चीन का अंतरिक्ष क्षेत्र में तेजी से हो रहा विकास अब पूरी दुनिया के लिए एक नई रणनीतिक चुनौती बनता जा रहा है. अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी में चीन के प्रगति ने अमेरिका और उसके सहयोगियों को चिंता में डाल दिया है. विशेष रूप से, भारत के लिए यह चिंता का विषय है, क्योंकि चीन का स्पेस प्रोग्राम ना केवल नागरिक उपयोग के लिए, बल्कि सैन्य क्षमता को भी मजबूत करने के लिए काम आ सकता है. हालांकि चीन का दावा है कि उनका स्पेस कार्यक्रम पूरी तरह से शांतिपूर्ण और नागरिक उद्देश्यों के लिए है, लेकिन जिस गति से वह तकनीकी विकास कर रहा है, उससे यह साफ नजर आ रहा है कि उनकी रणनीति विज्ञान से ज्यादा वैश्विक प्रभुत्व की ओर बढ़ रही है.
अन्य हथियारों के इस्तेमाल में बेहद सटीकता
चीन का BeiDou नेविगेशन सिस्टम अब दुनिया भर में कार्यरत है और ग्लोबल कवरेज प्रदान कर रहा है. यह न केवल एक सटीक नेविगेशन टूल बन चुका है, बल्कि सैन्य दृष्टिकोण से एक शक्तिशाली जासूसी नेटवर्क भी बन चुका है. अमेरिका के GPS के मुकाबले, चीनी सेना अब एशिया-पैसिफिक क्षेत्र में ज्यादा सटीक स्थान और समय डेटा प्राप्त कर रही है. भारतीय सेना ने हाल ही में बताया कि पाकिस्तान के साथ संघर्ष के दौरान चीन, भारतीय सैन्य ठिकानों को लाइव फीड दे रहा था. इस तरह के सैटेलाइट नेटवर्क चीनी सेना को मिसाइल, ड्रोन और अन्य हथियारों के इस्तेमाल में बेहद सटीकता प्रदान कर सकते हैं.
चीन ने एलन मस्क की कंपनी Starlink की तर्ज पर पृथ्वी के लोअर ऑर्बिट में सैटेलाइट की तैनाती शुरू कर दी है. Qianfan (G60 स्टारलिंक), जो कि चीन का ब्रॉडबैंड नेटवर्क प्रोग्राम है, को शंघाई स्पेसकॉम सैटेलाइट टेक्नोलॉजी द्वारा विकसित किया जा रहा है. इस नेटवर्क में 14,000 सैटेलाइट्स का लक्ष्य है, जिसमें अब तक लगभग 90 सैटेलाइट्स लॉन्च हो चुके हैं. चीन का यह नेटवर्क युद्ध के समय चीनी सेना को बेहतर कनेक्टिविटी और डेटा देने में सक्षम हो सकता है, जैसा कि स्टारलिंक ने यूक्रेनी सेना को रूस के साथ युद्ध के दौरान किया था.
चीन के कई सैटेलाइट्स, जैसे Yaogan, Gaofen, और TJS, ISR (Intelligence, Surveillance, Reconnaissance) क्षमताओं से लैस हैं. ये सैटेलाइट्स दुश्मन की गतिविधियों को ट्रैक करने के लिए बनाए गए हैं. अमेरिकी वायुसेना का मानना है कि चीन के Shijian और Shiyan सैटेलाइट्स "डॉगफाइटिंग" में भी सक्षम हैं, और वे दुश्मन के सैटेलाइट्स के करीब जाकर उन्हें ट्रैक कर सकते हैं. इससे चीन की वायुसेना को एक असाधारण मारक क्षमता मिल सकती है. इसके अलावा, इन सैटेलाइट्स का इस्तेमाल दूसरे देशों के सैटेलाइट्स को बाधित करने के लिए भी किया जा सकता है.
रीयूजेबल अंतरिक्ष विमान भी तैयार
चीन का गुप्त रीयूजेबल स्पेसक्राफ्ट (Shenlong) भी एक महत्वपूर्ण तकनीकी उपलब्धि है. इसने अब तक तीन मिशन पूरे किए हैं और यह अमेरिका के X-37B के समान माना जाता है. विशेषज्ञों का कहना है कि यह स्पेस प्लेन छोटे सैटेलाइट्स लॉन्च करने, दुश्मन के सैटेलाइट्स को डिफेंड करने या नष्ट करने और भविष्य में हाईपरसोनिक तकनीकी पर काम करने के लिए उपयोग किया जा सकता है. इसके अलावा, चीन का Tengyun (Cloud Rider) नामक रीयूजेबल अंतरिक्ष विमान भी 2030 में अपनी पहली उड़ान भरने के लिए तैयार है.
अमेरिकी वायुसेना ने पहले ही चेतावनी दी है कि अगर चीन अपनी स्पेस तकनीकी में इस गति से प्रगति करता रहा, तो वह 2030 तक अमेरिका की स्पेस तकनीकी को बराबरी पर ला सकता है या उसे पीछे छोड़ सकता है. चीन के 1,000 से अधिक सक्रिय सैटेलाइट्स में से 500 से अधिक ISR क्षमता से लैस हैं, जो कि इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में अमेरिकी नौसैनिक और एयरबेस मूवमेंट्स को ट्रैक कर सकते हैं. एक्सपर्ट्स का मानना है कि अगर चीन का यह आक्रामक विकास जारी रहा, तो वह अंतरिक्ष से संचालित युद्ध की नई क्षमता के साथ सामने आ सकता है, जिसे मात देना किसी के लिए भी आसान नहीं होगा.
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