Operation Midnight Hammer: अमेरिका द्वारा शनिवार देर रात फ्लाइट ऑपरेशन मिडनाइट हैमर के तहत ईरान के प्रमुख परमाणु प्रतिष्ठानों फोर्डो, नतांज और इस्फहान पर हमला किया गया. इस हमले को लेकर सवाल उठ रहे हैं क्या इन ठिकानों पर बमबारी ने ईरान की परमाणु क्षमता को नष्ट कर दिया? लेकिन ईरान की प्रतिक्रिया बरकरार है, उसने स्वीकार किया कि नुकसान हुआ है, पर अपने परमाणु कार्यक्रम को जारी रखने के संकल्प पर कोई असर नहीं पड़ेगा.
ईरान के परमाणु ऊर्जा संगठन के प्रवक्ता बेहरोज कमालवंदी का हवाला देते हुए मीडिया रिपोर्टों ने बताया कि परमाणु उद्योग की जड़ें ईरान में हैं और इसे नष्ट नहीं किया जा सकता. मीडिया रिपोर्टों ने कमालवंदी के हवाले से कहा, बेशक, हमें नुकसान हुआ है, लेकिन यह पहली बार नहीं है कि उद्योग को नुकसान हुआ है.
ऑपरेशन मिडनाइट हैमर: देर रात की रणनीति
पेंटागन द्वारा घोषित ऑपरेशन का नाम ‘मिडनाइट हैमर’ रखा गया, और यह ट्रंप की इज़राइल के समर्थन वाली नीति का सीधा परिणाम बताया जा रहा है. ऑपरेशन में B-2 स्टील्थ बॉम्बर्स द्वारा मैसिव ऑर्डनेंस पेनेट्रेटर (MOP) बमों का इस्तेमाल रहा, जबकि टॉमहॉक क्रूज़ मिसाइलों ने इन्फ्रास्ट्रक्चर को निशाना बनाया. अमेरिकी रक्षा सचिव पीट हेगसेथ ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में इस ऑपरेशन को ‘अविश्वसनीय तथा जबरदस्त सफलता’ बताया. जनरल डैन कैन ने इसे ‘25 मिनट में संपन्न सटीक कार्रवाई’ करार दिया. दोनों ने मिलकर दावा किया कि ईरान की परमाणु क्षमता को महत्वपूर्ण क्षति पहुंची है और उसका कार्यक्रम गंभीर रूप से कमजोर हुआ है.
क्या इस हमले से ईरान की क्षति हुई?
विश्लेषकों का मानना है कि वास्तु-राम पर हमला परमाणु विज्ञान और भौतिक संसाधनों की तुलना में असरदार हो सकता है, लेकिन ज्ञान, वैज्ञानिक दल और संरचना को पूरी तरह मिटाना मुश्किल है. हैगसेथ का दावा महत्वाकांक्षी दिखता है. लेकिन इसके दीर्घकालिक प्रभाव तभी दिखाई देंगे जब ईरान इसे स्थिरता से नष्ट करने की दिशा में आगे बढ़ेगा या पुनः बिजली उगाएगा.
तनाव, महंगाई और आर्थिक उठापठक
ऑपरेशन के बाद मध्य-पूर्व तनाव गहराता दिख रहा है. तेल कारोबारी मार्ग विशेषकर होरमुज जलडमरूमध्य पर खतरा बढ़ा है. इसके परिणामस्वरूप कच्चे तेल की कीमतों में उछाल आया है और अमेरिका-कई खाड़ी देशों के बीच रणनीतिक गतिनिरोध का दौर संभव है. इस संघर्ष का प्रभाव वैश्विक ऊर्जा संकट, मुद्रा बाजार और निवेश जोखिम पर भी जारी रहेगा. विश्लेषकों का कहना है कि अगर यह संघर्ष लंबित समय तक चला, तो ब्रेंट क्रूड के दाम 100–120 डॉलर प्रति बैरल तक भी पहुंच सकते हैं.