Rare Earth Minerals: राजनीति में तोहफे सिर्फ शिष्टाचार नहीं होते, कभी-कभी वे वैश्विक समीकरणों की दिशा बदलने वाले ‘सिग्नल’ भी बन जाते हैं. हाल ही में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और पाकिस्तानी सेना प्रमुख जनरल आसिम मुनीर की मुलाकात में एक ऐसा ही असामान्य क्षण देखने को मिला, जब मुनीर ने ट्रंप को एक साधारण दिखने वाले लकड़ी के बॉक्स में बंद 'खजाना' भेंट किया.
बॉक्स खुला, और उसमें से निकले दो खास पत्थर: बास्टेनजाइट (Bastnäsite) और मोनाजाइट (Monazite). देखने में ये मामूली लग सकते हैं, लेकिन असल में इनमें छिपी हैं वे धातुएं जो 21वीं सदी की टेक्नोलॉजी की रीढ़ मानी जाती हैं, जिन्हें कहा जाता है, "Rare Earth Elements (REEs)".
क्या हैं ये रेयर अर्थ मिनरल्स, और क्यों हैं इतने अहम?
बास्टेनजाइट और मोनाजाइट जैसे खनिजों में मौजूद होते हैं, सेरियम (Cerium), लैंथेनम (Lanthanum), नियोडिमियम (Neodymium) और अन्य दुर्लभ धातुएं, जिनका इस्तेमाल इलेक्ट्रिक और हाइब्रिड वाहनों में, मोबाइल और स्मार्ट डिवाइस के चुंबकों में, मिसाइल और रडार तकनीक और सैटेलाइट और रिन्यूएबल एनर्जी सिस्टम में होता है. सीधे शब्दों में कहें, तो यह तकनीकी खजाना है, जिसके बिना आज का डिजिटल, डिफेंस और ग्रीन एनर्जी इकोसिस्टम अधूरा है.
खनिज के जरिए दोस्ती का नया 'मैसेज'
इस खास तोहफे को सिर्फ ‘उपहार’ मानना भूल होगी. यह पाकिस्तान का एक कूटनीतिक संकेत (Diplomatic Signal) है, "हमारे पास वो है, जिसकी तुम्हें जरूरत है." विश्लेषकों के मुताबिक, पाकिस्तान की इस नई 'मिनरल डिप्लोमेसी' के पीछे कई रणनीतिक मकसद हैं.
चीन पर अमेरिकी निर्भरता को चुनौती देना
चीन दुनिया के रेयर अर्थ मिनरल्स का सबसे बड़ा निर्यातक है. लेकिन अमेरिका को आशंका है कि भविष्य में चीन आपूर्ति रोक सकता है. ऐसे में अमेरिका विकल्पों की तलाश में है, और पाकिस्तान एक संभावित खिलाड़ी बनकर उभर रहा है.
निवेश को आकर्षित करना
हाल ही में एक अमेरिकी कंपनी ने पाकिस्तान में 500 मिलियन डॉलर के निवेश की योजना बनाई है, जो खनन और रिफाइनिंग से जुड़ी है.
सुरक्षा गारंटी के बदले संसाधन तक पहुंच
अमेरिका ने बलूचिस्तान में सक्रिय बलोच लिबरेशन आर्मी को आतंकी संगठन घोषित कर दिया है, जिससे खनन परियोजनाओं को सैन्य सुरक्षा मिल सके.
पाकिस्तान की भू-राजनीतिक ताकत बनने की राह
बलूचिस्तान, सिंध, गिलगित-बाल्टिस्तान और खैबर पख्तूनख्वा जैसे इलाकों में इन खनिजों की संभावना बताई जाती है. कुछ रिपोर्ट्स का दावा है कि पाकिस्तान की जमीन के नीचे छिपे खनिजों की कुल अनुमानित कीमत 6 ट्रिलियन डॉलर (करीब 500 लाख करोड़ रुपये) से भी ज्यादा हो सकती है. यदि इन संसाधनों का वैज्ञानिक, पारदर्शी और रणनीतिक दोहन किया जाए, तो पाकिस्तान मध्य एशिया का अगला टेक्नो-इकोनॉमिक हब बन सकता है.
भारत को क्यों होना चाहिए सतर्क?
जहां पाकिस्तान अमेरिका को अपने संसाधनों का 'साझेदार' बना रहा है, वहीं भारत जैसे पुराने सहयोगियों को पार्श्वभूमि में डाला जा रहा है. यह एक संकेत है कि भू-राजनीतिक दोस्ती अब सिर्फ रक्षा और आतंकवाद पर आधारित नहीं रह गई है, बल्कि आर्थिक संसाधनों की साझेदारी उसका नया चेहरा बन रही है.
भारत को न केवल इन घटनाओं पर नजर रखनी चाहिए, बल्कि अपने खनिज संसाधनों के रणनीतिक उपयोग और निर्यात नीति पर भी पुनर्विचार करना होगा.
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