नई दिल्लीः 2025 में शंघाई सहयोग संगठन (SCO) की चीन के क़िंगदाओ में हुई शिखर बैठक के बाद यह चर्चा एक बार फिर तेज़ हो गई है कि भारत इस संगठन से अब भावनात्मक रूप से जुड़ा नहीं रह गया है. भले ही औपचारिक रूप से भारत अभी संगठन में बना रहेगा, लेकिन इसके भीतर उसकी भागीदारी धीरे-धीरे सीमित होती दिख रही है. विशेषज्ञों का मानना है कि भारत अब SCO को महज़ एक कूटनीतिक मंच के तौर पर देखेगा और असल ध्यान इंडो-पैसिफिक, क्वाड, I2U2 और द्विपक्षीय संबंधों पर केंद्रित करेगा.
SCO 2025 की बैठक और भारत की आपत्ति
SCO समिट 2025 के अंतिम दिन जारी किए गए संयुक्त घोषणा पत्र पर भारत ने हस्ताक्षर नहीं किए. यह एक बड़ा संकेत था कि भारत इस मंच से असंतुष्ट है. भारत की मुख्य आपत्ति आतंकवाद पर जारी की गई ‘कमज़ोर’ भाषा को लेकर थी. पाकिस्तान आधारित आतंकी संगठनों – जैसे लश्कर-ए-तैयबा और जैश-ए-मोहम्मद – का नाम इसमें नहीं लिया गया. इसके अलावा, हाल ही में कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकी हमले का कोई उल्लेख भी नहीं था, जबकि जफराबाद एक्सप्रेस हमले का ज़िक्र किया गया. भारत ने इस पक्षपाती रवैये पर नाराज़गी जाहिर की.
चीन-पाकिस्तान की धुरी और SCO का झुकाव
अब यह बात लगभग साफ़ हो चुकी है कि SCO के भीतर चीन और पाकिस्तान का गुट प्रभावशाली होता जा रहा है. भारत को महसूस हो रहा है कि उसकी रणनीतिक चिंताओं को लगातार नजरअंदाज़ किया जा रहा है. घोषणा पत्र में "इन्फ्रास्ट्रक्चर और संपर्क सहयोग" जैसी भाषा को शामिल करना चीन के बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) को परोक्ष समर्थन देना है, जिसका भारत लंबे समय से विरोध करता आ रहा है – खासकर CPEC को लेकर, जो पाक अधिकृत कश्मीर से होकर गुजरता है.
भारत की रणनीति भागीदारी लेकिन दूरी
भारत अभी SCO से अलग होने की योजना नहीं बना रहा, लेकिन उसके रुख में स्पष्ट बदलाव देखा जा सकता है. पिछली SCO बैठक (2024) में भी भारत ने कई मुद्दों पर आपत्ति जताई थी, विशेषकर आतंकवाद पर चीन-पाक के उदार रुख को लेकर. भारत अब इस मंच का इस्तेमाल केवल सीमित कूटनीतिक बातचीत तक करना चाहता है और अधिक गंभीर रणनीतिक बातचीत के लिए क्वाड और अन्य वैश्विक मंचों को प्राथमिकता देगा.
ब्रिक्स की स्थिति भी कुछ अलग नहीं
SCO की तरह ब्रिक्स में भी भारत की भूमिका पर पुनर्विचार हो रहा है. चीन की बढ़ती आर्थिक और राजनीतिक पकड़ के कारण भारत की चिंताओं को वहां भी उतनी गंभीरता से नहीं लिया जा रहा. चीन के साथ चल रहे सीमा तनाव और रणनीतिक प्रतिद्वंद्विता ने भारत को इन बहुपक्षीय मंचों के प्रति कम उत्साही बना दिया है.
SCO छोड़ने के संभावित नुकसान
यदि भारत SCO से बाहर होता है, तो कुछ रणनीतिक नुक़सान भी झेलने पड़ सकते हैं:
SCO के लिए भारत का महत्व
भारत के बाहर होने की स्थिति में SCO की अंतरराष्ट्रीय साख को ज़रूर झटका लगेगा. दुनिया की सबसे तेज़ी से बढ़ती अर्थव्यवस्था और एक उभरती वैश्विक शक्ति का इससे अलग होना संगठन की रणनीतिक धार को कमजोर करेगा. रूस और मध्य एशियाई देशों के लिए भारत एक अहम व्यापारिक और ऊर्जा साझेदार है, जिसकी कमी SCO को खलेगी.
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