भारत और पाकिस्तान के बीच लंबे समय से चले आ रहे तनाव ने एक बार फिर सिंधु नदी के बहाव को राजनीतिक मोड़ दे दिया है. जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकी हमले के बाद भारत ने 1960 की सिंधु जल संधि को निलंबित करने की घोषणा की, जिससे पाकिस्तान को मिलने वाले जल संसाधनों पर भारत ने नियंत्रण की प्रक्रिया शुरू कर दी है. इस कदम ने पाकिस्तान में खलबली मचा दी है, क्योंकि उसकी सिंचाई, पेयजल और ऊर्जा का बड़ा हिस्सा इन्हीं नदियों पर निर्भर है.
इसी उथल-पुथल के माहौल में चीन ने पाकिस्तान के खैबर पख्तूनख्वा प्रांत में स्थित मोहमंद डैम के निर्माण कार्य को अचानक तेज कर दिया है. यह वही इलाका है जहां की स्वात नदी, जो भारत से निकलकर पाकिस्तान में सिंधु से मिलती है, एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है. सवाल यह उठता है कि क्या यह सिर्फ एक इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट है या फिर चीन इस डैम के जरिए एक नई ‘जल कूटनीति’ को अंजाम दे रहा है?
क्या है मोहमंद डैम?
भारत की प्रतिक्रिया: सिंधु जल संधि पर पुनर्विचार
22 अप्रैल के आतंकी हमले के बाद भारत ने सिंधु जल संधि को रद्द करने की प्रक्रिया शुरू कर दी. इस संधि के अंतर्गत, भारत को पूर्वी नदियों (रावी, सतलुज, ब्यास) का और पाकिस्तान को पश्चिमी नदियों (सिंधु, झेलम, चिनाब) का जल उपयोग का अधिकार मिला था. भारत ने अब इस पर नियंत्रण बढ़ाने की बात कही है, जिससे पाकिस्तान की खाद्य सुरक्षा और ऊर्जा उत्पादन पर बड़ा असर पड़ सकता है.
चीन की ‘जल रणनीति’
चीन का मोहमंद डैम में निवेश सिर्फ आर्थिक पहलू नहीं दर्शाता, यह एक रणनीतिक दांव भी है. यह प्रोजेक्ट चीन-पाक आर्थिक गलियारा (CPEC) का विस्तार है और चीन के बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) के अधीन आता है. इससे चीन को अफगानिस्तान और मध्य एशिया तक पहुंच बनाने में मदद मिलती है — और भारत के उत्तरी सीमांत क्षेत्र के बेहद करीब अपनी मौजूदगी दर्ज कराने का अवसर भी.
दीगर प्रोजेक्ट्स: दीयामिर-भाषा डैम में भी चीन का वर्चस्व
सिर्फ मोहमंद ही नहीं, चीन ने दीयामिर-भाषा डैम में भी भारी निवेश किया है, जो पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर (PoK) में स्थित है. भारत पहले ही इन परियोजनाओं पर आपत्ति दर्ज करा चुका है और इसे संप्रभुता का उल्लंघन मानता है. इस डैम में चीन ने 70% तक की हिस्सेदारी ली है, और यह पाकिस्तान की ऊर्जा जरूरतों के लिहाज से बेहद अहम माना जा रहा है.
स्थानीय असंतोष और सुरक्षा चुनौतियां
इन डैम परियोजनाओं को स्थानीय विरोध और आतंकी खतरे का सामना भी करना पड़ रहा है. दीयामिर-भाषा डैम के खिलाफ लोग अपने विस्थापन और बिजली की मुफ्त आपूर्ति की मांग को लेकर धरने पर बैठे हैं. वहीं, बलूच विद्रोही गुटों द्वारा चीनी इंजीनियरों पर हमले भी हो चुके हैं. इसके बावजूद चीन पीछे नहीं हटा है — क्योंकि उसका मकसद केवल निवेश नहीं, भारत के खिलाफ एक रणनीतिक मोर्चा तैयार करना है.
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