भारत-पाकिस्तान में टू फ्रंट वॉर की तैयारी! रूस ने कर दी गद्दारी, पुतिन ने ऐसा क्यों किया?

    जंग में भारत कितनी मजबूती से दो मोर्चों पर खुद को खड़ा पाएगा—एक तरफ पाकिस्तान और दूसरी ओर उसका रणनीतिक साझेदार चीन.

    Preparations for two front war against India Russia betrayed Putin China
    पुतिन-जिनपिंग | Photo: ANI

    नई दिल्लीः भारत ने ऑपरेशन सिंदूर के जरिए पाकिस्तान के भीतर घुसकर उसकी सैन्य संरचना को हिला कर रख दिया, तब अंतरराष्ट्रीय मंच पर एक और कहानी चुपचाप लिखी जा रही थी—रूस की चुप्पी और चीन की परोक्ष सक्रियता. भारतीय हथियारों ने जरूर पाकिस्तान को घुटनों पर ला दिया, लेकिन इस पूरे घटनाक्रम के दौरान रूस की निष्क्रियता और चीन की ‘छाया समर्थन नीति’ ने नई रणनीतिक आशंकाएं खड़ी कर दी हैं.

    अब सवाल ये उठता है कि भविष्य की जंग में भारत कितनी मजबूती से दो मोर्चों पर खुद को खड़ा पाएगा—एक तरफ पाकिस्तान और दूसरी ओर उसका रणनीतिक साझेदार चीन.

    पर्दे के पीछे से खेली जा रही बड़ी चाल

    चीन ने भले ही ऑपरेशन सिंदूर के दौरान भारत पर सीधा हमला नहीं किया, लेकिन उसके बर्ताव में भारत-विरोधी मंशा साफ झलकती है. रिपोर्ट्स बताती हैं कि चीन ने पाकिस्तान एयरफोर्स को इलेक्ट्रॉनिक वॉरफेयर से लेकर पीएल-15 जैसी मिसाइलों तक तकनीकी सहयोग दिया. इतना ही नहीं, युद्ध से ऐन पहले जे-10सी फाइटर जेट्स भी पाकिस्तान के बेड़े में शामिल हुए, जिन्हें चीन की ओर से ‘गेम चेंजर’ के तौर पर प्रचारित किया गया.

    और अब कहा जा रहा है कि चीन इसी साल अगस्त तक पाकिस्तान को 5वीं पीढ़ी के लड़ाकू विमान J-35A सौंप सकता है. यानी आने वाले समय में पाकिस्तान की सैन्य क्षमता केवल पाकिस्तानी नहीं, ‘चीनी निर्मित’ होगी.

    बदला हुआ समीकरण या रणनीतिक विवशता?

    भारत और रूस के रिश्ते दशकों पुराने हैं. लेकिन ऑपरेशन सिंदूर के दौरान जब दुनिया चीन और पाकिस्तान के साथ हो रही हलचल पर नज़र गड़ाए थी, रूस का रुख बेहद शांत और अनावश्यक रूप से तटस्थ बना रहा. यह वही रूस है जो 1971 की लड़ाई में भारत के साथ खुलकर खड़ा हुआ था, लेकिन आज जब रूस की रणनीतिक निर्भरता चीन पर बढ़ती जा रही है, तो भारत के हित उससे टकराते दिखने लगे हैं. चीन से गहराते रिश्ते और यूक्रेन युद्ध में पश्चिमी दुनिया से अलग-थलग पड़ने के बाद रूस अब भारत के लिए उतना मुखर नहीं रह गया है जितना पहले था.

    ‘दो मोर्चों की जंग’—अब केवल एक आशंका नहीं, बल्कि सच्चाई

    जियो-पॉलिटिकल एक्सपर्ट प्रकाश नंदा की रिपोर्ट के मुताबिक भारत को अब अपने रणनीतिक नजरिए को पूरी तरह से ‘टू फ्रंट वॉर’ की अवधारणा पर केंद्रित करना होगा. यानी ऐसी स्थिति जहां पाकिस्तान सामने से हमला करे और चीन पर्दे के पीछे से या जरूरत पड़ने पर सीधे युद्ध में कूद पड़े.

    इतिहास भी इस डर को जायज ठहराता है—1965, 1971 और कारगिल तक में चीन ने परोक्ष रूप से पाकिस्तान को सपोर्ट किया. आज चीन ने पाकिस्तान को न केवल हथियार दिए हैं, बल्कि सैन्य आधार, ट्रेनिंग और तकनीक तक मुहैया कराई है.

    विदेशी समर्थन की उम्मीद नहीं

    ऑपरेशन सिंदूर ने यह साफ कर दिया है कि भारत को भविष्य की लड़ाइयों के लिए किसी भी विदेशी समर्थन की उम्मीद नहीं करनी चाहिए. चाहे वह अमेरिका हो या रूस, इन महाशक्तियों की प्राथमिकताएं अब बदल चुकी हैं. भारत को अपनी सैन्य क्षमताओं के साथ-साथ कूटनीतिक, साइबर और स्पेस क्षमताओं को भी उसी रफ्तार से अपग्रेड करना होगा. Made in India हथियारों, जैसे ब्रह्मोस, तेजस, आकाश और पृथ्वी जैसी स्वदेशी प्रणालियों पर अब ज्यादा भरोसा करना होगा—क्योंकि अगली लड़ाई, पूरी तरह ‘अपने दम पर’ लड़ी जाएगी.

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