परमाणु पनडुब्बियों की तैनाती से अमेरिका-रूस में बढ़ा तनाव, शुरू हुई जुबानी जंग, क्या होगा कोल्ड वॉर?

    दुनिया की दो सबसे बड़ी परमाणु शक्तियां अमेरिका और रूस एक बार फिर आमने-सामने खड़ी होती नजर आ रही हैं. यूक्रेन युद्ध, नाटो के विस्तार और रणनीतिक सैन्य तैनातियों को लेकर दोनों देशों के बीच तनातनी ने अब एक नई दिशा पकड़ ली है.

    nuclear submarines increased tension between America and Russia
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    मॉस्को/वॉशिंगटन: दुनिया की दो सबसे बड़ी परमाणु शक्तियां अमेरिका और रूस एक बार फिर आमने-सामने खड़ी होती नजर आ रही हैं. यूक्रेन युद्ध, नाटो के विस्तार और रणनीतिक सैन्य तैनातियों को लेकर दोनों देशों के बीच तनातनी ने अब एक नई दिशा पकड़ ली है. हाल ही में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा दो परमाणु-सशस्त्र पनडुब्बियों को तैनात करने के आदेश ने न केवल अंतरराष्ट्रीय चिंता को बढ़ा दिया है, बल्कि विशेषज्ञों को इस बात पर सोचने पर मजबूर कर दिया है कि क्या दुनिया एक और बड़े संघर्ष की ओर बढ़ रही है?

    रूस और अमेरिका की इस खतरनाक रणनीतिक कशमकश के बीच एक बार फिर ‘तीसरे विश्व युद्ध’ की आशंका जताई जा रही है, भले ही इसे अभी सिर्फ अटकल ही क्यों न माना जाए.

    तनाव की पृष्ठभूमि: यूक्रेन बना विवाद का केंद्र

    अमेरिका और रूस के बीच मौजूदा तनाव की जड़ें यूक्रेन संकट में गहराई से जुड़ी हुई हैं. पश्चिमी देश लगातार यूक्रेन को नाटो में शामिल करने की कोशिश कर रहे हैं, जिसे रूस अपने लिए सीधा खतरा मानता है. इससे पहले ही दोनों देशों के बीच राजनीतिक और कूटनीतिक संबंधों में खटास थी, लेकिन यूक्रेन युद्ध ने हालात को और जटिल बना दिया.

    रूस की सीमाओं के नजदीक नाटो की गतिविधियों में तेजी और अमेरिका के सैन्य समर्थन ने रूस को आक्रामक नीति अपनाने के लिए प्रेरित किया. दूसरी ओर, अमेरिका यह दावा करता रहा है कि वह केवल यूक्रेन की संप्रभुता और सुरक्षा सुनिश्चित करना चाहता है.

    परमाणु पनडुब्बियों की तैनाती: ट्रंप की घोषणा से बढ़ी चिंता

    इस तनावपूर्ण माहौल के बीच डोनाल्ड ट्रंप की ताजा घोषणा ने माहौल को और संवेदनशील बना दिया है. उन्होंने शुक्रवार को यह आदेश दिया कि अमेरिका की दो परमाणु-सक्षम ओहायो श्रेणी की पनडुब्बियां रणनीतिक रूप से तैनात की जाएंगी.

    हालांकि उनके दावे में यह स्पष्ट नहीं किया गया कि ये पनडुब्बियां किस क्षेत्र में तैनात की जाएंगी, लेकिन इसका संकेत साफ था यह कदम रूस को जवाब देने के लिए उठाया गया है.

    इसका तुरंत जवाब रूस की संसद ड्यूमा के एक सदस्य की प्रतिक्रिया के रूप में आया. उन्होंने कहा कि अमेरिकी पनडुब्बियों की मौजूदगी से निपटने के लिए रूसी जलसेना पूरी तरह सक्षम और तैयार है. उनकी यह प्रतिक्रिया केवल सैन्य ताकत का इशारा नहीं थी, बल्कि एक तरह का रणनीतिक संदेश भी था कि रूस किसी भी परिस्थिति का मुकाबला कर सकता है.

    अमेरिका और रूस के पास कितनी है परमाणु पनडुब्बी?

    जब परमाणु पनडुब्बियों की बात आती है, तो अमेरिका और रूस दोनों ही असाधारण क्षमताओं से लैस हैं.

    अमेरिका:

    • अमेरिका के पास कुल 14 ओहायो श्रेणी की पनडुब्बियां हैं.
    • इनमें से हर एक 24 ट्राइडेंट II D5 बैलिस्टिक मिसाइलों से लैस है.
    • एक मिसाइल में कई थर्मोन्यूक्लियर वारहेड होते हैं, जो हजारों मील दूर तक मार करने में सक्षम हैं.
    • आमतौर पर इनमें से 8-10 पनडुब्बियां सक्रिय तैनाती में रहती हैं.

    रूस:

    • रूस के पास लगभग 54 परमाणु ऊर्जा चालित पनडुब्बियां हैं, जिनमें सामरिक और हमलावर दोनों तरह की पनडुब्बियां शामिल हैं.
    • इसमें 14 बैलिस्टिक मिसाइल पनडुब्बियां शामिल हैं, जिनमें कुछ पुरानी डेल्टा III/IV श्रेणी की नौकाएं भी शामिल हैं.
    • साथ ही 16 हमलावर श्रेणी की परमाणु पनडुब्बियां भी परिचालन में हैं, जो शत्रु पनडुब्बियों और युद्धपोतों को निशाना बनाने के लिए डिज़ाइन की गई हैं.

    यह आंकड़े इस बात को दर्शाते हैं कि दोनों देशों के पास युद्ध को समुद्र के नीचे से लड़ने की भी असीम ताकत मौजूद है.

    कूटनीति और बयानबाजी: संतुलन की ज़रूरत

    जहां एक ओर अमेरिका की ओर से सैन्य दबाव बनाया जा रहा है, वहीं दूसरी ओर कूटनीतिक प्रयास भी जारी हैं. अमेरिकी विदेश मंत्री मार्को रुबियो ने यह स्पष्ट रूप से कहा है कि अमेरिका और रूस के बीच प्रत्यक्ष सैन्य टकराव से बचा जाना चाहिए.

    रूसी विदेश मंत्री सेर्गेई लावरोव ने भी कहा है कि दोनों देशों को बातचीत का रास्ता अपनाना चाहिए और किसी भी तरह की सैन्य उकसावे की कार्रवाई से बचना चाहिए.

    ट्रंप ने एक और रणनीतिक चाल के तहत यह कहा है कि विशेष दूत स्टीव विटकॉफ मॉस्को जाएंगे ताकि रूस को यूक्रेन के साथ युद्धविराम पर सहमत किया जा सके. हालांकि इसी के साथ उन्होंने यह चेतावनी भी दी है कि यदि रूस ने लचीलापन नहीं दिखाया, तो अमेरिका कड़े आर्थिक प्रतिबंध लगाएगा.

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