नई दिल्ली: भारत ने रूस से तेल और ऊर्जा उत्पादों के आयात को लेकर जिस तरह का संतुलित और व्यवहारिक रुख अपनाया है, वह वैश्विक राजनीति के मौजूदा हालात को देखते हुए पूरी तरह तार्किक है. हालांकि, अमेरिका और यूरोपीय संघ द्वारा भारत की आलोचना का जो सिलसिला पिछले कुछ समय से चल रहा है, उस पर अब भारत ने स्पष्ट शब्दों में जवाब दिया है, "दूसरों को उपदेश देने से पहले खुद की नीति पर भी एक नजर डालिए."
विदेश मंत्रालय ने इस विषय पर बिना किसी लपेट के साफ कर दिया है कि भारत की ऊर्जा नीति उसकी जरूरतों और राष्ट्रीय हितों पर आधारित है, और कोई भी बाहरी दबाव उसे इससे डिगा नहीं सकता. खास बात यह है कि जिन देशों ने भारत के रूस से तेल खरीदने पर सवाल उठाए हैं, वे खुद अब भी रूसी बाजार से बड़े स्तर पर व्यापार कर रहे हैं.
तेल खरीद कोई राजनीतिक स्टैंड नहीं
विदेश मंत्रालय के अनुसार, भारत ने रूस से तेल आयात का जो निर्णय लिया है, वह राजनीतिक एजेंडे से नहीं बल्कि व्यावहारिकता और जरूरत से प्रेरित है. 2022 में जब रूस-यूक्रेन युद्ध के चलते वैश्विक ऊर्जा आपूर्ति संकट गहराया, तब भारत ने अपने उपभोक्ताओं के लिए सस्ती और भरोसेमंद ऊर्जा सुनिश्चित करने को सर्वोच्च प्राथमिकता दी.
Statement by Official Spokesperson⬇️
— Randhir Jaiswal (@MEAIndia) August 4, 2025
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यह फैसला न केवल घरेलू महंगाई को नियंत्रित करने में सहायक रहा, बल्कि भारत की औद्योगिक और आर्थिक वृद्धि को भी स्थिर बनाए रखने में मददगार साबित हुआ. आज जब देश तेजी से विकास की दिशा में बढ़ रहा है, तब ऊर्जा की स्थिरता और सुलभता को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता.
आलोचना वही देश कर रहे, जो खुद रूस से कर रहे व्यापार
भारत के विदेश मंत्रालय का सबसे तीखा आरोप अमेरिका और यूरोपीय देशों की ‘दोहरी नीति’ को लेकर है. विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने इस पर खुलकर कहा, "जो देश हमें रूस से तेल खरीदने पर कटघरे में खड़ा करते हैं, वे खुद रूस के साथ बड़े पैमाने पर व्यापार कर रहे हैं."
2024 के आंकड़े बताते हैं कि यूरोपीय संघ और रूस के बीच द्विपक्षीय वस्तु व्यापार 67.5 अरब यूरो तक पहुंच चुका है, जो कि भारत-रूस व्यापार की तुलना में कहीं अधिक है. इतना ही नहीं, 2023 में सेवाओं के क्षेत्र में भी यूरोप और रूस के बीच 17.2 अरब यूरो का कारोबार हुआ.
2024 में यूरोपीय देशों ने 16.5 मिलियन टन LNG (तरलीकृत प्राकृतिक गैस) रूस से आयात किया जो 2022 के 15.21 मिलियन टन के रिकॉर्ड को पार कर गया है. केवल ऊर्जा ही नहीं, यूरोप रूस से उर्वरक, खनिज, रसायन, इस्पात और भारी मशीनरी जैसे तमाम उत्पाद आयात कर रहा है.
अमेरिका की भी नीति में विरोधाभास
अमेरिका की स्थिति भी इससे अलग नहीं है. वह भी रूस के साथ कई आवश्यक सामग्रियों का व्यापार कर रहा है. खासतौर पर, अमेरिका अपनी न्यूक्लियर इंडस्ट्री के लिए यूरेनियम हेक्साफ्लोराइड, इलेक्ट्रिक वाहनों के लिए पैलेडियम, और साथ ही उर्वरक व रासायनिक उत्पाद रूस से आयात करता रहा है.
ऐसे में जब वही देश भारत के रूस से तेल खरीदने पर सवाल खड़े करते हैं, तो यह महज एक दिखावटी और असंगत आलोचना बनकर रह जाती है. यह वैश्विक मंच पर पाखंड और राजनीतिक अवसरवादिता को दर्शाता है, जिसे भारत अब स्वीकार करने के मूड में नहीं है.
भारत की विदेश नीति: स्वतंत्र और संतुलित
भारत ने हाल के वर्षों में बार-बार यह दोहराया है कि वह किसी भी वैश्विक गठबंधन या दबाव के तहत नहीं, बल्कि अपने राष्ट्रीय हितों और रणनीतिक प्राथमिकताओं के आधार पर फैसले लेता है.
विदेश मंत्रालय ने साफ कहा कि भारत एक बड़ी, उभरती हुई वैश्विक अर्थव्यवस्था है, और उसे अपनी ऊर्जा सुरक्षा, आर्थिक स्थिरता और विकास के लक्ष्यों को लेकर जिम्मेदार रहना होगा. भारत के लिए तेल आयात एक ‘नीति विकल्प’ नहीं, बल्कि विकास की निरंतरता का आधार है.
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