में बढ़ोत्तरी होगी, लेकिन भारत ने अपनी रणनीति इस तरह बनाई है कि उसे तुरंत और भारी झटका न लगे. देश के पास वैकल्पिक सप्लायर्स हैं, मौजूदा कॉन्ट्रैक्ट्स हैं और अंतरराष्ट्रीय बाजार में भारत की मांग बड़ी है.

    लेकिन इसका यह मतलब नहीं कि भारत पर कोई असर नहीं होगा. अगर वैश्विक स्तर पर कच्चे तेल की कीमतें ऊपर जाती हैं, तो भारत को भी बढ़ी हुई दरों पर ही तेल खरीदना पड़ेगा. यानी तेल की आपूर्ति तो बनी रहेगी, लेकिन बजट पर दबाव बढ़ेगा. इससे सरकार के सब्सिडी खर्च, मंहगाई और व्यापार संतुलन जैसे क्षेत्रों में चुनौतियां बढ़ सकती हैं.

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