नोबेल शांति पुरस्कार, जिसे दुनिया भर में सबसे प्रतिष्ठित और सम्मानजनक पुरस्कार माना जाता है, इस बार एक विवाद का केंद्र बन गया है. यह विवाद अफगानिस्तान से जुड़ा हुआ है, जहां सत्ता पर काबिज तालिबान ने इस पुरस्कार को लेकर अपनी राय रखी है. यह वह तालिबान है, जो न केवल अफगानिस्तान में मानवाधिकारों और लोकतांत्रिक मूल्यों के उल्लंघन के लिए जाना जाता है, बल्कि वैश्विक समुदाय के लिए भी एक बड़ा सवाल बन चुका है. मुद्दा इस बार अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के नोबेल शांति पुरस्कार के लिए नामांकन से जुड़ा है, जिस पर तालिबान ने अपनी विरोधी प्रतिक्रिया दी है.
तालिबान और ट्रंप: विवाद की शुरुआत
जहां कुछ देशों, जैसे पाकिस्तान, ने ट्रंप के मिडल-ईस्ट में प्रभाव और उनके द्वारा किए गए शांति प्रयासों को देखते हुए उन्हें इस पुरस्कार का हकदार बताया, वहीं तालिबान ने इसे लेकर तीव्र आपत्ति जताई है. तालिबान से जुड़े सोशल मीडिया अकाउंट्स ने डोनाल्ड ट्रंप को ‘दुनिया का सबसे बड़ा खलनायक’ करार दिया. इन अकाउंट्स ने ट्रंप पर आरोप लगाया कि उन्होंने गाजा में एक लाख से ज्यादा लोगों की हत्या करवाई, जिनमें महिलाएं और बच्चे भी शामिल थे. इसके अलावा, उन पर यह भी आरोप लगाए गए कि उन्होंने बाल यौन अपराधियों के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी छुपाई और विश्वविद्यालयों में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को दबाया.
तालिबान के सर्वोच्च नेता अखुंदजादा: शांति के असली प्रतीक?
अब सवाल यह उठता है कि यदि कोई शांति का असली प्रतीक है, तो क्या वह तालिबान के सर्वोच्च नेता हिबतुल्ला अखुंदजादा हो सकते हैं? तालिबान अपने नेता को शांति का प्रतीक बताने की कोशिश कर रहा है. उनके पोस्ट्स में दावा किया गया है कि अखुंदजादा ने अफगानिस्तान को विदेशी कब्जे से मुक्त किया, और आम माफी की घोषणा कर हजारों लोगों की जान बचाई. उनका कहना है कि चार दशकों के युद्ध के बाद अफगानिस्तान को एक केंद्रीकृत सरकार के अंतर्गत एकजुट किया गया है. तालिबान ने यह भी बताया कि काबुल का एक कुख्यात इलाका, जो कभी अपराधियों और नशेड़ियों का अड्डा हुआ करता था, आज वहां एक सार्वजनिक पुस्तकालय है, जो मुफ्त किताबें प्रदान करता है.
तालिबान का दावा और वैश्विक आलोचना
जहां तालिबान अपने नेता को ‘शांति का प्रतीक’ बताने की कोशिश कर रहा है, वहीं वैश्विक समुदाय इसका विरोध कर रहा है. एक अमेरिकी पूर्व खुफिया अधिकारी ने कटाक्ष करते हुए लिखा कि यदि अखुंदजादा को नोबेल शांति पुरस्कार दिया जाए, तो यह पुरस्कार ‘बच्चों को आत्मघाती हमलावर बनाने’ जैसे काले अध्यायों से भी आच्छादित होगा. यह आलोचना इस तथ्य पर आधारित है कि तालिबान एक हथियारबंद आंदोलन का नेतृत्व कर रहा है, जिसने अफगानिस्तान में मानवाधिकारों का उल्लंघन किया है और कई आतंकवादी हमलों को अंजाम दिया है.
निश्चित रूप से यह सवाल उठता है कि क्या नोबेल शांति पुरस्कार का उद्देश्य पूरी दुनिया में अहिंसा, मानवता और संवाद को बढ़ावा देना है, और क्या एक ऐसे व्यक्ति को यह पुरस्कार दिया जा सकता है, जिसने खुद एक हिंसक आंदोलन का नेतृत्व किया हो? इस संदर्भ में तालिबान का दावा वैश्विक मंचों पर गंभीर सवाल खड़ा कर रहा है.
नोबेल कमेटी की चुप्पी और सोशल मीडिया पर बहस
अब तक नोबेल कमेटी की ओर से इस विवाद पर कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया नहीं आई है. हालांकि, सोशल मीडिया पर यह बहस तेज हो चुकी है. एक पक्ष का कहना है कि तालिबान का बयान केवल राजनीतिक प्रचार है, जो शांति पुरस्कार के लिए ट्रंप के नामांकन को नकारने के उद्देश्य से दिया गया है. वहीं, दूसरे पक्ष का मानना है कि यह विवाद अमेरिका की विदेश नीति की विफलताओं को उजागर करने का एक तरीका है.
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