अमेरिका ने भारत को लेकर एक ट्रैवल एडवाइजरी जारी की, जिसमें अपने नागरिकों को यहां के अपराध, यौन हिंसा और आतंकवाद के चलते सतर्क रहने की चेतावनी दी गई. यह पहली बार नहीं है जब अमेरिका ने भारत को लेकर ऐसा रवैया अपनाया है. लेकिन इस बार सवाल ये उठता है कि क्या अमेरिका को दूसरों को चेतावनी देने से पहले खुद अपने घर की हकीकत नहीं देखनी चाहिए?
अगर बात महिलाओं की सुरक्षा की करें, तो आंकड़े खुद बताते हैं कि अमेरिका इस मोर्चे पर भारत से बेहतर नहीं, बल्कि कहीं ज़्यादा चिंताजनक स्थिति में है.
2022 में 1,39,815 रेप के मामले
साल 2022 में अमेरिका में महिलाओं के खिलाफ बलात्कार और यौन हमलों के लगभग 1,39,815 मामले दर्ज किए गए. यानी हर 1 लाख जनसंख्या पर करीब 40 रेप की दर बनती है. और यह सिर्फ वही मामले हैं जो दर्ज हुए. नेशनल क्राइम विक्टिमाइजेशन सर्वे के अनुसार केवल 21 प्रतिशत मामलों की ही रिपोर्टिंग होती है. इसका मतलब है कि असल आंकड़ा कहीं ज़्यादा बड़ा हो सकता है.
एफबीआई के यूनिफॉर्म क्राइम रिपोर्ट के मुताबिक अमेरिका में 2022 में कुल 6,815 हत्याएं दर्ज की गईं, जिनमें 1,022 महिलाएं थीं. घरेलू हिंसा और इंटिमेट पार्टनर वायलेंस इसमें प्रमुख कारण रहे. CDC के 2021 के डेटा के अनुसार अमेरिका में हर साल 700 से 1,200 महिलाओं की मौत घरेलू हिंसा के कारण होती है. यहां तक कि ऑफिसों में यौन उत्पीड़न के 7,000 से 8,000 मामले सामने आए. लेकिन बड़ी बात यह है कि अमेरिकी कानून में ‘छेड़छाड़’ और ‘यौन उत्पीड़न’ की परिभाषाएं स्पष्ट नहीं हैं. यही कारण है कि वहां के अधिकतर मामले रिपोर्ट तक नहीं होते और न ही उनकी गणना संभव हो पाती है.
भारत के आंकड़े
अब अगर भारत की बात करें, तो नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) के 2022 के आंकड़ों के मुताबिक भारत में 31,516 रेप केस दर्ज किए गए. यानी औसतन हर दिन 86 मामले. इनमें से 96 प्रतिशत मामलों में आरोपी कोई न कोई परिचित ही था. हत्या के कुल 13,497 मामलों में 2,222 केस दहेज हत्या के थे, जबकि बाकी घरेलू हिंसा और अन्य कारणों से जुड़े थे. भारत में छेड़छाड़ को IPC की धारा 354 के तहत स्पष्ट रूप से परिभाषित किया गया है और इसी के तहत 83,344 मामले दर्ज हुए. वहीं IPC की धारा 354A के अंतर्गत यौन उत्पीड़न के 20,945 केस दर्ज हुए.
इन आंकड़ों की तुलना से साफ है कि केवल संख्या की बात करें, तो अमेरिका में बलात्कार के मामले भारत के मुकाबले करीब पांच गुना ज़्यादा हैं. इसके अलावा, छेड़छाड़ और ऑफिस उत्पीड़न जैसे मामलों की रिपोर्टिंग भी वहां बेहद कम है, क्योंकि न तो इसकी परिभाषा वहां स्पष्ट है और न ही सिस्टम में रिपोर्ट करने की सहजता है.
ट्रंप के झूठ का पर्दाफाश
सबसे दिलचस्प बात यह है कि आजकल कई विदेशी महिलाएं, खासकर अमेरिकी कंटेंट क्रिएटर्स, भारत में घूमते हुए अपने अनुभव साझा कर रही हैं. कई ने तो सोशल मीडिया पर खुलकर कहा है कि उन्हें भारत में कहीं भी खतरा महसूस नहीं होता. कुछ महिलाएं तो यहां की जीवनशैली से इतनी प्रभावित हुई हैं कि वे अमेरिका छोड़कर भारत में ही बस गई हैं. वे मानती हैं कि भारत में उन्हें कहीं ज़्यादा सुरक्षित, सहज और सम्मानजनक माहौल मिलता है.
ऐसे में सवाल यह है कि क्या अमेरिका की ये एडवाइजरी वास्तव में तथ्यों पर आधारित है या यह सिर्फ एक राजनीतिक रवैया है, जो बिना अपने आंकड़ों की ओर देखे, दूसरों पर उंगली उठाता है? शायद अमेरिका को अपनी 'दुनिया की पुलिस' वाली मानसिकता से बाहर निकलकर पहले अपने सामाजिक ढांचे और कानून व्यवस्था की खामियों को पहचानना चाहिए.
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