अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने H-1B वीज़ा प्रक्रिया में अब तक का सबसे बड़ा बदलाव करते हुए सोशल मीडिया की अनिवार्य जांच को मंजूरी दे दी है. नए नियमों के मुताबिक, H-1B वीज़ा के लिए आवेदन करने वाले हर व्यक्ति को अपना सोशल मीडिया अकाउंट सार्वजनिक रखना होगा, ताकि अमेरिकी आव्रजन अधिकारी उसकी ऑनलाइन गतिविधियों की जांच कर सकें. यह कदम 15 दिसंबर से पूरी तरह लागू हो जाएगा और सभी अमेरिकी दूतावासों को इस संबंध में निर्देश भेज दिए गए हैं.
सोशल मीडिया की जांच क्यों?
नई नीति के तहत H-1B आवेदक के Facebook, Instagram, X (Twitter), LinkedIn सहित सभी सक्रिय सोशल मीडिया अकाउंट्स की पूरी स्कैनिंग की जाएगी. अमेरिकी अधिकारी न केवल पोस्ट्स बल्कि लाइक्स, शेयर, कमेंट्स और फॉलो की गई प्रोफाइल तक देख सकेंगे.
अगर किसी भी तरह की गतिविधि- राजनीतिक, धार्मिक, सामाजिक या वैचारिक अमेरिकी हितों के खिलाफ मानी गई या सुरक्षा जोखिम बनती दिखी, तो वीज़ा तुरंत खारिज कर दिया जाएगा.
महत्वपूर्ण बात यह है कि H-1B धारकों के परिवार- पत्नी, बच्चे और माता-पिता जो H-4 वीज़ा पर साथ आते हैं, उनके लिए भी सोशल मीडिया प्रोफ़ाइल सार्वजनिक रखना अनिवार्य कर दिया गया है.
यह पहली बार है जब अमेरिका ने H-1B जैसे उच्च कौशल वाले वीज़ा के लिए सोशल मीडिया जांच को अनिवार्य किया है. अगस्त से अमेरिका पहले ही स्टूडेंट वीज़ा (F-1, M-1, J-1) और विज़िटर वीज़ा (B-1, B-2) के लिए यह शर्त लागू कर चुका है.
भारतीयों पर क्यों पड़ेगा सबसे बड़ा असर
H-1B वीज़ा दुनिया में सबसे लोकप्रिय स्किल्ड वर्क वीज़ा है, और भारतीय पेशेवर इस कैटेगरी में सबसे आगे हैं. अमेरिकी आंकड़ों के अनुसार, हर साल जारी किए जाने वाले कुल H-1B वीज़ा में से लगभग 70% भारतीय IT इंजीनियर, डॉक्टर, रिसर्चर और डेटा विशेषज्ञों को मिलते हैं.
ऐसे में सोशल मीडिया जांच की नई बाध्यता सीधे भारतीय समुदाय को प्रभावित करेगी.
कई विशेषज्ञों का मानना है कि—
H-1B वीज़ा क्या है और इसका इतिहास
H-1B वीज़ा 1990 में अमेरिकी कांग्रेस द्वारा पेश किया गया था. इसे खास तौर पर उन विदेशी हाई-स्किल्ड प्रोफेशनल्स के लिए बनाया गया था, जिनकी अमेरिका में भारी मांग है- जैसे सॉफ्टवेयर इंजीनियर, डॉक्टर, अनुसंधानकर्ता, ऑटोमेशन विशेषज्ञ और वैज्ञानिक.
H-1B की अवधि पहले 3 साल की होती है और इसे एक बार फिर 3 साल के लिए बढ़ाया जा सकता है. छह वर्षों के बाद आवेदक ग्रीन कार्ड (स्थायी निवास) के लिए आवेदन करने योग्य हो जाता है.
H-1B अब इतिहास का सबसे महंगा वीज़ा
H-1B वीज़ा की लागत वर्षों से बढ़ती रही है, लेकिन ट्रम्प प्रशासन ने सितंबर 2025 में इसमें अभूतपूर्व बढ़ोतरी की. पहले यह फीस लगभग 9,000 डॉलर थी, जो अब बढ़कर लगभग 90 लाख रुपये तक पहुंच चुकी है, जिसमें प्रोसेसिंग, वकील और कंप्लायंस शुल्क शामिल हैं.
इस भारी लागत ने छोटे और मध्यम आकार की कंपनियों पर अतिरिक्त बोझ डाल दिया है, जबकि बड़े कॉर्पोरेट—Google, Amazon, Meta, Infosys, TCS, Wipro, Cognizant—अभी भी इसे वहन कर पा रहे हैं.
ट्रम्प का H-1B पर बदलता रुख
ट्रम्प ने H-1B पर पिछले नौ वर्षों में कई बार विरोधाभासी बयान दिए:
इस उतार–चढ़ाव ने वीज़ा चाहने वाले लाखों आवेदकों में असमंजस बढ़ाया है.
ट्रम्प के नए वीज़ा कार्ड का क्या मतलब?
H-1B में बदलाव के साथ ट्रम्प प्रशासन ने तीन नए प्रकार के “प्रिविलेज वीज़ा कार्ड” भी लॉन्च किए हैं:
ये विशेष कार्ड अमेरिकी अर्थव्यवस्था में विदेशी निवेश आकर्षित करने के उद्देश्य से बनाए गए हैं.
भारतीय टेक सेक्टर पर क्या असर होगा?
भारत हर वर्ष लाखों आईटी इंजीनियर और कंप्यूटर साइंस ग्रेजुएट तैयार करता है. अमेरिकी टेक इंडस्ट्री इन स्किल्ड कर्मचारियों पर काफी निर्भर है. Infosys, TCS, Wipro, Cognizant, HCL जैसी कंपनियां हर साल हजारों भारतीयों को H-1B स्पॉन्सर करती हैं.
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