अब मिसाइलें भी कांपेंगी, भारत का नया डिफेंस सिस्टम दुश्मन की रफ्तार को भी देगा मात

    अमेरिका, रूस, चीन, इजराइल – सब हाई-स्पीड, हाई-टेक डिफेंस टेक्नोलॉजी में झोंक चुके हैं. और भारत? अब वो भी पुराने सिस्टम से आगे बढ़ चुका है.

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    प्रतीकात्मक तस्वीर | Photo: Freepik

    दुनिया जिस दौर से गुजर रही है, उसमें सिर्फ हमला करना काफी नहीं, बचाव की ताकत भी उतनी ही जरूरी हो गई है. हर बड़ी ताकत अब दो चीज़ें सुनिश्चित कर रही है – हम कैसे बचेंगे, और कैसे पलटकर मारेंगे. अमेरिका, रूस, चीन, इजराइल – सब हाई-स्पीड, हाई-टेक डिफेंस टेक्नोलॉजी में झोंक चुके हैं. और भारत? अब वो भी पुराने सिस्टम से आगे बढ़ चुका है. सिर्फ S-400 पर निर्भर रहने वाला भारत अब ऐसे रडार और मिसाइल सिस्टम बना रहा है जो दुश्मन की हाइपरसोनिक मिसाइल को भी हवा में उड़ा सकते हैं.

    हाइपरसोनिक खतरे को हवा में उड़ाने की तैयारी

    डिफेंस रिसर्च एंड डेवलपमेंट ऑर्गनाइज़ेशन यानी DRDO की एक यूनिट – इलेक्ट्रॉनिक्स एंड रडार डेवलपमेंट एस्टेब्लिशमेंट (LRDE) – इस समय एक ऐसा रडार सिस्टम बना रही है, जो 6000 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से उड़ती दुश्मन की मिसाइल को पहले पहचान लेगा, फिर उसे ट्रैक करेगा और आखिरकार हवा में ही तबाह कर देगा.

    यह सिस्टम दरअसल सिर्फ एक तकनीक नहीं, एक संदेश है – कि भारत अब सिर्फ रिएक्ट नहीं करेगा, वो प्री-एम्प्ट करेगा.

    स्वदेशी रडार टेक्नोलॉजी का गेमचेंजर: स्वॉर्डफिश LRTR

    जिस टेक्नोलॉजी पर भारत काम कर रहा है, उसका नाम है – स्वॉर्डफिश लॉन्ग रेंज ट्रैकिंग रडार. यह एक्टिव इलेक्ट्रॉनिकली स्कैन्ड ऐरे (AESA) तकनीक से लैस है, और बैलिस्टिक मिसाइल रक्षा (BMD) कार्यक्रम का हिस्सा है. खास बात ये है कि ये सिस्टम इजराइल के ग्रीन पाइन रडार से प्रेरित है, लेकिन इसका दायरा और पावर उससे कहीं आगे जाने की क्षमता रखता है.

    छोटे टारगेट को लंबी दूरी से पहचानना, उसका मूवमेंट ट्रैक करना और फिर इंटरसेप्ट कर गिरा देना – यही इसकी असली ताकत है.

    रूस, अमेरिका, इजराइल की तुलना में कहां है भारत?

    देखिए, दुनिया के टॉप एयर डिफेंस सिस्टम में रूस का S-500 सबसे ऊपर माना जाता है. वो सिर्फ मिसाइल ही नहीं, स्पेस से होने वाले हमलों को भी नाकाम कर सकता है. फिर है अमेरिका का THAAD और इजराइल का आयरन डोम. लेकिन ये दोनों सिर्फ सुपरसोनिक मिसाइल तक ही सीमित हैं. हाइपरसोनिक नहीं.

    अब भारत का नया रडार सिस्टम उन्हें पीछे छोड़ने की तैयारी में है – क्योंकि ये हाइपरसोनिक थ्रेट को भी पढ़ सकता है और इंटरसेप्ट कर सकता है.

    भारत को क्यों पड़ी इसकी जरूरत?

    साफ है – पाकिस्तान और चीन मिलकर जिस तरह से भारत की सीमाओं पर नई-नई चुनौतियां खड़ी कर रहे हैं, वो सिर्फ LOC या LAC की बात नहीं रह गई है. ऑपरेशन सिंदूर के दौरान जो खुलासा हुआ, कि चीन पाकिस्तान को भारतीय मिलिट्री मूवमेंट की लाइव जानकारी दे रहा था, उसने भारत की सुरक्षा एजेंसियों को अलर्ट कर दिया.

    अब जरूरी हो गया है कि भारत के पास ऐसा सिस्टम हो, जो न सिर्फ दुश्मन की हरकतों को पहले ही पकड़ ले, बल्कि उन्हें हवा में ही रोक सके.

    DRDO का मिशन: आकाश से भी ऊंचा बचाव कवच

    DRDO ने ऑपरेशन सिंदूर में आकाश डिफेंस सिस्टम की ताकत पहले ही दिखा दी थी. लेकिन अब लड़ाई अगले स्तर पर जा चुकी है. हाइपरसोनिक मिसाइल, स्पेस से लॉन्च होने वाले हथियार, और हाई-स्पीड ड्रोन – ये सब मिलकर भारत की एयर डिफेंस स्ट्रैटेजी को पूरी तरह बदलने पर मजबूर कर रहे हैं. और इसी बदलाव की अगली कड़ी है – नया रडार सिस्टम.

    ब्रह्मोस का अपग्रेड और नई जेनरेशन के हथियार

    ब्रह्मोस को और घातक बनाया जा रहा है. उसकी रेंज और पेलोड दोनों को बढ़ाया जा रहा है. इसके अलावा भारत नई जनरेशन की फाइटर जेट्स और अटैक मिसाइल यूनिट्स भी तैयार कर रहा है. यानी सिर्फ डिफेंस नहीं, ऑफेंस में भी अपग्रेड चल रहा है.

    अब रक्षा सिर्फ तकनीक नहीं, पॉलिटिकल और स्ट्रैटेजिक मेसेज भी है

    जब भारत ऐसा डिफेंस सिस्टम बनाता है जो रूस, अमेरिका या इजराइल के मुकाबले खड़ा हो सके, तो ये सिर्फ एक टेक्नोलॉजिकल कामयाबी नहीं होती. ये दुनिया को दिया गया एक मेसेज होता है – कि भारत अब सिर्फ रिएक्शन नहीं देगा, भारत अब तैयारी के साथ खेलेगा.

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