नई दिल्ली: हाल ही में ईरान के फोर्डो परमाणु संयंत्र पर अमेरिका द्वारा GBU-57A "मैसिव ऑर्डनेंस पेनिट्रेटर" बम के उपयोग के बाद वैश्विक सुरक्षा परिदृश्य में हलचल मची है. इस घटनाक्रम ने भारत सहित कई देशों को अपनी रक्षा तैयारियों की समीक्षा के लिए प्रेरित किया है. भारत अब अपनी बंकर-भेदी क्षमताओं को अगले स्तर पर ले जाने की दिशा में गंभीर प्रयास कर रहा है.
भारत के रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (DRDO) अग्नि-5 अंतरमहाद्वीपीय बैलिस्टिक मिसाइल का एक संशोधित संस्करण तैयार कर रहा है, जो दुश्मन के भूमिगत सैन्य ठिकानों को प्रभावी रूप से निशाना बना सकेगा. यह नई प्रणाली पारंपरिक (नॉन-न्यूक्लियर) हथियारों से लैस होगी और अनुमानतः 7500 किलोग्राम तक का बंकर-भेदी वारहेड ले जाने में सक्षम होगी.
भारत तैयार कर रहा है गहराई में हमला की प्रणाली
अमेरिका द्वारा हालिया कार्रवाई में 14 GBU-57 बमों का उपयोग कर यह दिखाया गया कि किस प्रकार अत्यधिक परिशुद्धता और गहराई में वार करने वाले हथियार सामरिक रूप से महत्वपूर्ण हैं. भारत इस दिशा में मिसाइल-आधारित बंकर-भेदी हथियार प्रणाली पर कार्य कर रहा है, जो न केवल सस्ती होगी बल्कि अधिक लचीलापन भी प्रदान करेगी.
भारत का उद्देश्य ऐसे हथियार विकसित करना है जो दुश्मन के कंक्रीट संरचनाओं, मिसाइल साइलो और भूमिगत कमांड-सेंटरों को भेदने में सक्षम हों. यह मिसाइलें हमले से पहले लगभग 80 से 100 मीटर तक ज़मीन में घुस सकती हैं, जिससे इनका प्रभाव बहुत अधिक हो जाता है.
अग्नि-5 का नया स्वरूप: परिवर्तन की दिशा में कदम
DRDO द्वारा अग्नि-5 के दो विशेष संस्करण विकसित किए जा रहे हैं:
इन दोनों संस्करणों की रेंज लगभग 2500 किलोमीटर होगी—हालांकि यह मूल अग्नि-5 की तुलना में कम है, लेकिन हथियार ले जाने की क्षमता (लगभग 8 टन) और प्रभावशीलता कहीं अधिक है. इस पहल से भारत की पारंपरिक बंकर-भेदी क्षमताएं दुनिया की अग्रणी शक्तियों के समकक्ष खड़ी हो सकेंगी.
हाइपरसोनिक गति और स्वदेशी तकनीक पर जोर
नई मिसाइल प्रणालियां Mach 8 से लेकर Mach 20 तक की रफ्तार से चल सकेंगी, जिससे इन्हें हाइपरसोनिक श्रेणी में रखा जा सकता है. उच्च गति, गहराई तक मार करने की क्षमता और भारी विस्फोटक सामग्री का संयोजन इन्हें रणनीतिक दृष्टिकोण से अत्यंत प्रभावशाली बनाता है.
भारत का इन प्रणालियों को स्वदेशी रूप से विकसित करने पर ज़ोर आत्मनिर्भरता (Atmanirbhar Bharat) की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है. इससे न केवल देश की सामरिक क्षमताएं बढ़ेंगी, बल्कि भविष्य के युद्धों की तकनीकी चुनौतियों से निपटने में भी सहायता मिलेगी.
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