अभी कुछ दिन पहले, भारत के विदेश मंत्री एस. जयशंकर चीन की यात्रा पर थे. बहाना था शंघाई सहयोग संगठन (SCO) की बैठक, लेकिन असली चर्चा इस बात पर थी कि भारत अब अमेरिका से थोड़ा फासला बना रहा है या नहीं. चीन ने रूस-भारत-चीन यानी RIC मंच को दोबारा जिंदा करने का प्रस्ताव रखा, और भारत ने इसे सीधे नकारा नहीं. बस इतना कहा कि 'देखते हैं, बातचीत से तय होगा.' लेकिन इतना कहना ही अमेरिका के लिए काफी था बेचैन होने के लिए.
RIC: रूस-चीन की वापसी की कोशिश, भारत का चुपचाप जवाब
RIC कोई नया संगठन नहीं है. 90 के दशक में रूस के पूर्व प्रधानमंत्री येवगेनी प्रिमाकोव की पहल पर ये बना था. मकसद था—अमेरिका की एकतरफा दबदबे वाली राजनीति को संतुलित करना. कुछ साल ठीक-ठाक चला, फिर कोविड और गलवान की झड़पों के बाद सब ठंडा पड़ गया. अब चीन और रूस इसको दोबारा एक्टिव करना चाहते हैं. सवाल ये है—क्या भारत उनके साथ आएगा?
जयशंकर ने साफ कहा कि RIC की मीटिंग अभी तय नहीं है. सब कुछ 'तीनों देशों की सहमति और सुविधा' पर निर्भर है. लेकिन अमेरिकी थिंक टैंकर्स को इतना भी बर्दाश्त नहीं. एक वरिष्ठ अमेरिकी रणनीतिकार डेरेक ग्रॉसमैन ने कहा कि ये भारत और अमेरिका के रिश्तों में तनाव लाने वाला कदम हो सकता है.
अमेरिका की बेचैनी: भारत कब तक 'तटस्थ' रहेगा?
अमेरिका की परेशानी ये है कि वो भारत को अपने 'पाले' में देखना चाहता है. लेकिन भारत की विदेश नीति आज भी 'गुटनिरपेक्ष' नहीं, बल्कि 'मल्टी-एलाइनमेंट' पर चलती है. यानी भारत सभी के साथ रिश्ते बनाए रखना चाहता है—अमेरिका के साथ भी, रूस के साथ भी, और चीन से दूरी बनाए रखते हुए भी बातचीत चलती रहे.
रूस-यूक्रेन युद्ध के समय भारत ने अमेरिका के भारी दबाव के बावजूद रूस से रिश्ते नहीं तोड़े. कच्चा तेल आज भी रूस से ही आ रहा है. अमेरिका को ये अखरता है, लेकिन भारत अपनी ज़रूरतों के हिसाब से चलता है, किसी के कहने से नहीं.
QUAD vs RIC: भारत किस तरफ जाएगा?
एक तरफ भारत QUAD का सदस्य है—जिसे अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया के साथ मिलकर चीन को काउंटर करने के लिए बनाया गया है. दूसरी तरफ, अगर भारत RIC में फिर से एक्टिव होता है, तो वो अमेरिका के लिए सीधे एक झटका होगा. ये उसी की हैसियत को चुनौती देने जैसा लगेगा.
डोनाल्ड ट्रंप पहले ही BRICS को लेकर भारत पर तंज कस चुके हैं. उन्होंने भारत पर टैरिफ बढ़ाने की धमकी दी थी. ऐसे में अगर भारत RIC में खुलकर शामिल होता है, तो आने वाले वक्त में अमेरिका की भाषा और कड़ी हो सकती है.
तो क्या भारत अमेरिका को छोड़ देगा?
ऐसा नहीं लगता. भारत का फोकस है 'संतुलन'. चीन की हरकतों पर भारत की नजर बनी रहती है. रूस से रिश्ते भारत के सामरिक हितों के लिए जरूरी हैं. और अमेरिका से तकनीक, व्यापार और रणनीतिक गठबंधन की अहमियत भी बरकरार है. RIC अगर दोबारा शुरू होता है, तो भारत उसमें उतनी ही मजबूती से जाएगा, जितना उसका फायदा उसे दिखेगा. न ज़्यादा, न कम. भारत किसी ब्लॉक का पिछलग्गू नहीं बनने वाला. वो अब खुद एक 'पोल' बन चुका है.
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